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प्रदोष व्रत : शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा, आज इन 5 मंत्रों से मिलेगी आश्चर्यजनक सफलता

प्रदोष व्रत : शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा, आज इन 5 मंत्रों से मिलेगी आश्चर्यजनक सफलता - Today pradosh vrat muhurat n puja vidhi
गुरुवार, 16 दिसंबर को मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) है। यह दिन भगवान शिव और बृहस्पतिदेव को समर्पित है। आज दिसंबर 2021 का यह दूसरा गुरु प्रदोष व्रत है। आइए जानें मुहूर्त, पूजा विधि, कथा एवं मंत्र- 
 
Pradosh Vrat Muhurat गुरु प्रदोष शुभ मुहूर्त-  
 
मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ बुधवार, 15 दिसंबर 2021 देर रात्रि 02.01 मिनट से।
त्रयोदशी तिथि का समापन शुक्रवार, 17 दिसंबर को प्रात: 04.40 मिनट पर।
प्रदोष व्रत पूजन का शुभ मुहूर्त गुरुवार, 16 दिसंबर को सायं 05.27 मिनट से रात 08.11 मिनट तक।
पूजन अवधि का समय कुल 02 घंटे 44 मिनट तक। 
 
Pradosh Vrat Worship पूजा विधि- 
 
- प्रदोष व्रत करने वालों को प्रात: नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि करके बृह‍स्पतिदेव तथा शिव-पार्वती का पूजन करना चाहिए। 
- पूरे दिन निराहार रहकर शिव के प्रिय मंत्र 'ॐ नम: शिवाय' का मन ही मन जाप करना चाहिए। 
- तत्पश्चात सूर्यास्त के पश्चात पुन: स्नान करके भगवान शिव का षोडषोपचार से पूजन करना चाहिए।
- नैवेद्य में जौ का सत्तू, घी एवं शकर का भोग लगाएं।
- तत्पश्चात आठों दिशाओं में 8‍ दीपक रखकर प्रत्येक की स्थापना कर उन्हें 8 बार नमस्कार करें। 
- उसके बाद नंदीश्वर (बछड़े) को जल एवं दूर्वा खिलाकर स्पर्श करें। 
- शिव-पार्वती एवं नंदकेश्वर की प्रार्थना करें।
- गुरु प्रदोष व्रत तथा शिव की कथा पढ़ें, शिव आरती करें तथा प्रसाद वितरण के बाद भोजन ग्रहण करें।
 
Pradosh Katha कथा- 
 
कथा के अनुसार एक बार इंद्र और वृत्तासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ। देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। यह देख वृत्तासुर अत्यंत क्रोधित हो स्वयं युद्ध को उद्यत हुआ। आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया। सभी देवता भयभीत हो गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहूंचे। बृहस्पति महाराज बोले- पहले मैं तुम्हें वृत्तासुर का वास्तविक परिचय दे दूं। वृत्तासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है। उसने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया। 
 
पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था। एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया। वहां शिवजी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहासपूर्वक बोला- 'हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं किंतु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे।' चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी शिवशंकर हंसकर बोले- 'हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है। मैंने मृत्युदाता-कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारणजन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो!' 
 
माता पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ से संबोधित हुईं- 'अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्‍वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है अतएव मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा- अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं।' जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्तासुर बना। 
 
गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- 'वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है अत हे इंद्र! तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो।' देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इंद्र ने शीघ्र ही वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शांति छा गई। 
 
प्रदोष व्रत मंत्र- Pradosh Vrat Mantra 
 
- ॐ बृं बृहस्पतये नम:।
 
- ॐ नमोः नारायणाय।
 
- ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवै नम:। 
 
- ॐ नमः शिवाय।
 
- ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:।

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