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Written By BBC Hindi
Last Modified: गुरुवार, 20 अक्टूबर 2022 (07:32 IST)

रूस और ईरान की दुश्मनी, दोस्ती में कैसे बदली

रूस और ईरान की दुश्मनी, दोस्ती में कैसे बदली - How russia and Iran become friends
नॉरबर्ट पैरेडेस, बीबीसी न्यूज़ वर्ल्ड
यूक्रेन पर हमले के बाद दुनिया के कई हिस्सों में ख़ारिज किए जा रहे रूस ने नए गठबंधनों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। अच्छा समय रहता तो रूस शायद ही इस तरह के नए गठबंधन की कोशिश करता। ईरान के साथ उसके नए बन रहे रिश्तों का ज़िक्र इसी सिलसिले में किया जाता है।
 
रूस के ईरान के साथ संबंध काफ़ी जटिल रहे हैं। दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर ऐतिहासिक रूप से मतभेद रहा है। रूसी साम्राज्य और सोवियत संघ के दिनों में ईरानियों का जिस तरह से दमन किया गया था, उसकी यादें ईरान में आज भी ताज़ा हैं।
 
रूस और ईरान आर्थिक और ऊर्जा मामलों में एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे हैं। लेकिन पश्चिमी दुनिया से दोनों मुल्कों की अदावत उन्हें अक़सर एक-दूसरे के क़रीब ले आती है।
 
यूक्रेन पर हमले के बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पांच बार विदेश यात्राएं कर चुके हैं। पुतिन के ये सभी दौरे रूस के पड़ोसी और सोवियित संघ के पूर्व घटक देशों के हुए हैं।
 
लेकिन इसमें ईरान एक अपवाद है। जुलाई में पुतिन तेहरान के दौरे पर थे। उनकी इस यात्रा के दौरान कई लोगों को उस वक़्त आश्चर्य हुआ जब पुतिन ने वहां सीरिया का ज़िक्र किया।
 
पुतिन ने संप्रभुता, स्वतंत्रता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता के बुनियादी सिद्धांतों के दायरे में सीरिया के संघर्ष के कूटनीतिक समाधान की अपील की।
 
पुतिन ने ईरान के दौरे पर ये दिखलाने की कोशिश की कि रूस को अलग-थलग कोशिशें करने के बावजूद उसके पास अभी भी सहयोगी हैं और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसकी सुनी जाती है।
 
लेकिन हक़ीक़त में कई लोगों ने इसे रूस के राजनीतिक और कूटनीतिक तौर पर अलग-थलग पड़ने के एक और सबूत के तौर पर भी देखा।
 
रूस को ईरान से सैन्य मदद
अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा, "ये दिखाता है कि पुतिन और रूस किस तरह से अलग-थलग पड़ रहे हैं। अब उन्होंने मदद के लिए ईरान की ओर रुख़ किया है।" हाल ही में कुछ रिपोर्टों से ऐसा लगा है कि रूस को ईरान से सैन्य मदद मिल रही है।
 
यूक्रेन की राजधानी कीएव पर सोमवार को रूस ने जो हमला किया, उसमें ईरान में बने शहीद-136 ड्रोन्स का इस्तेमाल किया गया था। 'शहीद-136' को रूस में 'गेरानियम-2' कहा जाता है। ये दरअसल एक फ्लाइंग बम हैं जो दो हज़ार किलोमीटर की दूरी तय कर सकते हैं।
 
हालांकि ईरान ने इन ड्रोन्स की रूस को सप्लाई करने से इनकार किया है, लेकिन अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि 'शहीद-136' की पहली खेप रूस को अगस्त में ही भेजी गई थी।
 
अमेरिकी थिंक टैंक 'इंस्टीट्यूट फ़ॉर द स्टडी ऑफ़ वॉर' की हालिया आई एक रिपोर्ट में ये कहा गया है कि मुमकिन है कि ईरानियों का एक समूह रूसी सैनिकों को 'शहीद-136' के इस्तेमाल की ट्रेनिंग देने रूस के क़ब्ज़े वाले यूक्रेनी इलाकों में गया हो।
 
रूस और यूक्रेन की लड़ाई का ताज़ा हाल
  • यूक्रेन के खेरसोन क्षेत्र से रूस अपने हज़ारों नागरिकों और अधिकारियों को बाहर निकाल रहा है। ये जानकारी रूस की ओर से नियुक्त स्थानीय अधिकारी ने दी है। व्लादिमीर साल्डो ने कहा कि 50 से 60 हज़ार नागरिक धीरे-धीरे नीपर नदी के पश्चिमी तट पर बसे चार शहरों को छोड़ देंगे।
  • रूस के नियुक्त किए गए क्षेत्रीय अधिकारी किरिल स्त्रेमोसोव ने खेरसोन में रह रहे लोगों को चेताया कि बहुत जल्द ही यूक्रेन की सेना इस शहर में ताबड़तोड़ हमले करेगी।
  • इसराइल के रक्षा मंत्री बेनी गेंट्ज़ ने बुधवार को कहा है कि इसराइल यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति नहीं करना चाहता है, लेकिन वो कीएव की मिसाइल अटैक वॉर्निंग सिस्टम में सुधार करने में मदद कर सकता है।
  • यूक्रेन के कीएव और विन्नित्सिया शहर में धमाके सुने गए हैं। कीएव के मेयर ने बताया है कि उनके एयर डिफ़ेंस सिस्टम ने शहर की ओर बढ़ रहे कई मिसाइलों को रास्ते में ही नष्ट कर दिया है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने खेरसोन सहित उन चार यूक्रेन के क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगाने के एक आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं जिनका कुछ दिन पहले रूस ने अपने में औपचारिक विलय किया था।
 
दोस्ती और दुश्मनी
व्लादिमीर पुतिन और इब्राहिम रईसी इस समय दुनिया के दो सबसे अधिक प्रतिबंधित देशों की अगुवाई कर रहे हैं।
 
हालांकि सीरिया, बेलारूस और वेनेज़ुएला पर भी काफ़ी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगे हुए हैं और वहां की भी सरकारों को पश्चिमी देशों के विरोध का सामना करना पड़ता है। लेकिन रूस और ईरान के संबंध कहीं अधिक जटिल हैं।
 
जर्मन इंस्टीट्यूट फ़ॉर इंटरनेशनल सिक्योरिटी अफ़ेयर्स में ईरान और रूस मामलों के विशेषज्ञ हामिद रज़ा अज़ीज़ी कहते हैं कि मॉस्को और तेहरान एक-दूसरे के दुश्मन और दोस्त दोनों रहे हैं। दोनों के संबंधों में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं।
 
उन्होंने बीबीसी मुंडो से कहा, "रूस और ईरान का मौजूदा नेतृत्व ये दिखलाना चाहता है कि दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंध है और दोनों सहयोगी देश हैं।"
 
"लेकिन दूसरी तरफ़, अगर हम ये देखें कि सीरिया में रूस और ईरान क्या कर रहे हैं और ऊर्जा मुद्दों पर दोनों देशों का कैसा रुख है तो हम पाएंगे कि दोनों के बीच प्रतिद्वंद्विता भी है।"
 
हालांकि रूस और ईरान इस बात पर सहमत हैं कि सीरिया की कमान बशर अल-असद के हाथ में ही रहनी चाहिए, लेकिन वहां दोनों देशों के हित एक-दूसरे से मेल नहीं खाते हैं।
 
सीरिया के कुछ इलाकों पर कंट्रोल के लिए दोनों देश एक-दूसरे के आमने-सामने हैं और युद्ध ख़त्म होने की सूरत में सीरिया का भविष्य कैसा हो, इस सवाल पर भी रूस और ईरान के बीच मतभेद हैं।
 
ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्विता
रूस और ईरान की प्रतिद्वंद्विता ऐतिहासिक रही है। हामिद रज़ा अज़ीज़ी कहते हैं, "ईरानी लोग रूस को संदेह की नज़र से देखते हैं क्योंकि ईरान के घरेलू मामलों में रूसियों की दखलंदाज़ी का पुराना और लंबा इतिहास रहा है।"
 
19वीं सदी में और 20वीं सदी की शुरुआत में ईरान को कई बार रूसी हमलों का सामना करना पड़ा था।
 
ईरानी इलाकों और उसके घरेलू राजनीति को नियंत्रण करने की रूस की कोशिशें कई बार कामयाब भी रहीं। साल 1979 की ईरानी क्रांति के लक्ष्यों में एक मक़सद सोवियत संघ का विरोध करना भी था।
 
लेकिन साल 2007 में पुतिन की ईरान यात्रा के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में गर्माहट आनी शुरू हुई। साल 1943 में जोसेफ़ स्तालिन की तेहरान यात्रा के बाद किसी रूसी नेता की ये पहली ईरान यात्रा थी।
 
हालांकि हामिद रज़ा अज़ीज़ी की नज़र में रूस और ईरान एक दूसरे के सहयोगी नहीं है, लेकिन वो ये ज़रूर कहते हैं कि दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंध बढ़ रहा है।
 
वो कहते हैं, "सीरिया के मोर्चे पर एक-दूसरे के आमने-सामने होने के बावजूद दोनों देशों के बीच ज़मीन पर काफ़ी सहयोग देखने को मिल रहा है। हम ये भी देख रहे हैं कि रूसी सैनिक ईरानी ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं। ये अभूतपूर्व है।"
 
'रूस, ईरान को यूक्रेन संघर्ष में खींचना चाहता है'
साल 2014 में क्राइमिया पर रूस के क़ब्ज़े के बाद पश्चिमी देशों ने अमेरिकी अगुवाई में रूस पर प्रतिबंध लगाए थे।
 
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में 'सेंटर फ़ॉर अरब एंड इस्लामिक स्टडीज़' के एक्सपर्ट आलम सालेह कहते हैं कि इसके बाद से ही रूस अमेरिकी असर को कम करने के लिए दुनिया भर में सहयोगी तलाश रहा है। इन हालात में ईरान से उसकी नज़दीकी के लिए माहौल बन गया और दोनों देशों के हित एक-दूसरे से जुड़ गए।
 
उन्होंने बीबीसी मुंडो को बताया, "रूस यूक्रेन संघर्ष में ईरान को खींचना चाहता है। वो ये सुनिश्चित करना चाहता है कि पश्चिमी देश ईरान की आलोचना करें और पश्चिमी दुनिया से उसकी दूरी और बढ़ जाए।"
 
वे कहते हैं, "रूस को ईरान के हथियारों की ज़रूरत नहीं है। वो अलग-थलग पड़ रहा है और ऐसे हालात में वो समर्थन जुटा रहा है।"
 
साल 2018 में तब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान न्यूक्लियर डील से समर्थन वापस लेने का एलान किया, उसके बाद से ईरान को रूस के सहयोग की ज़रूरत है।
 
हामिद रज़ा अज़ीज़ी कहते हैं, "ईरानी हुकूमत एक अजीब स्थिति में थी। उसे रूस के सहयोग की ज़रूरत थी।"
 
आलम सालेह की राय में ईरान को संयुक्त राष्ट्र में भी रूस के समर्थन की ज़रूरत है। ईरानी हुकूमत घरेलू मोर्चे पर विरोध प्रदर्शनों का सामना कर रही है। इन हालात में उसे रूस के आर्थिक और मिलिट्री सपोर्ट की ज़रूरत है।"
 
ईरान यात्रा के समय पुतिन ने आर्थिक सहयोग बढ़ाने का वादा किया था और ईरान के तेल और गैस फ़ील्ड में निवेश के समझौतों पर दस्तखत भी किया था।
 
'दोनों देश एक-दूसरे के पूरक नहीं हैं'
लेकिन बहुत से लोगों को शक़ है कि रूस ईरान की ज़्यादा मदद नहीं कर पाएगा, ख़ास तौर पर आर्थिक रूप से। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, पश्चिमी देशों के प्रतिबंध की वजह से रूस की अर्थव्यवस्था में इस साल 3।5 फ़ीसदी और अगले 2.3 फ़ीसदी की गिरावट की संभावना है।
 
हामिद रज़ा अज़ीज़ी कहते हैं कि रूस ईरान के रिश्तों में आर्थिक संबंधों का कोई बड़ा एंगल नहीं है। "आर्थिक रूप से रूस और ईरान एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं। दोनों देशों की निर्भरता हाइड्रोकार्बन की बिक्री से आने वाले राजस्व पर है।" और दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं का स्वरूप कुछ इस तरह से है कि दोनों के बीच सार्थक सहयोग की संभावना मुश्किल लगती है।
 
हामिद रज़ा अज़ीज़ी कहते हैं, "ईरान के लिए ऐसे उत्पादों का बाज़ार बनना मुश्किल है जिसकी रूस को ज़रूरत है। और यही बात रूस पर भी लागू होती है। अपनी ज़रूरतों के लिए दोनों मुल्कों को पश्चिमी देशों या चीन की तरफ़ देखना पड़ता है, जो हाल तक दोनों देश करते आए हैं।"
 
अज़ीज़ी आगाह करते हैं कि मॉस्को और तेहरान के द्विपक्षीय संबंधों का भविष्य ईरान की घरेलू परिस्थितियों पर निर्भर करता है। वो कहते हैं, "महसा अमीनी की मौत के बाद ईरान में अभी जो विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं, उससे अगर देश की राजनीतिक व्यवस्था में कोई बुनियादी बदलाव हुए तो रूस के साथ रणनीतिक सहयोग का अध्याय ख़त्म हो जाएगा।"
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