अभिनव गोयल, बीबीसी संवाददाता
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के नतीजों के बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार शाम दिल्ली स्थित बीजेपी मुख्यालय पहुंचे तो उन्होंने कहा, “आज की हैट्रिक ने 24( 2024 के लोकसभा चुनाव) की हैट्रिक की गारंटी दी है।
उन्होंने कहा कि इन चुनावों की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई देगी। इतना ही नहीं उन्होंने नतीजों को विपक्षी पार्टियों के लिए चेतावनी भी बताया, जो प्रगति और जनकल्याण की राजनीति के खिलाफ रहते हैं।
देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें से चार राज्यों के नतीजे रविवार को आए। बीजेपी अब तीन राज्यों में बहुमत से सरकार बनाने जा रही है। ये जीत बीजेपी के लिए कोई छोटी जीत नहीं है। पार्टी ने मध्य प्रदेश जैसे राज्य में, जहां बीजेपी पिछले 18 साल से सत्ता में हैं, वहां भी वापसी की और भी बहुमत से।
इसके अलावा राजस्थान और छत्तीसगढ़ में आए नतीजों ने भी राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया है, क्योंकि पिछले कुछ समय से इन राज्यों में बीजेपी का कमजोर बताया जा रहा था।
ऐसे में अब सबसे बड़ा सवाल है कि इस जीत का 2024 के आम चुनावों में कितना असर होगा? क्या इन नतीजों ने बीजेपी के लिए मिशन 2024 की राह आसान कर दी है? क्या पीएम मोदी सच में हैट्रिक लगाने वाले हैं?
मिशन 2024 कितना आसान
लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले ये आखिरी विधानसभा चुनाव थे। यही वजह है कि इन पांच राज्यों के नतीजों को 2024 के लिए सेमीफाइनल की तरह देखा जा रहा था, क्योंकि इन राज्यों में अच्छी खासी लोकसभा सीटें हैं, जो किसी भी पार्टी को केंद्र की सत्ता में विराजमान करने में अहम भूमिका अदा कर सकती हैं।
वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री मानते हैं कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी की जीत से काफी कुछ बदलने जा रहा है।
वे कहते हैं, “बीजेपी को मिशन 2024 के लिए हिंदी बेल्ट में न सिर्फ मनोवैज्ञानिक बल्कि निर्णायक बढ़त मिल गई है। अब बीजेपी के लिए 2024 की लड़ाई बहुत आसान हो गई है।"
"ये सारा मनोवैज्ञानिक खेल है। बीजेपी अब इन नतीजों के दम पर लोकसभा चुनाव तक देश भर में उत्सव नुमा माहौल बनाकर रखेगी, क्योंकि बीजेपी इवेंट, नेरेटिव और मुद्दों से भटकाने में माहिर है।”
इसमें कोई शक नहीं है कि बीजेपी हर चुनाव को पूरी शिद्दत से लड़ती है, फिर चाहे वह पार्षद का चुनाव हो, विधानसभा का हो या फिर लोकसभा का। इस चुनावी अभियान में पार्टी को आगे ले जाना का काम उसका काडर करता है, जो पूरे देश में फैला हुआ है।
हिंदुस्तान टाइम्स की नेशनल पॉलिटिकल एडिटर सुनेत्रा चौधरी कहती हैं कि इन तीन राज्यों की जीत ने बीजेपी के काडर में जोश भरने का काम किया है और अब वे 2024 के लिए ज्यादा फोकस नजर आएंगे।
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की जीत से चुनाव विश्लेषक योगेंद्र यादव मायूस नजर आते हैं।
बीबीसी से बातचीत में वे कहते हैं, “बीजेपी की इस जीत से हमें मायूसी है। हम जैसे लोग 2024 में देश में एक बड़ा बदलाव देखना चाहते हैं। आज के परिणामों के बाद हमारे जैसे लोगों के लिए वह पहले से ज्यादा मुश्किल हो गया है।”
वे कहते हैं, “कर्नाटक चुनाव में बीजेपी को हार मिली, जिसकी बाद यह संभावना और मजबूत हुई कि बीजेपी को हराया जा सकता है, लेकिन आज वह संभावना और कठिन हो गई है। इन तीन राज्यों में कांग्रेस का सीट जीतना अनिवार्य था, लेकिन अब उसके लिए भी आगे की लड़ाई बहुत मुश्किल हो गई है।”
बरकरार है 'मोदी मैजिक'?
साल 2014 में लोकसभा के चुनावी रंगमंच पर जैसे ही नरेंद्र मोदी ने कदम रखे, तो बीजेपी ने भारतीय राजनीति में इतिहास रच दिया।
पहली बार बीजेपी ने पूर्ण बहुमत से केंद्र में सरकार बनाई। 1984 में कांग्रेस की जीत के बाद 2014 में पहली बार बीजेपी ऐसी पार्टी बनी जिसने तीस सालों का रिकॉर्ड तोड़ते हुए अपने दम पर 283 सीटों पर जीत दर्ज की।
दूसरी परीक्षा साल 2019 में हुई और इस बार भी पीएम मोदी ने इसे पूर्ण बहुमत से पास किया, लेकिन अब सवाल 2024 का है? सवाल ये भी कि क्या अब भी देश में मोदी लहर चल रही है?
वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता कहते हैं, “बीजेपी को सबसे बड़ा फायदा नरेंद्र मोदी के होने से है। सीएसडीएस के मुताबिक नरेंद्र मोदी की पॉपुलैरिटी रेटिंग अभी भी 38 है, वहीं ज्यादातर विपक्षी नेता सिंगल डिजिट पर हैं।”
वे कहते हैं, “नरेंद्र मोदी अपनी छवि की बदौलत पार्टी की नैया पार कराने का मादा रखते हैं, इसलिए पार्टी चाहती है कि वे आगे रहें और उनके चेहरे पर ही चुनाव हो। अगर नरेंद्र मोदी को हटा देंगे तो बीजेपी में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसकी पैन इंडिया रीच हो।”
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में हमने देखा कि कैसे पीएम नरेंद्र मोदी ने ताबड़तोड़ रैलियां की। ज्यादातर राज्यों में मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किए बिना बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा।
वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री उस अवधारणा से ज्यादा सहमत नजर नहीं आते, जिसमें कहा जाता है कि राज्य के चुनाव स्थानीय मुद्दों पर और लोकसभा के चुनाव केंद्रीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं।
अत्री कहते हैं, “आज की तारीख में भी नरेंद्र मोदी हिंदी बेल्ट में अकेले सबसे बड़े वोट कैचर राजनेता हैं, उनका मुकाबला फिलहाल चेहरे के तौर पर कोई नहीं कर सकता।”
उनकी बात से हिंदुस्तान टाइम्स की नेशनल पॉलिटिकल एडिटर सुनेत्रा चौधरी कुछ सहमत नजर आती हैं, वे कहती हैं कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ को छोड़कर मध्य प्रदेश ऐसा राज्य था जहां बीजेपी ने पूरा चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा।
वे कहती हैं, “राजस्थान चुनाव में पीएम मोदी ने अपनी रैलियों में पेपर लीक और महिलाओं के साथ अपराध जैसे मुद्दों को बार-बार उठाया, लेकिन मध्य प्रदेश में बीजेपी 18 साल से थी, ऐसे में एंटी इनकंबेंसी की वजह से पार्टी के पास कहने के लिए कुछ खास नहीं था, तो उन्होंने पीएम मोदी का चेहरा सबसे आगे रखा, जिसने उन्हें जीत दिलाई।”
क्या इंडिया गठबंधन चुनौती दे पाएगा?
इसी साल जुलाई महीने में बीजेपी को 2024 में चित्त करने के लिए 26 पार्टियों ने हाथ मिलाया और नाम रखा-इंडियन नेशनल डिवेलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस यानी इंडिया
हालांकि यह विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बनाया गया है, यही वजह थी कि विधानसभा चुनावों में गठबंधन में शामिल पार्टियों ने अकेले ही अपना-अपना चुनाव लड़ा।
ऐसे में सवाल है कि क्या इन राज्यों में बीजेपी की जीत से 'इंडिया' गठबंधन की राजनीति और उसके भविष्य पर कोई फर्क पड़ेगा?
वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, “यह सही है कि 'इंडिया' गठबंधन विधानसभा के लिए नहीं है, लेकिन यह बेहतर होता कि वह इन चुनावों में भी साथ दिखाई देता। साथ होने से कांग्रेस को मनोवैज्ञानिक लाभ मिलता।”
वे कहते हैं, “मध्य प्रदेश में पांच से सात प्रतिशत का जो अंतर दिखाई दे रहा है, उसका सबसे बड़ा कारण समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस का व्यवहार है। अगर सपा और 'इंडिया' गठबंधन मध्य प्रदेश में साथ आते तो यह नुकसान नहीं होता।”
ऐसी ही बात वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता भी करते हैं। वे कहते हैं, “मध्य प्रदेश चुनाव में समाजवादी पार्टी पांच-सात सीट चाह रही थी, लेकिन कमलनाथ ने अखिलेश यादव के लिए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया, जो सही नहीं था। जिन्हें आप सहयोगी बनाना चाहते हो, उनके साथ इस तरह का व्यवहार करेंगे तो कैसे चलेगा?”
वे कहते हैं, “कई पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। उन्होंने कुल मिलाकर एक दो प्रतिशत वोट भी हासिल किया, जिसमें बीएसपी का नाम भी है। यह एक मौका था जब कांग्रेस पार्टी 'इंडिया' गठबंधन की नींव मजबूत कर सकती थी।”
वहीं चुनावी विश्लेषक तीन राज्यों में कांग्रेस की हार को 'इंडिया' गठबंधन के लिए अच्छा मानते हैं। वे कहते हैं, “अब 'इंडिया' गठबंधन का काम सरल हो जाएगा। पार्टियों के अंदर अंदरूनी इक्वेशन पहले से आसान हो जाएंगे। अगर कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन करती, तो मुश्किल होती, क्योंकि वह सीट शेयरिंग में ज्यादा बड़ी मांग करती।”
वे कहते हैं, “आज के धक्के के बाद कांग्रेस और गैर-कांग्रेस पार्टियों में भी यह अहसास होगा कि हमें गठबंधन की जरूरत है और एक दूसरे को ज्यादा बेहतर से समझेंगे। अब गठबंधन में सीट शेयरिंग का मामला आसान हो जाएगा।”
ऐसी ही बात हेमंत अत्री करते हैं, वे कहते हैं, “अब छोटी पार्टियां कांग्रेस से आंख में आंख डालकर सीटों पर बात कर सकती हैं, पहले कांग्रेस कह रही थी कि विधानसभा चुनावों के बाद गठबंधन में सीट शेयरिंग पर बात करेंगे, क्योंकि वह चाहती थी कि अच्छा प्रदर्शन करने के बाद उसका दबदबा बढ़ेगा जो नहीं हुआ।”
2024 में बीजेपी की मुश्किलें
2019 लोकसभा चुनाव से पहले भी इन्हीं पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए थे। तब बीजेपी को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन उस हार का असर आम चुनावों में बीजेपी को नहीं हुआ।
इसलिए भारतीय राजनीति में ज्यादातर चुनावी विश्लेषक ऐसे कयास लगाने से बचते हैं कि विधानसभा के नतीजे लोकसभा चुनाव में दोहराए जाएंगे।
वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता कहते हैं, “2019 में जब नरेंद्र मोदी पीएम बने तो उससे पहले पुलवामा और बालाकोट हो गया था, जिसके बाद देश प्रेम का माहौल बना और उससे बीजेपी का फायदा हुआ, लेकिन ऐसा हर बार नहीं हो सकता है, इसलिए इन चुनावों को लेकर बीजेपी पहले से ज्यादा सतर्क थी।”
शरद गुप्ता कहते हैं, “बीजेपी 10 साल से सत्ता है। 10 साल की एंटी इनकंबेंसी लोकसभा के चुनावों में दिखाई रहेगी। इसके अलावा बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों का सामना भी बीजेपी को करना पड़ेगा।”
वहीं वरिष्ठ पत्रकार हेमंत्र अत्री कहते हैं, “विपक्ष ने इन चुनावों में जाति सर्वे और ओबीसी के मुद्दे को पकड़कर रखा। राहुल गांधी ने हर चुनावी सभा में इसका जिक्र किया, जो कांग्रेस को बैकफायर किया है। कांग्रेस जातियों पर भिड़ती रही और बीजेपी धर्म को लेकर उड़ गई, क्योंकि जातियां धर्म का हिस्सा हैं और धर्म का पूरा टेंडर बीजेपी के पास है।”
लेकिन वे कहते हैं कि कांग्रेस और विपक्ष अपनी रणनीति में बदलकर बीजेपी को 2024 में चुनौती दे सकता है, बशर्ते उसे ग्राउंड पर काम करना होगा।