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शरणार्थी
- सुमन वर्मा
कितना दर्द है मेरे जिगर मेंगली-गली मैं जाऊंआग से भागा, सागर में डूबाफिर भी मैं मुस्काऊं।मैं शरणार्थी हूं तेरे वतन मेंसब मुझको हैं ठुकरातेबच्चे, घर सब लूट चुके हैंमेरे दिल पे ठेस पहुंचाते।जर्जर कर रही है वेदना मुझकोकैसे जख्म दिखाऊं तुझकोकैसे जख्म दिखाऊं?इन रिसते घावों पर आकरतू मरहम जरा लगा देमुझ पर करुणा करके अब तूवापिस मुझे बुला ले।