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Written By WD

सिंहासन बत्तीसी : आठवीं पुतली पुष्पवती की कथा

Singhasan Battisi 8th Story in Hindi | सिंहासन बत्तीसी : आठवीं पुतली पुष्पवती की कथा
Singhasan Battisi 8th Story in Hindi

आठवें दिन राजा भोज पुन: राजदरबार में सिंहासन पर बैठने के लिए पहुंचे। तभी 32 पुतलियों में से एक आठवीं पुतली पुष्पवती जाग्रत हो गई और बोली, 'ठहरो राजन, अभी तुम इस सिंहासन पर बैठने के योग्य नहीं हुए हो।

अगर तुम मानते हो कि तुम भी राजा विक्रमादित्य की तरह महान हो तो अवश्य बैठ सकते हो पर पहले अपना आत्ममूल्यांकन करो। सुनो, मैं तुम्हें राजा विक्रम की कथा सुनाती हूं-

एक दिन राजा विक्रमादित्य के दरबार में एक बढ़ई आया। उसने राजा को काठ का एक घोड़ा दिखाया और कहा कि यह न कुछ खाता है, न पीता है और जहां चाहो वहां ले जाता है। राजा ने उसी समय दीवान को बुलाकर एक लाख रुपया उसे देने को कहा।,

दीवान बोला,' 'यह तो काठ का है और इतने दाम का नहीं है।'

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राजा ने गुस्से से कहा, 'दो लाख रुपए दो।'


दीवान चुप रह गया। रुपए दे दिए। रुपए लेकर बढ़ई चलता बना, पर चलते चलते कह गया कि इस घोड़े में ऐड़ लगाना कोड़ा मत मारना।

एक दिन राजा ने उस पर सवारी की। पर वह बढ़ई की बात भूल गए और घोड़े पर कोड़ा जमा दिया। कोड़ा लगना था कि घोड़ा हवा से बातें करने लगा और समुद्र पार ले जाकर उसे जंगल में एक पेड़ पर गिरा दिया। लुढ़कते हुए राजा नीचे गिरे।

संभलने पर उठे और चलते-चलते एक ऐसे बीहड़ वन में पहुंचे कि निकलना मुश्किल हो गया। जैसे-तैसे वह वहां से निकले। दस दिन में सात कोस चलकर वह ऐसे घने जंगल में पहुंचे, जहां हाथ तक नहीं सूझता था। चारों तरफ शेर-चीते दहाड़ते थे। राजा घबराए। रास्ता नहीं सूझता था।

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आखिर पंद्रह दिन भटकने के बाद एक ऐसी जगह पहुंचे जहां एक मकान था। उसके बाहर एक ऊंचा पेड़ और दो कुएं थे। पेड़ पर एक बंदरियां थी। वह कभी नीचे आती तो कभी ऊपर चढ़ती।

राजा पेड़ पर चढ़ गए और छिपकर सब हाल देखने लगे। दोपहर होने पर एक यती वहां आया। उसने बाई तरफ के कुएं से एक चुल्लू पानी लिया और उस बंदरिया पर छिड़क दिया। वह तुरन्त एक बड़ी ही सुन्दर स्त्री बन गई। यती पहरभर उसके साथ रहा, फिर दूसरे कुएं से पानी खींचकर उस पर डाला कि वह फिर बंदरिया बन गई। वह पेड़ पर जा चढ़ी और यती गुफा में चला गया।

राजा को यह देखकर बड़ा अचंभा हुआ। यती के जाने पर उसने भी ऐसा ही किया। पानी पड़ते ही बंदरियां सुन्दर स्त्री बन गई। राजा ने जब प्रेम से उसकी ओर देखा तो वह बोली, 'हमारी तरफ ऐसे मत देखो। हम तपस्वी है। शाप दे देंगे तो तुम भस्म हो जाओगे।'


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राजा बोला, ' मेरा नाम विक्रमादित्य है। मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।'

राजा का नाम सुनते वह उनके चरणों में गिर पड़ी बोली, 'हे महाराज! तुम अभी यहां से चले जाओ, नहीं तो यती आएगा और हम दोनों को शाप देकर भस्म कर देगा।'

राजा ने पूछा, 'तुम कौन हो और इस यती के हाथ कैसे पड़ीं?'

वह बोली, 'मेरे पिता कामदेव और मां पुष्पावती हैं। जब मैं बारह बरस की हुई तो मेरे मां-बाप ने मुझे एक काम करने को कहा। मैंने उसे नहीं किया। इसपर उन्होंने गुस्सा होकर मुझे इस यती को दे डाला। वह मुझे यहां ले आया। और बंदरिया बनाकर रखा है। सच है, भाग्य के लिखे को कोई नहीं मिटा सकता।'

राजा ने कहा, 'मैं तुम्हें साथ ले चलूंगा।' इतना कहकर उसने दूसरे कुएं का, पानी छिड़ककर उसे फिर बंदरिया बना दिया।

अगले दिन वह यती आया। जब उसने बंदरिया को स्त्री बना लिया तो वह बोली, 'मुझे कुछ प्रसाद दो।'


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यती ने एक कमल का फूल दिया और कहा, 'यह कभी कुम्हलाएगा नहीं और रोज एक लाल रत्न देगा। इसे संभालकर रखना।'

यती के जाने पर राजा ने बंदरिया को स्त्री बना लिया। फिर अपने वीर बेतालों को बुलाया। वे आए और तख्त पर बिठाकर उन दोनों को ले चले। रास्ते में यती का दिया लाल रत्न उगलने वाला फूल राजा ने एक सुंदर खेलते हुए बालक को दे दिया। बालक फूल लेकर घर चला गया।

राजा स्त्री को साथ लेकर अपने महल में आ गए।

अगले दिन कमल में एक लाल रत्न निकला। इस तरह हर दिन निकलते-निकलते बहुत से लाल रत्न इकट्ठे हो गए। एक दिन उस बालक का पिता उन्हें बाजार में बेचने गया। कोतवाल ने उसे पकड़ लिया। राजा के पास ले गया।

लड़के के बाप ने राजा को सब हाल ठीक-ठीक कह सुनाया और बताया कि उसे नहीं पता यह फूल बालक के पास कहां से आया लेकिन हर दिन इसमें से रत्न निकलता है। सुनकर राजा को सब याद आ गया। कोतवाल को उन्होंने हुक्म दिया कि वह उसे बेकसूर आदमी को एक लाख रुपया दें।

इ़तना कहकर पुतली पुष्पवती बोली, 'हे राजन्! जो विक्रमादित्य जैसा दानी और न्यायी हो, वही इस सिंहासन पर बैठ सकता है।'

राजा झुंझलाकर चुप रह गया। अगले दिन वह सिंहासन की तरफ बढ़ा तो मधुमालती नाम की नौवीं पुतली ने उसका रास्ता रोक लिया। पढ़ें अगले अंक में।