जितेंद्र कुमार को बिहार की राज्य शिक्षक पात्रता परीक्षा (STET) पास किए 7 साल हो चुके हैं। इस दौरान उन्होंने केंद्र द्वारा करवाई जाने वाली सेंट्रल टीचर एलिजिबलिटी टेस्ट (CTET) से लेकर मध्यप्रदेश, राजस्थान और दूसरे सूबों की परीक्षाओं में भी झंडे गाड़े, लेकिन उनके शब्दों में अब तक किसी तरह 'समय काट रहे हैं।
बीएड (बैचलर ऑफ़ एजुकेशन) वो पहले ही कर चुके थे। 36 की उम्र को छू चुके 2 बच्चों के पिता जितेंद्र कुमार ने इसके लिए कम जद्दोजहद नहीं की। ख़र्च चलाने के लिए क्लर्क से लेकर सुरक्षा गार्ड और बीमा कंपनी तक में काम का सहारा लिया।
वैसे अगर ये शिक्षक बहाल भी हुए तो वैसे शिक्षक होंगे जिन्हें बिहार में 'दोयम दर्जे' का टीचर माना जाता है। उन्हें पुराने सरकारी टीचरों (2000 के पहले वालों) के मुक़ाबले वेतन कम होगा। कई सुविधाएं नहीं मिलेंगी जिसके लिए शायद फिर संघर्ष करना पड़े, जैसे उनके पहले इसी श्रेणी में बहाल हो चुके वो लाख़ों शिक्षक कर रहे हैं जिन्हें सरकारी फाइलों में 'नियोजित शिक्षक' कहते हैं।
संयुक्त राष्ट्र की शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था यूनेस्को ने हालांकि भारत में शिक्षा व्यवस्था पर जारी एक रिपोर्ट में 'पारिश्रमिक में पैदा हो रही विषमता' को लेकर चिंता जताई है। इन सबके बावजूद कुर्जी (पटना) के अपने घर में हमारे साथ बैठे जितेंद्र कुमार ज़ोर देकर कहते हैं, 'हम शिक्षक बनेंगे, शिक्षक ही बनेंगे, हमको शिक्षक ही बनना है'।
शिक्षक बनने का सपना पालने वाले वो अकेले नहीं। साल 2012 में शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी (टेट) पास कर चुके धर्मेंद्र गोस्वामी से हमारी मुलाक़ात नालंदा ज़िले के परवलपुर क़स्बे में होती है, जहां बातचीत के दौरान वो कहते हैं कि वो 'उपहास का पात्र बन चुके हैं, सब कहते हैं सबको नौकरी हो गया, तुमको कब होगा। 10 साल बीत चुके हैं सुजीत कुमार पांडेय को 'टेट' किए। सरकारी शिक्षक की नौकरी हो जाएगी, इस उम्मीद में विकलांगता के बावजूद उनकी शादी हो गई।
बिहारशरीफ़ के क़ाग़ज़ी मोहल्ले में मौजूद एक स्टेशनरी की दुकान में बैठे सुजीत कहते हैं,"अब पत्नी को लगता है। जिसकी मेरे जैसे व्यक्ति से शादी हुई हो, वो हैंडीकैप्ड भी है। ये दुकान सुजीत कुमार पांडेय के हाल में ही मृत हो गए चाचा की है जिसे उन्हें चलाने को कहा गया है, वरना उनका 'जीवन पिता और भाई के सहयोग से चल रहा' था।
शिक्षा के अधिकार, 2009, के तहत वैसे शिक्षकों की नियुक्ति का का प्रावधान किया गया है, जो समूचित शैक्षणिक योग्यता रखते हों। अब सारे राज्यों और केंद्र द्वारा शिक्षकों के लिए पात्रता परीक्षा का प्रावधान है।
हालांकि ये नियुक्ति की गारंटी नहीं और बहाली अभी भी नियमों के अनुसार मेरिट लिस्ट और ज़रूरत के आधार पर होती है यानी हुकूमतों को जितने टीचरों के पदों की आवश्यकता लगेगी उतनी बहालियां वो करेंगी।
यूनेस्को द्वारा पिछले साल (2021) जारी स्टेट ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के कई राज्यों में 10 से 15 प्रतिशत स्कूल एक शिक्षक के बलबूते काम कर रहे हैं। तेलंगाना और गोवा के मामले में ये प्रतिशत 16 था।
स्कूलों में छात्र और शिक्षकों के अनुपात के मामले में बिहार, गुजरात, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के साथ सबसे निचले पायदान पर है। प्राइमरी स्कूल के लेवल पर सूबे में 60 बच्चों पर एक शिक्षक हैं, जबकि ये अनुपात 30 छात्रों पर एक टीचर का होना चाहिए।
संसद में एक प्रश्न के उत्तर में बताया गया कि 'समग्र शिक्षा अभियान' के तहत बिहार में 5.92 लाख प्राथमिक शिक्षकों के पद की स्वीकृति दी गई जिसमें 2.23 लाख रिक्त हैं। अगस्त के पहले हफ़्ते में (3 अगस्त, 2022), जब शायद बिहार में सरकार के फेरबदल की जोड़-तोड़ जारी थी, तब शिक्षक पात्रता परीक्षा पास कर चुके दर्जनों युवक बहाली की मांग को लेकर गर्दनीबाग़ के धरना चौक पर विरोध-प्रदर्शन में जुटे थे।
'बहुत मिला आश्वासन, हमें चाहिए विज्ञापन,' 'वंचित अभ्यर्थियों ने ठाना है, '7वें चरण की विज्ञप्ति लेकर जाना है', 'मुख्यमंत्री हाय-हाय, लड़कर लेंगे विज्ञप्ति' के नारों के बीच बिहार प्रारंभिक शिक्षक संघ (पात्रता परीक्षा पास कर चुके लोगों के संघ) के प्रदेश अध्यक्ष विवेक कुमार ने आरोप लगाया कि 'बिहार सरकार ने विज्ञप्ति को रोक रखा है, पिछले तीन सालों से आंदोलन पर आंदोलन करना पड़ रहा है। पिछले साल हमने गांधी मैदान से भिक्षा मांगकर विरोध प्रदर्शन किया था। ये चौथी बार है, जब हम विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं।
बिहार में शिक्षकों की बहाली का 7वां चरण शुरू करने की बात सरकार ने कही है। हालांकि ये आसान न होगा, क्योंकि बहाली का इंतज़ार कर रहे अभ्यर्थियों के मुताबिक़ सरकार की पॉलिसी ही दोषपूर्ण है, कोई सेंट्रलाइज़्ड चयन सिस्टम नहीं है, और पूरी प्रक्रिया हर बार नए सिरे से शुरू होती है। सुजीत कुमार पांडेय कहते हैं कि विज्ञप्ति आने के बाद सभी को फिर से फॉर्म भरना होगा, पुराना आवेदन और प्रक्रिया भंग हो जाती है और हर जगह के लिए अलग-अलग आवेदन देना होता है।
वो कहतें हैं,"मेरे यहां टीचर्स के मुक़दमे बहुत आते हैं। कुछ तो प्रोमोशन को लेकर होती है, कुछ दूसरे मतभेदों के कारण। बहाली को लेकर काफ़ी मुक़दमे होते हैं जिनकी बहाली नहीं वो पाई वो प्रक्रिया को लेकर या किसी तरह की धांधली के विरोध में अदालत चले जाते हैं। बहाली की मांग को लेकर जहां एक तरफ़ नारे बुलंद हो रहे हैं, वहीं शिक्षक की नौकरी पा गए टीचर्स को व्यवस्था और नियमों से शिकायतें हैं।
TET-STET उत्तीर्ण नियोजक शिक्षक संघ के प्रवक्ता अश्विनी पांडेय बताते हैं कि पुराने शिक्षकों और हाल के सालों में हुई बहालियों में वेतन का बहुत बड़ा फ़र्क़ है, तक़रीबन डेढ़ गुना से भी अधिक, लेकिन हमें ज़रूरी समझी जाने वाली सामाजिक सुरक्षा के प्रावधानों के लिए संघर्ष करना पड़ा है।
शिक्षक सुबोध कुमार सुमन कहते हैं कि नियोजन लाने का सरकार का उद्देश्य ही यही था कि जितने पैसों में एक व्यक्ति से काम करा रहे हैं, उसमें चार लोगों को लाया जा सके, सरकार लोगों की बेरोज़गारी का फ़ायदा उठा रही है।
कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम के तहत टीचर्स की बहाली जो कभी मध्यप्रदेश से शुरू हुई थी, धीरे-धीरे बिहार ही क्या उत्तर प्रदेश से लेकर तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, गुजरात, पंजाब और कई दूसरे सूबों में किसी न किसी रूप में जारी हो गई है। हालांकि बिहार समेत कई राज्यों ने शिक्षकों के कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम को ख़त्म करके उनकी नौकरी पूरे समय के लिए पक्की कर दी है। पुराने सरकारी टीचरों जितना ही वेतन और सुविधाओं का मुक़दमा हालांकि सरकार के पक्ष में है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी बिहार नियोजक शिक्षक बनाम सरकार के मुक़दमे में परमानेंट और टेंपररी शिक्षकों को अलग-अलग श्रेणी माना और समान काम, समान वेतन की दलील को नकार दिया यानी फ़ैसला शिक्षकों के ख़िलाफ़ हुआ।
शिक्षक अब राजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश में हैं और कह रहे हैं कि वर्तमान मुख्यमंत्री ने राज्य चुनाव के समय शिक्षकों के मामले को लेकर 'समान काम समान वेतन' का वायदा किया था जिसे वो पूरा करें, नहीं तो हम उनके ख़िलाफ़ भी सड़कों पर उतरेंगे। सड़क पर उतरने वाला बयान अश्विनी पांडेय ने तब दिया, जब हमने उनसे पूछा कि अगर तेजस्वी यादव वादा पूरा नहीं करते तो वो क्या करेंगे।
शिक्षक बनने को लेकर इतना संघर्ष क्यों?
अगस्त के धरने में शामिल एक आंदोलनकारी और शिक्षा पात्रता परीक्षा पास कर चुके आलोक यादव से हमने पूछा कि नौकरी और बहाली के लिए सालों इंतज़ार, और ठेके पर पहले की बनिस्बत कम पैसे और सुविधा पर जब नौकरी मिलती है, तब भी शिक्षक बनने को लेकर इतना संघर्ष क्यों मचा है?
आलोक यादव ने जवाब में कहा कि मोदी सरकार के आने के बाद केंद्र में नौकरियां कम हुई हैं, रेलवे का धीरे-धीरे निजीकरण किया जा रहा है, सरकारी बैंक बंद किए जा रहे हैं या उनका विलय हो रहा है तो बैंक की नौकरियों में कटौती हो रही है। दूसरी ओर, बिहार जैसे राज्य में प्राइवेट सेक्टर का नामोनिशान नहीं, तो एक बड़ा हुजूम बीएड की तरफ़ रुख़ करने लगा है।
याद रखने की ज़रूरत है कि पिछले दिनों जब रेलवे और फिर फौज में भर्ती के मामले पर आंदोलन हुआ था, तो उसकी तेज़ी सबसे अधिक बिहार और उत्तरप्रदेश में दिखी थीं। इधर अगस्त माह में ही केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के हवाले से आर्थिक जगत के जाने-माने अख़बार इकोनॉमिक टाइम्स में ख़बर छपी है कि 15 से अधिक की उम्र के सेगमेंट में नरेंद्र मोदी सरकार जल्द ही विदेशी निवेश के लिए नए नियम लाएगी ताकि युवकों में शिक्षा और तकनीकी क्षमता विकसित हो सके।
साधारण शब्दों में देखें तो शिक्षा के ही एक क्षेत्र में ये और अधिक निजीकरण की तरफ़ क़दम है। इस क्षेत्र में सरकारी निवेश घटेगा, ज़ाहिर है ट्रेनरों और शिक्षकों की बहालियां भी सरकारी क्षेत्र में कम होंगी। आर्थिक रूप से पिछड़े सूबों में प्राइवेट निवेश की उम्मीद दूर-दूर तक नहीं है।
दूसरी ओर शिक्षक की नौकरी की मांग कर रहे व्यक्ति की पटना में पिटाई के बाद ये भी साफ़ हो गया है कि इस मामले में बिहार की नई सरकार से कितनी उम्मीदें रखी जा सकती हैं।