पिछले महीने एप्पल ने स्क्रीन टाइम फ़ीचर लांच किया। इससे यूज़र्स को पता चलता रहता है कि वे कितने समय तक फ़ोन या टैब पर रहें। अगर आपने इस फ़ीचर को नहीं देखा है तो आपको देखना चाहिए। ऑफ़िस के कंप्यूटर पर या पर्सनल फोन पर अपने स्क्रीन टाइम को चेक करें तो आप हैरान रह जाएंगे।
हममें से ज्यादातर लोग घर और ऑफिस में कंप्यूटर, टैबलेट, स्मार्टफोन पर बहुत ज्यादा समय बिताते हैं और इस बारे में सोचते भी नहीं। ऑफिस में ईमेल, नोटिफिकेशन, इंटरनल मैसेंजिंग सिस्टम और इंटरनेट, ये सब मिलकर समय का बहुत बड़ा हिस्सा खा लेते हैं। इस तरह की तकनीक हमारी उत्पादकता घटाती है। थोड़े समय के लिए इन सबसे दूर रहना, भले ही एक घंटे के लिए ही सही, हमारी मदद कर सकता है।
तकनीक से दूर
शोध ने साबित किया है कि टेक्नोलॉजी की तरफ ज्यादा झुकाव से सेहत, खुशियों और उत्पादकता पर बुरा असर पड़ता है। लगातार स्क्रीन देखते रहने से आंखें खराब होती हैं। चौबीसों घंटे का मैसेंजिंग कल्चर हमारे तनाव और अवसाद को बढ़ा रहा है। इंटरनेट हमारे जुनून और लत का दोहन करता है। 2012 में अमरीकी शोधकर्ताओं ने ईमेल को 21वीं सदी में ऑफिस का सबसे घातक तकनीकी विचलन बताया था। उन्होंने कर्मचारियों की हृदय गति मापने के लिए मॉनिटर लगाए।
यह देखा गया कि जो लोग लगातार ईमेल देख रहे थे और एक साथ कई ब्राउज़र विंडो और एप्लिकेशन पर नज़र रख रहे थे, उनके हृदय की गति ज्यादा थी और उनका तनाव भी ज्यादा था। ऑफिस में पूरी तरह कटकर भी नहीं रहा जा सकता। ऑफ़िस के ईमेल चेक ना करें, ऐसा नहीं हो सकता। मीडिया विशेषज्ञ मनोवैज्ञानिक पामेला रटलेज कहती हैं, सोशल मीडिया पर संबंध तोड़ लेना दुनिया की जिम्मेदारियों से भागना है। संबंध तोड़ लेने की जगह हम दिन में कुछ समय निकाल सकते हैं जिसमें टेक्नोलॉजी से दूर रहें। रटलेज कहती हैं, दिमाग और ऊर्जा को मुक्त करना ही लक्ष्य है।
मल्टी-टास्किंग छलावा है
तकनीक से एक घंटा दूर रहने का मतलब कहीं छिप जाना नहीं है। इसका मतलब काम-धाम छोड़कर माइंडफुलनेस रूम में मेडिटेशन करना या फोन को दराज में बंद कर देना भी नहीं है। इस तरकीब का मकसद है तकनीकी उपकरणों और एप्लिकेशंस के बीच मल्टी-टास्क की कोशिशों को रोकना। सैन डियागो यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान की प्रोफेसर सांद्रा स्गौटस-एम्च कहती हैं, न्यूरो वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया है कि इंसानी दिमाग एक साथ कई काम के लिए नहीं बना है।
हमारे दिमाग को हर नए काम को समझने और उस पर फोकस करने के लिए समय चाहिए। एक समय पर एक काम करने से हमारा ध्यान बना रहता है और हम उस काम को अच्छे से कर पाते हैं। स्गौटस-एम्च कहती हैं, हर दिन कुछ समय के लिए तकनीक से दूर रहने से हमारे दिमाग को ऐसा करने में मदद मिलती है। काम के दौरान छोटे-छोटे टेक इंटरैक्शन हमारे समय को खा जाते हैं। उपकरणों और ब्राउजर विंडो के बीच लगातार स्विचिंग से बेचैनी बढ़ती है और ध्यान भटकता है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में ऑपरेशंस मैनेजमेंट के प्रोफेसर मैट्टिस हॉलवेग कहते हैं, जब भी हम एक टास्क से दूसरे टास्क पर जाते हैं तो हम सेटअप टाइम गंवाते हैं। इससे उत्पादकता घटती है। छोटे अंतराल के लिए टेक्नोलॉजी से दूर रहे बिना इस चक्र को तोड़ना मुश्किल है। हॉलवेग कहते हैं, हमारा दिमाग तुरंत संतुष्टि चाहता है इसलिए हम हर 10 मिनट पर वॉट्सएप, फेसबुक या ईमेल चेक करते हैं। दुर्भाग्य से यह उत्पादक कार्यों के लिए नुकसानदेह है। अच्छी बात यह है कि विशेषज्ञ आपकी मदद के लिए तैयार हैं।
हर दिन काम के बीच एक घंटे का समय निकालना और उसमें टेक्नोलॉजी से दूर रहना स्मार्ट प्लानिंग से संभव है। हमने जिस भी एक्सपर्ट से बात की उन्होंने सलाह दी कि दिन में किसी निश्चित समय पर ही ईमेल चेक किए जाएं। इससे वे ऑन-स्क्रीन नोटिफिकेशन अपने आप बंद हो जाएंगे जो हर ईमेल के साथ पॉप-अप होते हैं। ईमेल चेक करने के लिए दिन में दो या तीन समय तय किए जा सकते हैं। सोशल मीडिया और स्मार्टफोन के दूसरे फंक्शन के लिए भी यही रणनीति अपनाई जा सकती है।
आप उन छोटे अंतरालों की भी योजना बना सकते हैं जब आप हर तकनीक और उपकरणों से दूर रहें। स्गौटस-एम्च कहती हैं, समय का शेड्यूल बनाएं, फोन छोड़ दें और बाहर घूम आएं। मौसम खराब हो तो बिल्डिंग के बाहर ही चक्कर लगा लें और सहयोगियों से बातें करें। सुकून से लंच कर लें। हर काम के लिए जरूरी नहीं कि कंप्यूटर के सामने बैठे रहें या स्मार्टफोन से चिपके रहें। हर व्यक्ति इस तरह का होता भी नहीं कि हमेशा ऑनलाइन रहे। इसके अलावा, अधिक नींद लेना और दिन में एक घंटा अतिरिक्त निकाल लेना असल में उन बड़ी समस्याओं का समाधान नहीं करता जो बुरी आदतों की जड़ में है।
अचानक सबसे कट जाना, जैसा कुछ टॉप सीईओ और टेक गुरु करते हैं, भलाई से ज्यादा बुराई कर सकता है। ग्लोरिया मार्क कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में इंफॉर्मेटिक्स की प्रोफेसर हैं। 2012 में उन्होंने ईमेल पर एक अध्ययन का नेतृत्व किया था। मार्क कहती हैं, यदि किसी व्यक्ति को सिगरेट पीने की लत हो और उसे कुछ समय के लिए सिगरेट से दूर कर दिया जाए तो इससे तनाव बढ़ जाता है। काम में तकनीक का दखल खत्म करना या बहुत कम कर देना भी पूरी तरह अव्यावहारिक है।
मार्क को लगता है कि यह कंपनियों की जिम्मेदारी है कि वे अपने कर्मचारियों को टेक्नोलॉजी का गुलाम न बनने दें। मिसाल के लिए, किसी निश्चित समय पर ई-मेल जारी करने से मदद मिल सकती है, क्योंकि इससे अपेक्षाएं बदल जाती हैं। ध्यान बंटाने वाले संदेशों की बौछार होने से कर्मचारियों का तनाव बढ़ता है और कार्यकुशलता घटती है। कर्मचारी ईमेल तभी भेजें जब उसका कोई मतलब हो, ना कि तुरंत जवाब देने की मजबूरी हो। 2017 में फ्रांस में एक कानून बना था जिसमें कर्मचारियों को यह अधिकार दिया गया था कि वे अपने काम के घंटे खत्म होने के बाद ऑफिस के मेल को नजरंदाज़ कर सकते हैं।
न्यूयॉर्क सिटी ने भी पिछले साल ऐसे बिल पर विचार किया। ऑटो निर्माता कंपनी फोक्सवैगन ने 2012 से ही कर्मचारियों को असमय ई-मेल भेजने बंद कर दिए थे। हालांकि हममें से कई लोगों के लिए तकनीक से पूरी तरह भागने का कोई रास्ता नहीं हैं, फिर भी दिन में एक घंटे के लिए इससे दूर रहने के महत्व को कम नहीं आंकना चाहिए।
स्मार्ट शेड्यूल बनाकर और डिजिटल टूल्स का अलग तरीके से इस्तेमाल करके हम अतिरिक्त समय निकाल सकते हैं। अगर हम ऐसा नहीं कर पाए तो रटलेज कहती हैं कि यह तकनीक हमारे लिए ज्यादा समस्याएं खड़ी करने वाली है। आप काम करने में जितना नहीं थकते, उससे ज्यादा ध्यान को बार-बार भटकाने से आपका दिमाग थक जाता है।