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Written By WD

आलोक श्रीवास्तव की रचना 4 : मैंने देखा है...

आलोक श्रीवास्तव की रचना 4 : मैंने देखा है... - Alok shrivasatava
धड़कते, सांस लेते, रुकते, चलते, मैंने देखा है,
कोई तो है जिसे अपने में पलते, मैंने देखा है।
 

 
तुम्हारे ख़ून से मेरी रगों में ख़्वाब रौशन हैं,
तुम्हारी आदतों में ख़ुद को ढलते, मैंने देखा है।
 
न जाने कौन है जो ख़्वाब में आवाज़ देता है,
ख़ुद अपने आपको नींदों में चलते, मैंने देखा है।
 
मेरी ख़ामोशियों में तैरती हैं तेरी आवाज़ें,
तेरे सीने में अपना दिल मचलते, मैंने देखा है।
 
बदल जाएगा सब कुछ, बादलों से धूप चटख़ेगी,
बुझी आंखों में कोई ख़्वाब जलते, मैंने देखा है।
 
मुझे मालूम है उनकी दुआएं साथ चलती हैं,
सफ़र की मुश्किलों को हाथ मलते, मैंने देखा है।