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Written By भाषा

वर्ष 2012 : भारतीय राजनीति की 10 बड़ी घटनाएं

-वेबदुनिया

वर्ष 2012 : भारतीय राजनीति की 10 बड़ी घटनाएं -
भारतीय राजनीति के लिए वर्ष 2012 काफी उलटफेर वाला रहा। कहीं नेताओं पर घोटालों के दाग लगे तो येदियुरप्पा ने भाजपा से अलग होकर नई पार्टी बनाई। यह वर्ष अपनी विदाई बेला में नरेन्द्र मोदी का कद जरूर बढ़ा गया

10. उत्तराखंड में बहुगुणा की 'विजय'

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पहाड़ी राज्य में हुए विधानसभा चुनाव के कड़े मुकाबले में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी और कांग्रेस के विजय बहुगुणा राज्य के मुख्‍यमंत्री बने। हालांकि दोनों ही प्रमुख दलों की सीटों में मात्र एक सीट का अंतर था, लेकिन अन्य विधायकों के समर्थन के चलते कांग्रेस सत्ता पर काबिज हो गई। यहां कांग्रेस को 32, जबकि भाजपा को 31 सीटें मिली थीं। इस चुनाव का सबसे बड़ा उलटफेर भाजपा के मुख्‍यमंत्री पद के उम्मीदवार भुवनचंद्र खंडूरी चुनाव हार गए थे।

09. हिमाचल ने 'भद्र' माना वीरभद्र क

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भ्रष्टाचार के आरोपों और महंगाई के बावजूद वीरभद्रसिंह हिमाचल प्रदेश के मुख्‍यमंत्री बनने में कामयाब रहे। उन्होंने छठी बार राज्य के मुख्‍यमंत्री पद की शपथ ली। अपने पांच दशकों के राजनीतिक करियर में वीरभद्र सात बार विधायक, पांच बार संसद सदस्य और पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

वीरभद्र के लिए यह चुनाव राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी चुनौती थी। उनके लिए यह 'आर या पार' की लड़ाई थी, क्योंकि वे अकेले मैदान में थे, जिन पर लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे थे।
08. पंजाब में फिर 'भगवा' लहराया

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पंजाब में हुए विधानसभा चुनाव में इस बार अनुमानों के विपरीत भगवा गठजोड़ सत्ता में लौटा और प्रकाशसिंह बादल फिर राज्य के मुख्‍यमंत्री बने। लाख कोशिशों के बाद कांग्रेस सत्ता के दरवाजे तक नहीं पहुंच पाई। हालांकि राज्य की तासीर के मुताबिक यहां की जनता किसी भी पार्टी को लगातार दूसरा मौका नहीं देती, लेकिन इस बार उसने अनुमानों को झुठलाते हुए अकाली और भाजपा गठबंधन को पुन: सत्ता सिंहासन पर आरूढ़ किया। 117 सदस्यीय विधानसभा में गठबंधन को 68 सीटें मिलीं।
07. 'मनोरम' गोवा के 'मनोहर' मुख्‍यमंत्र

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इस साल के पूर्वाद्ध में हुए विधानसभा चुनाव में मनोहर पर्रीकर के नेतृत्व में भाजपा ने 24 सीटें हासिल राज्य की सत्ता हासिल की। पूर्व में सत्ता पर आसीन कांग्रेस को सिर्फ 9 सीटें ही मिल सकीं। मनोहर को काफी अच्छा प्रशासक माना जाता है। यही कारण है कि उनकी तुलना गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेन्द्र मोदी से की जाती है। हालांकि इस तरह की तुलना पर्रीकर को रास नहीं आती।
06. कर्नाटक के 'नाटक' में खलनायक बने येदि

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कर्नाटक ने भाजपा की पूरे साल मुश्किल बढ़ाई। अन्तत: इस नाटक का पटाक्षेप पूर्व मुख्‍यमंत्री येदियुरप्पा के पार्टी छोड़ने के रूप में हुआ। आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भगवा ब्रिगेड के लिए खलनायक बने येदि ने भाजपा के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया और 'कर्नाटक जनता पार्टी' के नाम से नई पार्टी का गठन किया। वे स्वयं इस पार्टी के अध्यक्ष हैं। भाजपा के कई सांसदों और विधायकों का उन्हें समर्थन प्राप्त हैं। कुछ ने उनके साथ ही पार्टी भगवा पार्टी को बाय-बाय बोल दिया।

भाजपा को दक्षिण के पहले राज्य में सत्ता का स्वाद चखाने वाले येदियुरप्पा के बगावती तेवरों का पार्टी को राज्य में खासा नुकसान झेलना पड़ सकता है। येदि ने पार्टी द्वारा की गई सुलह की कोशिशों को भी कोई तवज्जो नहीं दी।
05. अशोक चव्हाण : सत्ता भी गई और साख भ

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आदर्श सोसायटी घोटाले की छाया अशोक चव्हाण पर क्या पड़ी, उन्हें मुख्‍यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा। चव्हाण सहित 13 लोगों के खिलाफ आदर्श घोटाले में सीबीआई ने आरोपपत्र दाखिल कर इमारत की ऊंचाई बढ़ाने की मंजूरी देने का आरोप लगाया था। इससे चव्हाण को कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी की नाराजी भी झेलना पड़ी थी। ...और अन्तत: उन्हें अपना इस्तीफा देना पड़ा।
04. 'साइकल' सवार अखिलेश बने यूपी के सीए

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वर्ष 2012 के पूर्वार्द्ध में हुए विधानसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में बदलाव की लहर चली और बसपा को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। यहां 224 सीटें हासिल कर समाजवादी पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और सत्ता पर काबिज हुई। इस बार मुलायम ने खुद मुख्‍यमंत्री बनने के बजाय अपने पुत्र अखिलेश यादव को राज्य कमान सौंपी, जो राज्य के सबसे युवा मुख्‍यमंत्री हैं। यहां 'हाथी' सत्ता की दौड़ में 'साइकल' से पिछड़ गया। राष्ट्रीय दल भाजपा और कांग्रेस क्रमश: तीसरे और चौथे स्थान पर रहे।
03. दादा बने देश के 13वें राष्‍ट्रपति

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कांग्रेस के कद्दावर नेता और प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में से एक प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री तो नहीं बन पाए, लेकिन वे राष्‍ट्रपति भवन में पहुंच गए। वे चुनाव जीतकर देश के 13वें राष्ट्रपति बने। उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई। हालांकि राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उस समय अप्रिय स्थिति भी निर्मित हुई, जब प्रणब के प्रतिद्वंद्वी और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा ने उनके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की। बाद में अदालत का रुख मुखर्जी के पक्ष में ही गया।
02. बुढ़ापे में पापा बने एनडी तिवारी

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अपने 'चरित्र' को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहे कांग्रेस के पूर्व मुख्‍यमंत्री और वयोवृद्ध नेता नारायण दत्त तिवारी को 87 साल की उम्र में पितृत्व सुख प्राप्त हुआ। दरअसल, रोहित शेखर नामक युवक लंबे समय से दावा कर रहा था कि एनडी उसके जैविक पिता हैं, जबकि तिवारी इससे इनकार करते रहे।

...लेकिन जुलाई माह में डीएनए रिपोर्ट खुलने के बाद रोहित के दावे की पुष्टि हो गई कि तिवारी ही उसके जैविक पिता हैं। डीएनए जांच की रिपोर्ट दिल्ली उच्च न्यायालय में खोली गई। तिवारी को अपना पिता बताते हुए 32 वर्षीय रोहित ने वर्ष 2008 में अदालत में याचिका दायर की थी।
01. नरेन्द्र मोदी बने 'दबंग'

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गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर न सिर्फ भाजपा में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी दबंग राजनेता बनकर उभरे हैं। पार्टी में आंतरिक विरोध, केशुभाई पटेल और अन्य भाजपा नेताओं का बागी होना तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का समर्थन न मिलने के बावजूद उन्होंने गुजरात में जीत की हैट्रिक बनाई।

हालांकि नरेन्द्र मोदी अपना पिछला प्रदर्शन नहीं दोहरा पाए, लेकिन जिन परिस्थितयों में उन्होंने चुनाव जीता है, उसे किसी भी सूरत में कम करके नहीं आंका जा सकता। नरेन्द्र मोदी ने इस चुनाव में 182 सदस्यीय विधानसभा के लिए 115 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत हासिल किया। पिछली बार उन्हें 117 सीटें मिली थीं। कांग्रेस एक बार फिर सत्ता से दूर रही।

इनके अलावा साल भर विवादों में रहे कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद को पार्टी ने पदोन्नति दी, उन्हें कानून मंत्री से विदेश मंत्री बना दिया। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के लिए यह वर्ष काफी मुश्किलों पर भरा। उन्हें पार्टी अध्यक्ष के रूप में दूसरा कार्यकाल मिलने की संभावना थी, लेकिन अरविन्द केजरीवाल एंड पार्टी द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण वह धूमिल हो गई।

रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ मामला भी इस साल काफी सुर्खियों में रहा। इस मामले में गांधी परिवार भी आलोचकों के निशाने पर रहा। इसके अलावा कोयला घोटाले की कालिख प्रधानमंत्री के दामन तक पहुंची। साथ ही अरविन्द केजरीवाल सामाजिक कार्यकर्ता से राजनेता बन गए। उन्होंने आम आदमी पार्टी के नाम से नई पार्टी का गठन किया। हालांकि अन्ना हजारे इस पार्टी से दूर ही दिखे।