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Written By WD

84 महादेव : श्री कंथडेश्वर महादेव(34)

श्री कंथडेश्वर महादेव
वतस्ता नदी के तट पर पांडव नामक एक ब्राह्मण निवास करता था। जातिवालों व उसकी पत्नी ने उसका त्याग कर दिया था। ब्राह्मण के पास प्रेमधारिणी कथा रहती थी। पांडव ने एक गुफा में पुत्र कामना से शिव की तपस्या की। शिव ने प्रसन्न होकर उसे पुत्र प्रदान किया। ब्राह्मण ने ऋषियों की उपस्थिति में पुत्र का यज्ञोपवित संस्कार कराया ओर ऋषियों को उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद देने के लिए कहा। ऋषि वहां से बिना आशीर्वाद  दिए चले गए। इस पर ब्राह्मण विलाप करने लगा ओर कहने लगा कि शिव ने उसे पुत्र प्रदान किया है वह अल्पायु कैसे हो सकता है।

पिता को विलाप करते देख बालक हर्षवर्धन ने संकल्प किया कि वह महेश्वर भगवान रूद्र का पूजन करेगा ओर उनसे चिरायु होने का वरदान लेकर यमराज पर विजय प्राप्त करेगा। हर्षवर्धन ने महाकाल वन में भगवान रूद्र का पूजन कर उन्हें प्रसन्न किया ओर चिरायु होने व अंतकाल में शिवगण होने का वरदान प्राप्त किया। कालांतर में कंथडेश्वर के नाम से शिवलिंग विख्यात हुआ। मान्यता है कि जो मनुष्य इस शिवलिंग का दर्शन कर पूजन करता है वह चिरायु होता है।