गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Mikhail Gorbachev and soviet union
Written By BBC Hindi
Last Modified: बुधवार, 31 अगस्त 2022 (08:51 IST)

मिख़ाइल गोर्बाचोफ़: जिनके देखते ही देखते सोवियत संघ बिखर गया

मिख़ाइल गोर्बाचोफ़: जिनके देखते ही देखते सोवियत संघ बिखर गया - Mikhail Gorbachev and soviet union
पूर्व सोवियत संघ के आख़िरी नेता मिखाइल गोर्बाचोफ़ का निधन हो गया है। उन्होंने 91 वर्ष की उम्र में अंतिम साँसें लीं। वे 1985 से 1991 तक सोवियत संघ की सत्ता में थे।
 
अपने आख़िरी वर्षों में गोर्बाचोफ़ की सेहत बहुत अच्छी नहीं थी और वो ज़्यादा बात भी नहीं करते थे। दिसंबर 2016 में उन्होंने मॉस्को स्थित बीबीसी संवाददाता स्टीव रोज़नबर्ग को एक इंटरव्यू दिया था। पढ़िए इस इंटरव्यू पर तब प्रकाशित हुआ एक लेख।
 
बहुत से लोग रूस को अब भी सोवियत संघ कहकर बुलाते हैं और यूएसएसआर के ज़िक्र के साथ-साथ मिखाइल गोर्बाचोफ़ का नाम लेते हैं। मिख़ाइल गोर्बाचोफ़ वही शख्स हैं जिनके देखते ही देखते सोवियत संघ के टुकड़े-टुकड़े हो गए थे।
 
अब 85 साल के मिख़ाइल गोर्बाचोफ़ की सेहत उनका साथ नहीं देती लेकिन वे उनकी हाज़िरजवाबी कायम है। मॉस्को में मिलते समय अपनी छड़ी की तरफ इशारा करते हुए मिख़ाइल गोर्बाचोफ़ ने कहा, "देखो, अब मुझे चलने के लिए तीन टांगों की जरूरत पड़ती है।"
 
ऐतिहासिक तारीख
मिख़ाइल गोर्बाचोफ़ उन लम्हों के बारे में बात करते हैं जब दुनिया बदल गई थी, सोवियत संघ बिखर गया था और दुनिया एक ध्रुवीय रह गई थी।
 
21 दिसंबर, 1991 को रूसी टेलीविजन पर शाम के बुलेटिन की शुरुआत नाटकीय घोषणा के साथ हुई- "गुड इवनिंग। इस वक्त की खबर है। अब सोवियत संघ का अस्तित्व नहीं रहा।।।"
 
इससे कुछ दिनों पहले ही रूस, बेलारूस और यूक्रेन के नेताओं ने सोवियत संघ से अलग होने को लेकर मुलाकात की थी।
 
मुलाकात के एजेंडे में स्वतंत्र राज्यों के एक राष्ट्रमंडल के गठन का मुद्दा भी था। अब आठ अन्य सोवियत राज्यों ने भी इस राष्ट्रमंडल का हिस्सा बनने का फैसला किया था। उन सब लोगों ने मिलकर मिख़ाइल गोर्बाचोफ़ को दरकिनार करने का फैसला किया था।
 
गोर्बाचोफ़ का इस्तीफ़ा
गोर्बाचोफ़ सोवियत संघ के राज्यों को एक साथ रखने के लिए संघर्ष कर रहे थे। मिख़ाइल गोर्बाचोफ़ बताते हैं, "मेरी पीठ पीछे धोखा हुआ। वे लोग सिगरेट जलाने के लिए पूरा घर जला रहे थे। बस सत्ता पाने के लिए... वे लोकतांत्रिक तरीके से ऐसा नहीं कर सकते थे। इसलिए उन्होंने अपराध किया। वह सब कुछ एक विद्रोह था।"
 
25 दिसंबर, 1991 को मिख़ाइल गोर्बाचोफ़ ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति पद से इस्तीफा की घोषणा की। तब क्रेमलिन में सोवियत झंडे को आखिरी बार झुकाया गया था।
 
मिख़ाइल गोर्बाचोफ़ बताते हैं, "हम गृह युद्ध की तरफ बढ़ रहे थे और मैं इसे बचाना चाहता था। लोग बंटे हुए थे, देश में संघर्ष की स्थिति थी, हथियारों की बाढ़ आ गई थी। इनमें परमाणु हथियार भी थे। बहुत से लोगों की जान जा सकती थी। बड़ी बर्बादी होती। मैं सत्ता से चिपके रहने के लिए ये सबकुछ होते हुए नहीं देख सकता था, इस्तीफा देना मेरी जीत थी।"
 
राष्ट्रपति पुतिन
अपने इस्तीफे में मिख़ाइल गोर्बाचोफ़ ने दावा किया कि उनके सुधार कार्यक्रमों की वजह से समाज को आज़ादी मिली। 25 साल बाद आज के रूस में क्या यह आजादी खतरे में है?
 
इस पर वह जवाब देते हैं, "यह प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है। हमें इसके बारे में खुलकर बात करने की जरूरत है। कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें आज़ादी से चिढ़ होती है। वे इसे लेकर अच्छा नहीं महसूस करते।"
 
बातचीत में मिख़ाइल गोर्बाचोफ़ मौजूदा राष्ट्रपति की सीधी आलोचना से बचते हैं लेकिन व्लादीमिर पुतिन से अपने मतभेदों की तरफ कई बार इशारा करते हैं।
 
शीत युद्ध
अमरीकी राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन के साथ मिख़ाइल गोर्बाचोफ़ के गर्मजोशी भरे रिश्तों की वजह से ही शीत युद्ध खत्म हुआ था। तो गोर्बाचोफ़ अमरीका के नवनिर्वाचित नेता के बारे में क्या सोचते हैं? क्या डोनल्ड ट्रंप से वे कभी मिले हैं?
 
मिख़ाइल गोर्बाचोफ़ कहते हैं, "मैंने उनकी ऊंची इमारतें देखी हैं लेकिन उनसे मिलने का कभी मौका नहीं मिला है। इसलिए मैं उनकी नीतियों और विचारों के बारे में कोई राय नहीं दे सकता हूं।"
 
पश्चिम में कई लोग मिख़ाइल गोर्बाचोफ़ को हीरो की तरह देखते हैं। उन्हें पश्चिमी यूरोप को आजादी और जर्मनी के एकीकरण को मंजूरी देने वाले शख्स के तौर पर देखा जाता है लेकिन उनके अपने देश में गोर्बाचोफ़ वो नेता हैं, जिसने अपना साम्राज्य गंवा दिया था।
ये भी पढ़ें
China Taiwan Tension: ताइवान की खाड़ी में क्या मध्य रेखा मिटा रहा है चीन?