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आलोक श्रीवास्तव की रचना 6 : ख़्वाब तुम्हारे लेकर
शुक्रवार,जुलाई 3, 2015
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सखी पिया को जो मैं न देखूं तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां,1
कि जिनमें उनकी ही रौशनी हो, कहीं से ला दो मुझे वो अंखियां.
दिलों की बातें दिलों के अंदर, ज़रा सी ज़िद से दबी हुई हैं,
वो सुनना चाहें ज़ुबां से सब कुछ, मैं करना चाहूं नज़र से बतियां.
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शुक्रवार,जुलाई 3, 2015
धड़कते, सांस लेते, रुकते, चलते, मैंने देखा है,
कोई तो है जिसे अपने में पलते, मैंने देखा है।
तुम्हारे ख़ून से मेरी रगों में ख़्वाब रौशन हैं,
तुम्हारी आदतों में ख़ुद को ढलते, मैंने देखा है।
न जाने कौन है जो ख़्वाब में आवाज़ देता है,
ख़ुद अपने ...
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धड़कते, सांस लेते, रुकते, चलते, मैंने देखा है, कोई तो है जिसे अपने में पलते, मैंने देखा है। तुम्हारे ख़ून से मेरी रगों में ख़्वाब रौशन हैं, तुम्हारी आदतों में ख़ुद को ढलते, मैंने देखा है।
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घर की बुनियादें, दीवारें, बामो-दर थे बाबूजी,
सबको बांधे रखने वाला ख़ास हुनर थे बाबूजी.
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धूप हुई तो आंचल बनकर कोने-कोने छाई अम्मा,
सारे घर का शोर-शराबा, सूनापन, तन्हाई अम्मा.
उसने ख़ुद को खोकर मुझमें एक नया आकार लिया है,
धरती, अंबर, आग, हवा, जल जैसी ही सच्चाई अम्मा.
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आलोक श्रीवास्तव उस युवा रचनाकार का नाम है जिसने अपनी दिलकश रचनाओं से हिन्दी-उर्दू के पाठकों के बीच खास मुकाम हासिल किया है। आलोक की ग़ज़लें, नज़्में, दोहे और गीत अनुभूतियों का सतरंगा इंद्रधनुष रचते हैं। 'आमीन' उनका बहुचर्चित ग़ज़ल संग्रह है। ...
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