दिलीप कुमार शर्मा बीबीसी हिंदी के लिए, असम के जेलेंगी टूप गांव से
राष्ट्रीय राजमार्ग 37 से महज 10 किलोमीटर अंदर की तरफ बसा जेलेंगी टूप गांव तक पक्की सड़क जाती है लेकिन वहां मौजूद लोक निर्माण विभाग के रास्ते पानी में डूबे हुए हैं। गांव में जिधर नजर दौड़ाएं, पानी ही पानी और उसमें डूबे मकान दिखाई पड़ रहे थे। जेलेंगी टूप गांव में सात सरकारी स्कूल, एक दवाखाना और एक पोस्ट ऑफ़िस है लेकिन फ़िलहाल सबकुछ बाढ़ के पानी में है।
रविवार को एक ग़ैर-सरकारी संगठन के लोग इस बाढ़ प्रभावित गांव में राशन के पैकेट बांटने पहुंचे थे लेकिन बारिश और वहां भरा बाढ़ का पानी देखकर उन लोगों ने गांव के अंदर जाने की हिम्मत नहीं की।
बाद में संगठन ने गांव के बाहर ही बाढ़ पीड़ितों को राहत सामग्री लेने के लिए बुलाया।
केले के पेड़ और बाँस से बनी नाव ( जिसेअसमिया भाषा में भूर कहते है) चलाकर राहत सामग्री लेने आई 13 साल की रीतामोनी ( बदला हुआ नाम) ने बीबीसी से कहा,"हमारे गांव में पिछले कई दिनों से बाढ़ का पानी भरा हुआ है, इसलिए कहीं भी आने-जाने के लिए इसी नाव का इस्तेमाल करते हैं। पानी से डर लगता है लेकिन जहां ज़्यादा पानी है, मैं उस तरफ़ अपनी नाव लेकर नहीं जाती।"
गांव के एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली रीतामोनी का विद्यालय कोरोना वायरस के कारण पिछले तीन महीने से बंद है। वो कहती हैं," अभी स्कूल बंद है। हमारे कई शिक्षक ऑनलाइन क्लास करवा रहे हैं लेकिन घर में बाढ़ का पानी भरा है।अभी पढ़ाई ठीक से नहीं हो पा रही है।"
सरकारी मदद के नाम पर तीन किलो चावल, एक किलो दाल
राहत सामग्री लेने वहीं पास खड़ी जेलेंगी टूप गांव की निरु बरुआ कहती हैं, "बाढ़ के पानी में डूबे हुए मकान और गांव का नज़ारा देखना है तो गांव के अंदर जाना होगा। हमारे घर में कमर तक पानी है। कोरोना के कारण पिछले तीन महीने से काम-धंधा बंद पड़ा है और खेत पानी में डूब गए हैं। बाढ़ को एक महीना हो गया है और सरकार ने राशन के नाम पर केवल एक बार तीन किलो चावल और एक किलो दाल दी है। घर में राशन नहीं है। किसी ने कहा कि एनजीओ वाले राशन बांट रहे हैं इसलिए नाव से यहां राशन लेने आई हूं।"
47 साल की निरु अपनी आर्थिक स्थिति का ज़िक्र करते हुए कहती है,"हमारे पास लकड़ी वाली देसी नाव खरीदने के पैसे नहीं हैं। पांच लोगों की क्षमता वाली छोटी लकड़ी की नाव 20 हज़ार रुपये की आती है। इतना पैसा कहां से लाएं? इसलिए केले के पेड़ और बाँस से बनी नाव से ही आना-जाना करते है। एक तरफ़ कोरोना का डर है और अब बाढ़ ने हम सबका जीवन मुश्किल में डाल दिया है।"
निरु से बात करने के कुछ देर बाद मैं एक देसी नाव से गांव के उस हिस्से में पहुंचा, जहां करीब सभी घर बाढ़ के पानी में डूबे हुए थे। उस समय एक परिवार के कुछ लोग घर के अंदर घुस आए पानी से बचने के लिए बांस की ऊंची चांग बना रहे थे।
इतने कम राशन में कैसे गुज़ारा होगा?
घर के अंदर से बात करते हुए 51 साल के रोमा पाचोनी ने कहा,"हम लोग करीब एक महीने से बाढ़ की चपेट में हैं। बारिश के कारण पानी कम होने का नाम नहीं ले रहा। बांस की यह चांग रात को सोने के लिए बना रहे हैं।अभी पता नहीं अगले कितने दिनों तक इस बाढ़ के पानी में रहना होगा।"
घर के अंदर कमर से ऊपर तक भरे पानी को दिखाते हुए पाचोनी कहते हैं, "पानी के कारण लकड़ी का फ़र्नीचर ख़राब हो गया है। जो कुछ बचा है उसे सुरक्षित रखने के लिए ही बांस की चांग बनाई है। ऐसी मुश्किल की घड़ी में कोई हमारी ख़बर तक लेने नहीं आया। सरकार से राहत के नाम पर हम छह लोगों के परिवार को एक बार छह किलो चावल और एक किलो दाल मिली थी। जब काम-धंधा ही नहीं है तो इतने कम राशन में कोई कैसे गुजारा करेगा? हम चाहते हैं कि सरकार गांव से पानी बाहर निकालने में मदद करें।"
पानी में घिरे जेलेंगी टूप गांव में थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर नाव से गुजर रहे बिनोंदो चंद्र बरूआ से मुलाकात हुई।
बाढ़ से उपजे हालात से बेहद परेशान बरूआ कहते हैं,"बाढ़ हर साल आती है लेकिन इस बार बारिश के कारण जो पानी जमा हुआ उससे स्थिति काफी बिगड़ गई । खेती-बाड़ी से गुजारा कर रहे थे लेकिन अब राहत वाला राशन लेने की नौबत आ गई है। अभी यह मुसीबत आगे कई दिनों तक रहेगी।"
एक भी परिवार बाढ़ के कहर से नहीं बचा
असम के टियोक विधानसभा के अंतर्गत आने वाले जेलेंगी टूप गांव में अधिकतर लोगों की जीविका खेती और मछली पालन पर टिकी है। लेकिन बाढ़ ने खेत और तालाब दोनों ही बर्बाद कर दिए है।
गांव में पहुंचने के लिए इस समय केवल नाव ही एकमात्र साधन है। जिनके घरों में देशी नाव है वे आपातकालीन स्थिति में वहां से निकल सकते है। जो आर्थिक तौर पर ज़्यादा कमज़ोर लोग हैं, वो जोख़िम से भरे केले के पेड़ और बांस से बनी नाव के सहारे चल रहे हैं।
दरअसल जेलेंगी टूप गांव में बाढ़ का खतरा ब्रह्मपुत्र और खासकर मितोंग नदी से ज़्यादा रहता है लेकिन सरकारी स्कूल के शिक्षक सुशील सैकिया की माने तो इस बार गांव में लगातार हुई मूसलधार बारिश के कारण बाढ़ आई है।
करीब 400 परिवारों की आबादी वाले इस गांव में हर साल बाढ़ आती है लेकिन इस साल बाढ़ के कहर से एक भी घर बच नहीं पाया है।
जेलेंगी टूप जनजाति माध्यमिक विद्यालय के सहायक शिक्षक सैकिया कहते हैं,"मितोंग नदी का पानी ख़तरे के निशान से ऊपर बह रहा है। ब्रह्मपुत्र भी पानी से भरा हुआ है। इसलिए हमारे गांव का पानी बाहर नहीं निकल पा रहा है। अभी बाढ़ की स्थिति में सुधार होने में और समय लगेगा। अगले एक महीने तक लोगों को ऐसे ही जीना पड़ेगा। मितोंग नदी का पानी जब कम होगा तब गांव से पानी बाहर निकालने के लिए स्विस गेट खोला जाएगा।"
100-200 रुपये के लिए तरसते लोग
गांव में अधिकतर लोग किसान हैं और अगर अगले एक महीने तक बाढ़ में रहना पड़ा तो इनकी जीविका कैसे चलेगी?
इसके जवाब में 54 साल के सैकिया कहते हैं," अब हालात ये हैं कि लोगों को खाने-पीने की परेशानी से गुजरना पड़ रहा है। आपने देखा होगा,राहत में मिल रहे तीन किलो चावल लेने के लिए लोग ख़तरा उठाकर केले के पेड़ वाली नाव से जा रहे हैं। कोरोना वायरस के चलते मज़दूरी करने वाले लोग भी घर पर बैठे हैं। लोग उधार लेकर गुजारा कर रहे हैं। कई बार 100-200 रुपये मांगने के लिए लोग हमारे घर आते हैं। यक़ीन मानिए, ये सब देखकर बहुत बुरा लगता है।"
इससे पहले जेलेंगी टूप गांव में 1987 में बड़ी बाढ़ आई थी लेकिन उस समय भी हालात ऐसे नहीं हुए थे।
गांव के लोगों को इस बात की भी चिंता है कि जब बाढ़ का पानी निकल जाएगा, उसके बाद कीचड़ और दुर्गंध से होने वाली बीमारी से निपटना होगा और जब तक हालात पूरी तरह सामान्य होंगे, इलाके में दोबारा बाढ़ आने का समय आ जाएगा।
असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा शनिवार को जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार असम में अब भी 20 जिले के 1295 गांव बाढ़ के पानी में डूबे हुए हैं। 10 लाख 62 हज़ार 764 लोग बाढ़ अब भी बाढ़ से प्रभावित है।
इस रिपोर्ट के अनुसार सरकार द्वारा खोले गए 206 राहत शिविरों में 29,220 लोगों ने शरण ले रखी है। इससे पहले राज्य के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनावाल ने मीडिया से कहा था कि असम में इस साल आई बाढ़ से अब तक 70 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। राज्य में बाढ़ से मरने वालों की संख्या 109 हो गई है।
क्या कहता है प्रशासन
राहत सामग्री को लेकर जेलेंगी टूप गांव वालों के आरोपों का जवाब देते हुए जोरहाट ज़िले की उपायुक्त रोशनी कोराती ने बीबीसी से कहा, "बाढ़ प्रभावित इलाकों में काम कर रहें हमारे सर्किल अधिकारी एक आकलन के बाद यह तय करते हैं कि किन लोगों को राहत सामग्री देनी है। जेलेंगी टूप के बाढ़ पीड़ितों में भी प्रशासन ने अबतक दो बार राहत सामग्रियां बांटी हैं। उस गांव में तीसरे लहर के बाद फिर से बाढ़ का पानी आया है।''
रोशनी कहती हैं, ''कुछ ग़ैर सरकारी संगठन भी राहत सामग्री के तौर पर चावल-दाल बाढ़ पीड़ितों में बांट रहे हैं, लेकिन कई बार एक ही व्यक्ति को बार-बार राहत मिल जाती है और कुछ लोग छूट जाते है। इसलिए हमने सभी एनजीओ से कहा है कि वो सरकारी अधिकारी के साथ तालमेल बैठाकर ही राहत सामग्रियां बांटें, ताकि ठीक तरीके से सभी लोगों तक राहत पहुंच सके।"
जेलेंगी टूप गांव में काम कर रही सर्किल अधिकारी आकाशी दुवराह कहती हैं, "अब तक इस गांव के 400 बाढ़ प्रभावित परिवारों को दो बार राहत सामग्रियां दी गई हैं। राहत वितरण नियमों के अनुसार तीन दिनों के लिए बाढ़ पीड़ित प्रत्येक व्यक्ति को एक किलो 800 ग्राम चावल, 300 ग्राम दाल और 90 ग्राम नमक दिया जाता है।"