#Balakot: 'पाक सेना चाहती है कि नरेंद्र मोदी भारत का चुनाव जीतें'
भारत ने पाकिस्तान के भीतर घुस कर हवाई हमला करके चरमपंथी ठिकाना नष्ट करने और बड़ी तादाद में चरमपंथियों को मारने का दावा किया है। पाकिस्तान ने अपने वायु क्षेत्र में उल्लंघन की बात तो स्वीकार की है लेकिन हमले में किसी तरह के नुक़सान होने की बात को नहीं माना है।
हालांकि पाकिस्तान के राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व ने कहा है कि भारत के आक्रमण का सही समय और जगह पर जबाव दिया जाएगा। ऐसे में पाकिस्तानी सेना पर जवाबी कार्रवाई करने का भारी दबाव है। लेकिन क्या पाकिस्तानी सेना भारत के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई कर पाएगी?....दक्षिण एशिया मामलों की सुरक्षा विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर क्रिस्टीन फ़ेयर का मानना है कि पाकिस्तान शायद जवाबी कार्रवाई न कर पाएं।
पढ़िए क्रिस्टीन फ़ेयर का नज़रिया
पाकिस्तान ने कहा है कि कुछ नुक़सान नहीं हुआ है। पाकिस्तानी वायु सेना का कहना है कि उन्होंने तुरंत हमले का जवाब दिया और भारतीय विमानों को खदेड़ दिया और भारतीय लड़ाकू विमान जल्दबाज़ी में अपना पेलोड गिराकर भागे हैं।
बयानबाज़ी भरा ये रवैया अपना कर पाकिस्तान वास्तव में ये कहना चाहता है कि इतना साहसिक जवाब देने की ज़रूरत नहीं है जितना साहसिक हमला करने का भारत ने दावा किया है। भारत ने कहा है कि 12 मिराज विमानों ने स्पष्ट रूप से पाकिस्तानी क्षेत्र में घुसकर बमबारी की है। ये वास्तव में एक बेहद साहसी हमला है और पाकिस्तानी वायुसेना की दिक़्क़त ये है कि उसके पास कहने के लिए कुछ नहीं है।
#India struck biggest training camp of Jaish-e-Mohammad in Balakot; a very large number of terrorists, trainers, senior commanders and fidayeen jihadis were eliminated: Sh Vijay Gokhale, Foreign Secretary pic.twitter.com/D8kk4gWfWI
समस्या ये है कि पाकिस्तान के पास जवाबी कार्रवाई करने का फ़ायदा है। लेकिन मुझे लगता है कि पाकिस्तान इस मामले को ठंडा होने देगा। पाकिस्तान के ऊपर इस मामले को और आगे न बढ़ने देने का अंतरराष्ट्रीय दबाव बहुत ज़्यादा है। भारत ने क्या किया है और क्या नहीं किया है इसकी हमें अभी पूरी जानकारी नहीं है। लेकिन पाकिस्तान उसे कम करके बता रहा है और पाकिस्तान का ऐसा करना एक सकारात्मक संकेत है।
हम देख रहे हैं कि यूरोपीय यूनियन, ऑस्ट्रेलिया और कई अन्य देश पाकिस्तान से जवाबी कार्रवाई न करने के लिए कह रहे हैं और हम चाहेंगे कि अमरीकी राष्ट्रपति मज़बूती से इसमें दख़ल दें और पाकिस्तान को रोकें। और चीन भी नहीं चाहता है कि पाकिस्तान फ़िलहाल किसी युद्ध में शामिल हो जाए।
Indian aircrafts’ intrusion across LOC in Muzafarabad Sector within AJ&K was 3-4 miles.Under forced hasty withdrawal aircrafts released payload which had free fall in open area. No infrastructure got hit, no casualties. Technical details and other important information to follow.
ऐसे में मुझे लगता है कि पाकिस्तान कोई बड़ी कार्रवाई नहीं करेगा। लेकिन अभी कुछ भी पूरे भरोसे के साथ कहना जल्दबाज़ी ही होगा क्योंकि अभी हम इस घटनाक्रम के शुरुआती दौर में हैं। लेकिन पाकिस्तान के नज़रिए से देखा जाए तो ये नियंत्रण रेखा के पास किया गया हमला नहीं बल्कि नियंत्रण रेखा को पार करके पाकिस्तान में घुसकर किया गया हमला है, भले ही विमान नियंत्रण रेखा के रास्ते ही आए हों।
ऐसे में अगर पाकिस्तान ये तय करता है कि जवाब दिया जाना ज़रूरी हो तो बहुत संभव है कि पाकिस्तान नियंत्रण रेखा के क़रीब कश्मीर में कुछ करे या फिर जैसा कि कुछ साल पहले उत्तरी अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास हुआ था वैसे ही गोला-बारूद दाग़े।
लेकिन जिस तरह का भारी अंतरराष्ट्रीय दबाव पाकिस्तान पर है उसे देखते हुए मुझे लगता है कि पाकिस्तान जवाब हवाई हमला नहीं करेगा। हम इस विकल्प को पूरी तरह ख़ारिज नहीं कर सकते हैं लेकिन मैं इसलिए इसे ख़ारिज कर रही हूं क्योंकि पाकिस्तान भारतीय हमले को बहुत कम करके पेश कर रहा है।
पाकिस्तान ये तो कह रहा है कि वो अपनी "पसंद के समय और जगह" पर भारत को जवाब देगा लेकिन पाकिस्तान ये भी कहा रहा है कि उसने भारतीय विमानों को बम गिराने से पहले ही खदेड़ दिया।
इन बातों से मुझे ये संकेत मिलता है कि पाकिस्तान हवाई हमले जैसी बेहद आक्रामक कार्रवाई नहीं करेगा। ऐसे में पाकिस्तानी सेना की प्रतिक्रिया नियंत्रण रेखा या फिर उत्तरी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बमबारी तक ही सीमित रह सकती है। जब बिन लादेन को मारने के लिए अमेरिका ने हमला किया था तब कई हेलिकॉप्टर पाकिस्तानी क्षेत्र में घुसे थे। तब पाकिस्तानी वायुसेना ने कोई भी कार्रवाई नहीं की थी। यानी जो हुआ है उसे हम पहले भी देख चुके हैं।
यहां जो समस्याएं हैं लोग उन्हें लेकर अक्सर भ्रम में रहते हैं। भारत के पास एक बड़ी पारंपरिक सेना है। लेकिन इसकी बहुत सी क्षमताएं इस बात पर निर्भर करती हैं कि वो लड़ कहां रही है, जो की नियंत्रण रेखा भी हो सकती है और अंतरराष्ट्रीय सीमा भी। संख्याबल देखकर आपको क्षमताएं अलग लग सकती हैं लेकिन जब ये सेनाएं (भारत और पाकिस्तान की सेनाएं) नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास तैनात होती हैं तो इनकी क्षमता बहुत हद तक बराबर ही होती है।
एक लंबे युद्ध की स्थिति में ही भारत अपनी सेना की पूरी क्षमता को लगा सकता है और अलग-अलग हिस्सों में तैनात सेना को सीमा पर ला सकता है। यही मेरा आकलन है, और मुझे लगता है कि ज़्यादातर अमरीकी विश्लेषक भी यही नज़रिया रखते हैं कि एक छोटे युद्ध में भारत या पाकिस्तान, किसी के पास भी निर्णायक जीत हासिल करने की क्षमता नहीं है।
ये तब है जब भारत ने बड़े पैमाने पर अपनी सेना का आधुनीकीकरण किया है। भारत के पास बड़ी पारंपरिक सेना है और इसकी समस्या ये है कि पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसिया इसकी टुकड़ियों के मूवमेंट का आसानी से पता लगा लेती हैं।
मेरा मानना है कि छोटे सीमित युद्ध में भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे पर निर्णायक जीत हासिल नहीं कर पाएंगे। और भारत और पाकिस्तान के बीच यदि युद्ध होता है तो वो छोटा ही होगा क्योंकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इन दो परमाणु संपन्न देशों के बीच लंबा युद्ध होने नहीं देगा।
हमले का चुनावों से सीधा संबंध
मैं बार-बार ये कहती रही हूं कि इन हमलों का संबंध भारत में होने वाले आम चुनावों से भी है। भारत में हुए किसी भी हमले की व्याख्या चुनाव नहीं कर सकते हैं क्योंकि भारत में हमले होते रहे हैं।लेकिन जिस तरह का हमला पुलवामा में हुआ है उससे पता चलता है कि हमले को काफ़ी सोच-समझकर अंजाम दिया गया है।
हमले में सैन्यबलों को निशाना बनाया गया। ये बेहद भड़काने वाला हमला है क्योंकि भारतीय अपनी सेना को लेकर बेहद भावुक हैं। ये अमरीकियों से उलट हैं। अमेरिका में जब आम लोग मारे जाते हैं तब जनता भड़कती है, इसके उलट भारत में जब सैनिक मारे जाते हैं तब जनता भड़क उठती है।
हमले में सीआरपीएफ़ को निशाना बनाया गया, ये अर्धसैनिक बल भारत के सबसे कम फ़ंड वाले बलों में से एक है। जो हमला किया गया वो बेहद वीभत्स था। जैश-ए-मोहम्मद ने साल 2000 के बाद से कोई आत्मघाती हमला नहीं किया था। 19 साल बाद ये हमला किया गया और इसका उद्देश्य ही भावनाएं भड़काना था। हमले का समय भी बेहद सोच-समझकर चुना गया और इसी वजह से हमें ऐसी भारी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।
भारत के लोग भले ये ना सुनना चाहें लेकिन सच ये है कि भारत के चुनावों में मोदी की जीत से सबसे ज़्यादा फ़ायदा पाकिस्तान के डीप स्टेट को ही होता है। इसकी वजह ये है कि पाकिस्तान में इस समय कई तरह के घरेलू दबाव हैं। सबसे बड़ी समस्या पश्तून आंदोलन की है जो पाकिस्तान की अखंडता के लिए बड़ा ख़तरा है। बलूचिस्तान में चल रहा संघर्ष भी पाकिस्तान के लिए ख़तरा है। एक मज़बूत भारत की ओर से ख़तरा पाकिस्तान को आंतरिक तौर पर एकजुट करता है।
अगर पाकिस्तान के नज़रिए से देखें तो कुछ चरमपंथियों का मारा जाना उसके रणनीतिक एजेंडे को प्रभावित नहीं करता है। लेकिन भारत में मोदी की जीत सुनिश्चित करने के लिए हमला करना पाकिस्तानी डीप स्टेट की रणनीतिक ज़रूरतों से मेल ज़रूर खाता है।
पाकिस्तानियों में कांग्रेस की जीत उस तरह से हिंदू अंध-राष्ट्रवादी भारत- जिसमें मुसलमान हशियों पर हों- का डर पैदा नहीं कर पाती है जिस तरह से बीजेपी की जीत करती है।
मैं बार-बार ज़ोर देकर ये कहती रही हूं कि हमले का समय और तरीक़ा भारतीय चुनावों में मोदी की जीत सुनिश्चित करने के लिए हुआ दर्शाता है। इससे पहले भारतीय चुनावों में मोदी की जीत सुनिश्चित नहीं थी लेकिन अब जो हालात हैं उनमें मोदी का जीतना लगभग तय है और यही पाकिस्तानी ख़ुफ़िया तंत्र चाहता है।
क्योंकि एक मज़बूत भारत, ऐसा भारत जिससे पाकिस्तान डरे, पाकिस्तानियों में अधिक भ्रम पैदा करता है और उन्हें पाकिस्तानी सेना के पीछे खड़ा कर देता है भले ही पाकिस्तानी सेना पश्तूनों को मारने जैसे बेहद अलोकप्रीय काम करे।
भारत के लोगों को ये भी समझना होगा कि 'पाकिस्तानी डीप स्टेट को मोदी की जीत से फ़ायदा पहुंचता है' के तर्क का ये मतलब क़त्तई नहीं है कि हमले का कोई नाता मोदी से है। लेकिन मोदी की जीत पाकिस्तानी सेना की ज़रूरत है क्योंकि इससे वो पश्तूनों और बलूचों पर किए जा रहे अत्याचारों को छुपा सकती है।
(प्रोफ़ेसर क्रिस्टीन फेयर से बात की बीबीसी संवाददाता दिलनवाज़ पाशा ने।)