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Written By BBC Hindi
Last Modified: रविवार, 18 सितम्बर 2022 (07:40 IST)

इतनी लंबी पदयात्राएं आखिर लोग कैसे कर लेते हैं?

इतनी लंबी पदयात्राएं आखिर लोग कैसे कर लेते हैं? - bharat Jodo yatra : How people do big padyatras
इमरान कुरैशी, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
क्या आपने कभी सोचा है कि गर्मी और उमस भरे मौसम में रोज़ाना 25 किलोमीटर पैदल चलना कैसा होता है और नेता आख़िर ऐसा कैसे कर लेते हैं? ये दूरी भले ही उस मेहनत के बराबर न हो जो किसान खेत जोतने में करते हैं या दूसरे समुदाय के लोग रोज़ी-रोटी कमाने के लिए करते हैं।
 
नेता हमेशा ही खुले में, जनता की आंखों के सामने में ऐसा करते हैं। इसे पिछले कुछ दिनों से तमिलनाडु और केरल में चल रही सबसे ताज़ा राजनीतिक पदयात्रा में भी देखा जा सकता है।
 
राहुल गांधी के नेतृत्व में हो रही कांग्रेस की 'भारत जोड़ो यात्रा' के संदर्भ में ये सवाल उठ रहा है कि अगर उन्हें रोज़ाना इस तरह की दूरी पैदल तय करनी पड़े तो उन्हें क्या करना चाहिए। इसके लिए उन्हें कितना फिट होना चाहिए। किस तरह की सावधानियां बरतनी चाहिए और अपने दिन का प्रबंधन कैसे करना चाहिए।
 
अधिकतर समय राजनेता अपने आरामतलब जीवन के लिए जाने जाते रहे हैं हालांकि 2000 के दशक के बाद की पीढ़ी ने शारीरिक रूप से फिट रहने की कोशिश भी की है।
 
एक मैरॉथन वॉक से पहले की ज़रूरतें
हमने स्वास्थ्य विशेषज्ञों से पूछा कि किसी को मैराथन वॉक शुरू करने से पहले किन-किन आवश्यकताओं पर ध्यान रखना चाहिए?
 
सेंटर फॉर स्पोर्ट्स साइंस के सीईओ डॉ। प्रलय मजूमदार कहते हैं, "अगर कोई व्यक्ति 40 साल से अधिक उम्र का है तो उसे कोई एरोबिक कार्यक्रम शुरू करने से पहले भी अपना लिपिड प्रोफ़ाइल और ईसीजी (इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम) कराना चाहिए ताकि ये समझा जा सके कि दिल पर कोई तनाव तो नहीं है। जिन लोगों का वज़न अधिक होता है या जो मोटे होते हैं उनके दिल की जांच करके पता किया जाता है कि कहीं उसमें कोई सरसराहट तो नहीं है।"
 
"जब कोई लंबी दूरी तक पैदल चलता है तो शरीर को अधिक ख़ून की ज़रूरत होती है, इसके लिए दिल को शरीर में अधिक रक्त प्रवाहित करना पड़ता है और इससे दिल पर दबाव पड़ सकता है। अगर दिल इस काम को करने के लिए मज़बूत नहीं है तो पैदल चलने वाले व्यक्ति को दिक्कत हो सकती है क्योंकि वो एक एथलीट नहीं है।"
 
तिरूवनंतपुरम के अनंतपुरी अस्पताल के कार्डियोलॉजिस्ट और सीएमडी डॉ. आनंद मार्तंड पिल्लई कहते हैं, "मूलरूप से इसमें तीन पक्षों का ध्यान रखा जाना चाहिए। सबसे पहले तो क्या व्यक्ति को किडनी या दिल से जुड़ी कोई पहले से चली आ रही बीमारी है। अगर ऐसा है तो ये जांच किया जाना ज़रूरी है कि क्या सब कुछ नियंत्रण में है। दूसरा, क्या व्यक्ति को ब्लड प्रेशर या हार्ट ब्लॉक की कोई समस्या है, क्योंकि ये अचानक से तीव्र हो सकती हैं। और तीसरा ये कि व्यक्ति कितना फिट है।"
 
डॉ. पिल्लई कहते हैं, "नियमित पैदल चलकर या योग करके अपने आप को फिट न रख पा रहा व्यक्ति कम से कम ये तो कर ही सकता है कि वो अपना ब्लड प्रेशर चेक कराए और ट्रेडमिल टेस्ट या टीएमटी कराए जो ईसीजी से जुड़ा होता है। इससे पता चलेगा कि शारीरिक अभ्यास के लिए उनका शरीर कितना तैयार है और क्या वो पैदल चल सकते हैं या नहीं।"
 
लंबी दूरी तक पैदल चलने के लिए एक व्यक्ति को कितना पानी पीना चाहिए और क्या खाना चाहिए?
 
डॉ. मजूमदार कहते हैं यदि व्यक्ति पदयात्रा करने के लिए फिट है तो उसके लिए पूरी पदयात्रा के दौरान ख़ुद को हाइड्रेटेड रखना (शरीर में पानी की ज़रूरत को पूरा करना) भी बेहद ज़रूरी है।
 
वो कहते हैं कि ऐसा करने के लिए नियमित अंतराल पर पानी पीते रहना ज़रूरी है। पानी पीने के लिए भी एक सही तरीका है जिसे अपनाना ज़रूरी है। आप धीरे-धीरे पानी पिएं, एक बार में ही गिलासभर पानी न पिएं। यदि कोई सीधे पानी गटकता है तो इससे उसे गैस से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।
 
लेकिन अपने राजनीतिक एजेंडा को पूरा करने के लिए पदयात्रा करने वाले लोग स्वास्थ्य से जुड़ी ऐसी बातों पर ध्यान देते रहे हैं।
 
भारत जोड़ो यात्रा
  • 7 सितंबर 2022 को शाम 5 बजे यात्रा कन्याकुमारी से शुरू हुई।
  • यात्रा का नेतृत्व राहुल गांधी कर रहे हैं।
  • ये यात्रा 150 दिन बाद कश्मीर जाकर ख़त्म होगी।
  • ये पदयात्रा 3,570 किलोमीटर की होगी और 12 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों से होकर गुजरेगी।
  • यात्रा के दौरान सवेरे तीन घंटे और शाम को तीन घंटे हर रोज़ 20 किलोमीटर पैदल कवर करने का कार्यक्रम है।
  • यात्रा में तीन तरह के पदयात्री शामिल हैं।
  • 100 भारत यात्री, जो यात्रा में शुरुआत से अंत तक इसमें रहेंगे। राहुल गांधी भारत यात्री के तौर पर शामिल हैं।
  • 100 अतिथि यात्री, जो उन राज्यों से होंगे, जहां से ये यात्रा नहीं गुज़र रही है।
  • 100 प्रदेश यात्री, उन प्रदेशों से होंगे जहां से यात्रा गुज़र रही होगी।
  • इस तरह से एक समय में कुल 300 पदयात्री इस यात्रा में शामिल होंगे।
 
पदयात्रा से क्या हासिल होता है?
भारत के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले महात्मा गांधी ने ब्रितानी सरकार के ख़िलाफ़ भारत की आज़ादी की लड़ाई में पदयात्रा का राजनीतिक इस्तेमाल किया था। पदयात्रा के विचार का जन्म यहीं से हुआ।
 
1930 में जब तत्कालीन ब्रितानी सरकार ने लोगों पर नमक पर टैक्स लगा दिया था तब महात्मा गांधी ने डांडी मार्च निकाला था। इस पदयात्रा में लाखों भारतीय उनके साथ जुड़ गए थे। तीन साल बाद महात्मा गांधी ने छुआछूत के ख़िलाफ़ एक और पदयात्रा निकाली।
 
इसके 17 साल बाद विनोबा भावे ने इस राजनीतिक तरीक़े का इस्तेमाल करके भूदान आंदोलन शुरू किया था। 1983 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भी भारत को और बेहतर तरीक़े से समझने के लिए तमिलनाडु से अपनी पदयात्रा शुरू की थी और एक तरह से कहा जा सकता है कि उन्होंने पदयात्रा के सिद्धांत को फिर से जीवित किया था।
 
चंद्रशेखर ने भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आम लोगों से बात करते हुए लंबा समय बिताया था। वो किसानों से कृषि की अर्थव्यवस्था से जुड़े सवाल करते थे, पीने के लिए पानी की उपलब्धता के बारे में पूछते थे और स्थानीय परंपराओं और संस्कृति को समझते थे।
 
इस पदयात्रा के दौरान हर दूसरे दिन एक डॉक्टर पदयात्रियों के ब्लड प्रेशर और स्वास्थ्य से जुड़े दूसरे पैरामीटर की जांच करता था। 25 किलोमीटर रोज़ाना की उस पदयात्रा के दौरान दोपहर में पदयात्री विश्राम करते थे। इस दौरान दूसरे पदयात्री, ख़ासकर बुजु़र्गों की, भी स्वास्थ्य जांच की जाती थी।
 
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बीएल शंकर उस दौर को याद करते हुए बीबीसी हिंदी से कहते हैं, "आपको याद होगा उस दौर में हमारे पास ऐसे कपड़े नहीं होते थे जो किसी तरह भीषण गर्मी से निबटने में हमारी मदद करें। उस दौर में सबसे अच्छे वो भूरे रंग के कैनवास जूते होते जिन्हें करोना नाम की एक कंपनी बनाती थी।"
 
लेकिन उस पदयात्रा के दौरान चंद्रशेखर ने जूते नहीं पहने थे। उस पदयात्रा के दौरान बात करते हुए चंद्रशेखर ने मुझे बताया था, "ऐसे जूते ही नहीं मिले जो मेरे पांव में फिट बैठें। हालांकि वैसे भी मैं जूते पहनने का आदी नहीं हूं। मैं लगातार अपने दोस्तों से कहता रहता हूं कि ऐसे चप्पल खरीदो जिन्हें मैं पहन सकता हूं। एक जोड़ी चप्पल एक या दो दिन में ही टूट जाते हैं।"
 
हाल फिलहाल के सालों में कांग्रेस नेता डॉ। वाईएस राजशेखर रेड्डी ने 2003 में राजनीतिक रूप से पदयात्रा का इस्तेमाल किया था और तेलगुदेशम पार्टी को राज्य की सत्ता से हटा दिया था। अविभाजित आंध्र प्रदेश में उन्होंने चुनाव जीत लिया था। बांद में आंध्र प्रदेश के बंटवारे के बाद उनके बेटे वाईएस चंद्रशेखर रेड्डी ने साल 2017 में प्रदेशभर की पदयात्रा निकाली और 2019 में चुनाव जीता।
 
कर्नाटक में बीजेपी की पहली सरकार के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने लोहे के अवैध खनन के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने के लिए राजधानी बैंगलुरू से बेल्लारी तक पदयात्रा निकाली थी। इस पदयात्रा ने पिछड़े वर्ग के वोटों को कांग्रेस के साथ जोड़ा था और साल 2013 में राज्य में कांग्रेस की सरकार आ गई थी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और कई अन्य राज्यों के नेताओं ने चुनावों के दौरान राज्य के लोगों से जुड़ने के लिए पदयात्राएं निकाली हैं।
 
स्वास्थ्य को लेकर कितने जागरुक हैं आज के पदयात्री?
कांग्रेस नेता रमेश चेन्नीताला से जब पूछा गया कि क्या उन्होंने पदयात्रा शुरू करने से पहले मेडिकल चेकअप कराया है तो उन्होंने कहा, "कैसी तैयारी, मैं रोज़ाना 45 मिनट पैदल चलता हूं और योग करता हूं। मुझे किसी डॉक्टर के पास जाने की ज़रूरत नहीं है। योग इसमें बहुत मददगार है। मैं अभी आपसे बात कर रहा हूं और कहीं भी दर्द की कोई शिकायत नहीं कर रहा हूं। ये योग और पैदल चलने की वजह से ही है। मुझे किसी तरह की कोई समस्या नहीं है।"
 
64 वर्षीय रमेश इससे पहले केरल में भी 2021 विधानसभा चुनावों से पहले लंबी पदयात्रा निकाल चुके हैं। वो कहते हैं कि पदयात्रा के दौरान वो ख़ूब पानी पीते हैं। वो अपने साथ यात्रा कर रहे साथियों को भी दोपहर में विश्राम के समय के दौरान योग करने की सलाह देते हैं।
 
इंडियन यूथ कांग्रेस के मीडिया प्रमुख राहुल राव उन 150 स्वयंसेवकों में शामिल हैं जो राहुल गांधी के साथ पदयात्रा कर रहे हैं। राहुल गांधी कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक 3,570 किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं। इस दौरान पदयात्री नारा लगा रहे हैं- 'नफ़रत छोड़ो भारत जोड़ो'। वो कहते हैं कि तटीय प्रदेशों की उमस की वजह से वो गर्मी महसूस कर रहे हैं।
 
राहुल राव कहते हैं, "मैं हर आधे घंटे के बाद कम से कम एक लीटर पानी पी रहा हूं। मुझे पैदल चलने की आदत है इस वजह से और कोई परेशानी नहीं हो रही है।"
 
पदयात्रा में चल रहे दूसरे लोगों की तरह ही राव भी रोज़ाना सुबह साढ़े चार बजे अपना दिन शुरू करते हैं। वो सब कंटेनर में सोते हैं जिसमें 12 बिस्तर लगे होते हैं।
 
राहुल राव बताते हैं, "ये किसी डॉरमेटरी की तरह है। हमें सुबह साढ़े छह बजे होने वाली प्रार्थना सभा के लिए तैयार रहना होता है और इसके बाद नाश्ता करना होता है। हम 11।30 बजे के आसपास ठहरते हैं। हम फिर दोपहर का खाना खाते हैं और विश्राम करते हैं और फिर दोबारा शाम को 4।30 बजे पैदल चलना शुरू करते हैं।"
 
बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस कोल्से पाटिल, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और केरल कांग्रेस के नेता रहे एमएम हसन भी उन वरिष्ठ नेताओं में हैं जो पदयात्रा की ताल में ताल मिला रहे हैं। दिग्विजय सिंह और एमएम हसन की उम्र 75 साल से अधिक है।
 
जस्टिस कोल्से पाटिल ने बीबीसी से कहा, "मैं इसी सप्ताह 80 साल पूरे कर चुका हूं। मैंने अपना कोई मेडिकल टेस्ट नहीं कराया है और न ही मैंने पैदल चलने की ही कोई प्रेक्टिस की है। बस मैं अपनी सेहत का पूरा ख़याल रखता हूं। यात्रा में शामिल होने के लिए मैं ख़ुद ही कन्याकुमारी गया था। मैं मानता हूं कि भारत को विभाजनकारी विचारों से बचाने के लिए आज हमें भारत जोड़ो की ज़रूरत है।"
 
वहीं राहुल गांधी ने पैदल चल सकने की अपनी काबिलियत से पार्टी के कई कार्यकर्ताओं को चौंका दिया है। कर्नाटक के एक कार्यकर्ता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा "वो फिटनेस फ्रीक हैं। उनके साथ कदम मिलाकर चलना मुश्किल हो जाता है।"
 
वहीं केरल महिला कांग्रेस की राज्य सचिव शीबा रामचंद्रन ने पदयात्रा शुरू करने से पहले स्वास्थ्य से जुड़ी सभी जांच कराई है और हर प्रोटोकॉल को पूरा किया है। शीबा रोज़ाना कुछ किलोमीटर पैदल चला करती थीं लेकिन यात्रा में स्वयंसेवक बनने के लिए पंजीकरण कराने के बाद उन्होंने रोज़ाना कम से कम पांच किलोमीटर पैदल चलने का अभ्यास किया और बाद में उन्होंने इसे दस किलोमीटर तक बढ़ाया।
 
शीबा कहती हैं, "पदयात्रा शुरू करने से पहले मैंने अपने स्वास्थ्य की जांचें कराई थी। मेरा भाई डॉक्टर है। सभी मेडिकल जांच करने के बाद उसने कहा कि तुम यात्रा करने के लिए स्वस्थ हो। मैं इस यात्रा में शामिल होने के लिए बहुत उत्सुक थी क्योंकि ये एक ऐतिहासिक घटना है जो भारत को जोड़ने का अहम संदेश दे रहा है। भारत को जोड़ना हमारी प्राथमिकता है, पार्टी का काम इसके बाद आता है।"
 
लेकिन ऐसा नहीं लगता कि यात्रा में शामिल सभी लोगों ने शीबा का अनुकरण किया है।
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