मंगलवार, 19 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Lalu Nitish together in Bihar, What bjp will do
Written By BBC Hindi
Last Modified: बुधवार, 10 अगस्त 2022 (07:38 IST)

बिहार में नीतीश-लालू फिर साथ, क्या बीजेपी खोज पाएगी काट?

बिहार में नीतीश-लालू फिर साथ, क्या बीजेपी खोज पाएगी काट? - Lalu Nitish together in Bihar, What bjp will do
प्रेरणा, बीबीसी संवाददाता
बिहार की सियासत ने एक बार फिर करवट ली है। बीजेपी का दामन छोड़ नीतीश कुमार उस महागठबंधन में लौट चुके हैं जिसके साथ उन्होंने 2015 का चुनाव जीत सत्ता बरक़रार रखी थी।
 
राज्यपाल को अपना इस्तीफ़ा सौंपने के बाद मुख्यमंत्री सीधा राबड़ी आवास पहुंचे और तेजस्वी यादव से मुलाकात की। तालियों की गड़गड़ाहट के साथ यहां नीतीश का स्वागत किया गया, नीतीश भी काफ़ी नरम और सहज नज़र आए।
 
विश्लेषक कहते हैं कि साल 2020 के चुनाव परिणाम और एनडीए सरकार के् गठन के बाद, ये सहजता नीतीश के चेहरे पर विरले ही नज़र आई है। नीतीश कुमार पर लगातार बीजेपी का दबाव था और नीतीश ऐसे नेताओं में नहीं हैं जो किसी के दबाव में काम करें। नीतीश की अपनी एक शैली है, काम करने का तरीका है।
 
एनडीए में हमेशा बड़े भाई की भूमिका में रहने वाले नीतीश के लिए बीजेपी के बढ़ते हस्तक्षेप और दबाव को पचा पाना मुश्किल हो रहा था इसलिए आरसीपी सिंह प्रकरण के बहाने उन्हें एनडीए से एग्जिट लेने का मौका मिल गया।
 
ऐसा कहा जाने लगा है कि बिहार के इस सियासी उलटफेर विपक्षी पार्टियों में एक नई ऊर्जा देखने को मिल सकती है। नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव सहित महागठबंधन के सभी बड़े चेहरों के साथ राबड़ी आवास के बाहर हुई ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसका दावा भी किया गया।
 
तेजस्वी यादव ने वहाँ कहा कि हिंदी पट्टी वाले राज्यों में बीजेपी का अब कोई भी अलायंस पार्टनर नहीं बचा। उन्होंने कहा,"'बीजेपी किसी भी राज्य में अपने विस्तार के लिए क्षेत्रीय पार्टियों का इस्तेमाल करती है, फिर उन्हीं पार्टियों को ख़त्म करने के मिशन में जुट जाती है। बिहार में भी यही करने की कोशिश हो रही थी।''
 
जनादेश का अपमान
उधर सियासी उठापटक के बाद पहले बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और फिर बिहार बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं ने एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की। प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीजेपी नेताओं ने नीतीश कुमार पर जनता के जनादेश का अपमान करने का आरोप लगाया है।
 
संजय जायसवाल ने कहा, ''आज जो कुछ भी हुआ है वह बिहार की जनता और बीजेपी के साथ धोखा है। यह पूरे उस मैनडेट का उल्लंघन है, जो मैनडेट बिहार की जनता ने दिया था। 2005 में बिहार में जिनकी सरकार थी, ये मैनडेट उनके विरुद्ध था। यह प्रदेश शांति चाहता है, ये प्रदेश विकास चाहता है। बिहार की जनता ये बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगी।''
 
वहीं बिहार में भारतीय जनता पार्टी के पुराने चेहरे और नीतीश कुमार के साथ बतौर उपमुख्यमंत्री सरकार चला चुके सुशील मोदी कहते हैं कि जेडीयू गठबंधन तोड़ने का केवल बहाना ढूंढ रही थी।
 
वर्तमान राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने कहा,''यह सरासर सफ़ेद झूठ है कि भाजपा ने बिना नीतीश जी की सहमति के आरसीपी को मंत्री बनाया था। यह भी झूठ है कि भाजपा JDU को तोड़ना चाहती थी। तोड़ने का बहाना खोज रहे थे। भाजपा 25 में प्रचंड बहुमत से आएगी।''
 
बीजेपी के लिए "बड़ा धक्का"
बिहार की जनता इस नई सरकार को बर्दाश्त करेगी और क्या 2025 के विधानसभा चुनाव पर इसका असर होगा? बीजेपी के हाथों से बिहार की सत्ता का फिसलना और नीतीश-तेजस्वी की जोड़ी का दोबारा साथ आना, क्या संकेत देता है?
 
इन सवालों के जवाब में बिहार के वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद कहते हैं, '' अगर लंबे समय के लिए महागठबंधन इन्टैक्ट रहता है, तो बीजेपी के लिए ये एक बहुत बड़ा नुकसान साबित होगा। 2024 के लोकसभा चुनाव में ही इसका असर आपको देखने को मिल जाएगा।''
 
''ये पहली बार होगा जब लोकसभा चुनाव में नीतीश-तेजस्वी की जोड़ी साथ होगी। इस जोड़ी ने 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी का क्या हश्र किया था, ये किसी से छुपा नहीं है। अगर ये जोड़ी 2024 तक साथ रहती है तो बिहार में मोदी मैजिक भी धता दे सकता है। ये बीजेपी के लिए बड़ा धक्का होगा।"
 
दूसरी बात ये कि बीजेपी दूसरे राज्यों में जहाँ समीकरण बिठाते हुए सरकार बनाए जा रही थी, वहीं बिहार में उनकी बनी बनाई सरकार गिर गई। उसे बचाने के लिए उनकी कोई भी रणनीति काम क्यों नहीं कर सकी?
 
सुरूर अहमद कहते हैं," बिहार में केंद्रीय नेतृत्व ने हमेशा एक भ्रामक स्थिति बनाई रही। इन्होंने दो-तीन ग़लतियां कीं। जैसे- सुशील मोदी, नंद किशोर यादव, प्रेम कुमार, रवि शंकर प्रसाद बिहार बीजेपी में जितनी भी टॉप लीडरशिप रही, उन्हें धीरे-धीरे कर के साइडलाइन कर दिया गया।"
 
"बीजेपी अगर ये सोचती है कि दिल्ली से किसी नए चेहरे को बिहार में लॉन्च कर के लोगों का समर्थन हासिल कर लेंगे, तो ऐसा नहीं होने वाला। ये सबकुछ अत्यधिक आत्मविश्वास का नतीजा है।"
 
सुरूर अहमद कहते हैं कि जाति को लेकर बेहद सजग राज्य (बिहार) में बीजेपी बिना किसी फिक्सड कास्ट वोट बैंक के लंबे समय तक सर्वाइव नहीं कर पाएगी।
 
नीतीश-लालू जोड़ी की काट कितनी आसान
बिहार की सियासत पर पैनी नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार नलिन वर्मा भी यही मानते हैं। वो कहते हैं कि आज की घटना बीजेपी के लिए एक बड़ा सेटबैक है।
 
नलिन वर्मा कहते हैं,"'नीतीश कुमार और लालू के डेडली कॉम्बिनेशन का काट फिलहाल बीजेपी के पास नहीं है। जल्द ही 2024 के चुनाव में बीजेपी को इसका ख़मियाजा भुगतना पड़ सकता है। ''
 
2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 39 सीटें जीती थीं। तब बीजेपी के साथ जेडीयू और एलजेपी एनडीए का हिस्सा थे।
 
नलिन वर्मा 2019 के इसी आम चुनाव का हवाला देते हुए कहते हैं कि किसी भी सूरत में अब बीजेपी इतनी सीटें नहीं जीत पाएगी, बल्कि आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी के सिंगल डिजिट नंबर पर शिफ्ट करने की पूरी संभावना है।
 
''बीजेपी आरजेडी के एमवाई और नीतीश के ओबीसी वोटबैंक में भी सेंधमारी नहीं कर पाई है। जबकी यूपी में एक हद तक सपा और बसपा के वोटबैंक को डेंट करने में पार्टी कामयाब हुई है। ''
 
हालांकि ऐसी भी चर्चा है कि लंबे दौर में ये बीजेपी के लिए फ़ायदे का सौदा बता रहे हैं। ऐसी अटकलें थीं कि बीजेपी खेमे में 2020 के चुनाव परिणाम को लेकर नाराज़गी थी कि जेडीयू को 122 सीटें नहीं दी गई होती, तो बीजेपी अकेले दम पर सरकार बना सकती थी।
 
अब जब नीतीश कुमार ख़ुद ही अलग हो गए हैं और वापस महागठबंधन का हाथ थाम लिया है, तो बीजेपी इसे जनादेश का उल्लंघन बता विक्टिम कार्ड खेल सकती है।
 
नलिन वर्मा इन सभी संभावनाओं को ख़ारिज करते हैं। वो कहते हैं,"ऐसा पहली बार तो नहीं हो रहा। नीतीश कुमार ने पहले भी बीजेपी को ये मौका दिया था, नतीजा क्या हुआ? पार्टी को 38 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा। "
 
वरिष्ठ पत्रकार यहां साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव का ज़िक्र कर रहे हैं। इस चुनाव में नीतीश कुमार ने पहली बार महागठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ा था। लालू-नीतीश की जोड़ी ने तब बिहार की 243 सीटों में से 181 सीटें जीती थीं। वहीं बीजेपी को केवल 53 सीटें मिली थीं। जबकि साल 2010 के चुनाव में पार्टी 91 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। वो साफ़तौर पर कहते हैं कि अभी बिहार में हुए बदलाव का बीजेपी को कोई फ़ायदा नहीं होने जा रहा।
ये भी पढ़ें
बिहार में बदली सरकार, क्या उद्धव ठाकरे का हाल देख डर गए नीतीश कुमार?