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Written By BBC Hindi
Last Modified: शनिवार, 27 नवंबर 2021 (08:33 IST)

क्या डेल्टा से ज़्यादा ख़तरनाक हो सकता है कोरोना का नया वेरिएंट, भारत में भी अलर्ट

क्या डेल्टा से ज़्यादा ख़तरनाक हो सकता है कोरोना का नया वेरिएंट, भारत में भी अलर्ट - Is Corona new varient more dangerous than delta
जेम्स गैलाघर, स्वास्थ्य एवं विज्ञान संवाददाता
दुनियाभर में कोरोना वायरस के नए वेरिएंट को लेकर चिंता जताई जा रही है। इसे अब तक का सबसे ज़्यादा म्यूटेशन वाला वेरिएंट बताया जा रहा है। इसमें इतने ज़्यादा म्यूटेशन हैं कि इसे एक वैज्ञानिक ने डरावना बताया है तो दूसरे वैज्ञानिक ने इसे अब तक सबसे ख़राब वेरिएंट कहा है।
 
इसके सामने आने के बाद सवाल उठने लगे हैं कि ये नया वेरिएंट कितना संक्रामक है, वैक्सीन के बावजूद भी ये कितनी तेज़ी से फैल सकता है और इसे लेकर क्या करना चाहिए। फ़िलहाल इस लेकर कई कयास लगाए जा रहे हैं लेकिन अभी कुछ ही सवालों के जवाब मिल पाए हैं।
 
अभी तक क्या पता है?
इस वेरिएंट को बी.1.1529 कहा जा रहा है और शुक्रवार को विश्व स्वास्थ्य संगठन इसे कोई नाम दे सकता है जैसे एल्फ़ा और डेल्टा वेरिएंट नाम दिए गए थे।
 
दक्षिण अफ़्रीका में सेंटर फॉर एपिडेमिक रेस्पॉन्स एंड इनोवेशन के निदेशक प्रोफ़ेसर टुलियो डी ओलिवेरा कहते हैं कि इसमें बहुत ज़्यादा म्यूटेशन हैं। "म्यूटेशन का असामान्य समूह" है और यह अन्य वेरिएंट से "बहुत अलग" है। उन्होंने कहा, 'इस वेरिएंट ने हमें हैरान कर दिया है, ये हमारी उम्मीदों के उलट बहुत बड़ा बदलाव हुआ है।'
 
मीडिया से बात करते हुए प्रोफ़ेसर डी ओलिवेरा ने कहा कि इसमें कुल मिलाकर 50 म्यूटेशन हुए हैं और 30 से म्यूटेशन ज़्यादा स्पाइक प्रोटीन में हुए हैं। ज़्यादातर वैक्सीन प्रोटीन पर हमला करते हैं और इन्हीं के ज़रिए वायरस भी शरीर में प्रवेश करता है।
 
वायरस के हमारे शरीर की कोशिकाओं से संपर्क बनाने वाले हिस्से की बात करें तो इसमें 10 म्यूटेशन हुए हैं। जबकि दुनिया भर में तबाही मचाने वाले डेल्टा वेरिएंट में दो म्यूटेशन हुए थे। इस तरह का म्यूटेशन किसी एक मरीज़ में होने की संभावना है जो वायरस से लड़ने में सक्षम ना हो पाया हो।
 
वैक्सीन कितनी प्रभावी
सभी म्यूटेशन का मतलब ये नहीं होता है कि वो बुरे होते हैं लेकिन ये देखना ज़रूरी है कि इसमें क्या-क्या म्यूटेशन हुए हैं। लेकिन, चिंता इस बात की है ये वायरस चीन के वुहान में मिले मूल वायरस से मौलिक रूप से अलग है। इसका मतलब ये है कि उस मूल वायरस को ध्यान में रखकर बनाई गईं वैक्सीन इस वेरिएंट पर अप्रभावी हो सकती हैं।
 
दूसरे वेरिएंट में भी कुछ म्यूटेशन देखे गए हैं जिससे इस वेरिएंट में उनकी भूमिका के बारे में कुछ जानकारी मिल सकती है।
 
जैसे एन501वाई कोरोना वायरस के लिए फैलना आसाना बनाता है। कुछ म्यूटेशन ऐसे होते हैं जो एंटबॉडी के लिए वायरस को पहचानना मुश्किल बना देते हैं और इससे वैक्सीन का प्रभाव कम हो जाता है। कुछ म्यूटेशन बिल्कुल अलग तरह के होते हैं।
 
दक्षिण अफ़्रीका में यूनिवर्सिटी ऑफ़ क्वाज़ुलु-नटाल में प्रोफ़ेसर रिचर्ड लेसल्स कहते हैं, "हमारी चिंता ये है कि इससे वायरस की एक से दूसरे व्यक्ति में फैलने की क्षमता बढ़ सकती है। ये प्रतिरक्षा प्रणाली के हिस्सों से भी बच सकता है।"
 
वेरिएंट्स के ऐसे उदाहरण भी हैं जो कागज पर तो डरवाने लगते थे लेकिन उनका कुछ खास असर नहीं हुआ। साल की शुरुआत में बीटा वेरिएंट चिंता का कारण बना था क्योंकि ये प्रतिरक्षा तंत्र से बच निकलने में ज़्यादा माहिर था। लेकिन बाद में डेल्टा वेरिएंट पूरी दुनिया में फैल गया और बड़ी परेशानी का कारण बना।
 
यूनिवर्सिटी ऑफ़ केम्ब्रिज के प्रोफ़ेसर रवि गुप्ता कहते हैं, "बीटा प्रतिरक्षा तंत्र से बच सकता था, डेल्टा वेरिएंट में संक्रामकता थी और प्रतिरक्षा तंत्र से बचने की थोड़ी क्षमता थी।"
 
नए वेरिएंट के मामले
नए वेरिएंट को लेकर प्रयोगशालाओं में होने वाले वैज्ञानिक अध्ययन तस्वीर को और स्पष्ट करेंगे लेकिन असल दुनिया में वायरस के प्रभाव की निगरानी से नतीजे जल्दी मिलेंगे। अभी पूरी तरह निष्कर्ष निकालना बहुत ज़ल्दी होगा लेकिन शुरुआती संकेत इसे लेकर चिंता पैदा करते हैं।
 
दक्षिण अफ़्रीका के गाउटेंग में 77, बोत्स्वाना में चार मामलों और हॉन्ग-कॉन्ग में एक मामले की पुष्टि हुई है। हॉन्ग-कॉन्ग का मामला दक्षिण अफ़्रीका की यात्रा से जुड़ा है। हालांकि, इस बात के भी संकेत मिले हैं कि ये वेरिएंट और तेज़ी से फैला है।
 
इस वेरिएंट के स्टैंडर्ड टेस्ट में अजीब नतीजे सामने आ रहे हैं (इसे एस-जीन ड्रॉपआउट कहा जाता है) और इसका इस्तेमाल कर पूरे आनुवांशिक विश्लेषण के बिना वेरिएंट को ट्रैक किया जा सकता है।
 
यह बताता है कि गाउटेंग के 90 प्रतिशत मामले पहले से ही इस वेरिएंट के हो सकते हैं। ये दक्षिण अफ़्रीका के कई प्रांतों में पहले से ही मौजूद हो सकता है।
 
लेकिन, इससे ये पता नहीं चलता कि ये डेल्टा वेरिएंट के मुक़ाबले तेज़ी से फैल सकता है या नहीं, ये कितना गंभीर है और वैक्सीन से बने प्रतिरक्षा तंत्र से ये कितना बच सकता है।
 
इससे ये भी पता नहीं चलता है कि ये वेरिएंट उन देशों में कितनी तेज़ी से फैलेगा जिनकी वैक्सीनेशन दर दक्षिण अफ़्रीका की 24 प्रतिशत वैक्सीनेशन दर से कहीं ज़्यादा है। फिलहाल हमारे सामने ऐसा वेरिएंट है जो हमारी चिंताएं बढ़ा रहा है लेकिन हमें उसके बारे में बहुत कम जानकारी है।
 
इस वेरिएंट पर करीब से नज़र रखे जाने की ज़रूरत है और ये सोचने की ज़रूरत है कि कब क्या करना है। इस महामारी ने हमें सीख दी है कि हम सभी सवालों के जवाब मिलने तक का इंतज़ार नहीं कर सकते।
 
भारत और ब्रिटेन ने ज़ारी किए दिशानिर्देश
इसे वेरिएंट की गंभीरता को देखते हुए भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने गुरुवार को राज्यों को निर्देश दिया है कि वे दक्षिण अफ्रीका,हॉन्ग कॉन्ग और बोत्स्वाना से आने या जाने वाले यात्रियों की सख़्ती से जांच करें और उनका परीक्षण करें।
 
स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को लिखी एक चिट्ठी में कहा है कि भारत के नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल (एनसीडीसी) ने सरकार को सूचित किया है कि 'बोत्स्वाना, दक्षिण अफ्रीका और हॉन्ग कॉन्ग में नए कोविड-19 वेरिएंट बी.1.1529 के कई मामले दर्ज किए गए हैं।
 
''इस वेरिएंट का म्यूटेशन काफ़ी ज्यादा बताया जा रहा रहा है। इसलिए इन देशों से यात्रा करने वाले और ट्रांज़िशन फ्लाइट लेने वाले वाले सभी अंतरराष्ट्रीय यात्री "एट रिस्क'' श्रेणी का हिस्सा हैं और उनकी कड़ी जांच और परीक्षण करना अनिवार्य है।''
 
स्वास्थ्य मंत्रालय ने ये भी कहा है कि जारी दिशानिर्देशों के अनुसार इन अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के संपर्कों में आए सभी लोगों को बारीकी से ट्रैक और टेस्ट किया जाना चाहिए।
 
वहीं, ब्रिटेन ने नए वेरिएंट को लेकर सामने आ रही चेतावनियों के बीच छह अफ़्रीकी देशों से आने वाली फ्लाइट पर प्रतिबंध लगा दिया है।
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