भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित तीन दिवसीय 10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दी की प्रतिष्ठा कायम रखने के लिए हुए विमर्शों में प्रतिभागियों की ओर से सैकड़ों सुझाव पेश किए गए।
सम्मेलन के आज आयोजित समापन समारोह के दौरान मंच से इनमें से चुनिंदा सुझाव पढ़ें गए। 'विदेश नीति में हिन्दी' विषय से जुड़े सत्र के बारे में संयोजक विपुल ने बताया कि सत्र में विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में हिन्दी सिखाने के लिए एक हिन्दी माध्यम का अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय खोले जाने की अनुशंसा की गई।
'प्रशासन में हिन्दी' विषय से जुड़े सत्र में प्रतिभागियों ने कुल 72 सुझाव पेश किए। इसमें सबसे अहम एक राजभाषा लोकपाल की व्यवस्था का था। साथ ही राष्ट्रीय राजमार्गों पर दोनों भाषाओं में संकेतक लगाने, देश की अहम परीक्षाएं हिन्दी में कराने और कानूनों को हिन्दी में बनाए जाने के सुझाव सबसे अहम रहे।
'विज्ञान क्षेत्र में हिन्दी' को लेकर सत्र की संयोजक किंकीणी दासगुप्ता ने बताया कि सत्र का सबसे अहम सुझाव चिकित्सा और ऐसे ही अन्य क्षेत्रों की पढ़ाई अंग्रेजी के साथ हिन्दी में कराए जाने का रहा। साथ ही मौलिक विज्ञान लेखन हिन्दी में करने के लिए भी कई लोगों ने जोर दिया। आईटी और अंतरिक्ष क्षेत्र से जुड़ी सभी जानकारियां हिन्दी में देने की भी बात कही गई।
'संचार और आईटी क्षेत्र में हिन्दी' को लेकर डॉ. रचना विमल ने बताया कि अधिकतर प्रतिभागियों ने कंप्यूटर और मोबाइल की भाषा हिन्दी किए जाने, प्राथमिक कक्षा से ही हिन्दी टाइपिंग की शिक्षा और सीडेक द्वारा बनाए गए हिन्दी सर्च इंजन को लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने पर जोर दिया।
'विधि एवं न्यायिक क्षेत्र में हिन्दी' से जुड़े सत्रों के संयोजक प्रदीप कुमार ने बताया कि सत्र में विधि पाठ्यक्रम हिन्दी में चलाए जाने और कानून हिन्दी में बनाए जाने की बात कही गई।
'बाल साहित्य में हिन्दी' विषय का सबसे रोचक सुझाव अगले सम्मेलन के सत्रों में बच्चों की भागीदारी का रहा, ताकि वे अपने से जुड़ी बातों को सबसे समक्ष पेश करें, जिन्हें बाल साहित्य में शामिल किया जा सके।
'अन्य भाषा भाषी राज्यों में हिन्दी' विषय से जुड़े सत्र के संयोजक वाई लक्ष्मीप्रासद ने इस बात पर जोर दिया कि भारत सरकार के दक्षिण राज्यों में स्थित हिन्दी संस्थानों में प्राथमिकता वहीं के लोगों को दी जाए और वहां दूसरे प्रदेशों के लोगों को न लाया जाए। वहीं दक्षिण के कॉलेजों में हिन्दी उत्सव मनाने की मांग भी प्रमुखता से उठी।
'हिन्दी पत्रकारिता और संचार माध्यमों में भाषा की शुद्धता' सत्र के संयोजक राजेंद्र शर्मा ने सत्र के दौरान इस दिशा में समाज की भागीदारी बढ़ाने की बात उठने की जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि सत्रों के दौरान सभी संचार संस्थानों के मालिकों से ये आग्रह करने की बात कही गई कि वे अपने संस्थानों में हिन्दी की शुद्धता पर जोर दें। सभी मीडिया संस्थान स्वयं एक आयोग बनाएं, जो भाषा की शुद्धता पर ध्यान दे। साथ ही सरकार से एक राष्ट्रीय भाषा आयोग बनाने का भी आग्रह किया गया, जो हर साल संसद के सामने अपनी रिपोर्ट पेश करें।
'गिरमिटिया देशों में हिन्दी' सत्र के संयोजक मनोहर पुरी के मुताबिक सत्र में मुख्य सुझाव गिरमिटिया देशों में हिन्दी के शिक्षक नियुक्त करने और संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी को उसका स्थान दिलाने के आए।
'विदेश में हिन्दी शिक्षण की समस्याएं और समाधान' विषय पर आयोजित सत्र में पाठ्यक्रम की एकरूपता और सीबीएसई की तर्ज पर एक अंतरराष्ट्रीय बोर्ड बनाने का सुझाव प्रमुखता से सामने आया।
'विदेशियों के लिए भारत में हिन्दी अध्ययन की सुविधा' सत्र के संयोजक अविनाश अवस्थी ने बताया कि प्रतिभागियों ने एक मानक भाषा और वर्तनी तय करने पर जोर दिया, ताकि विदेशियों को किसी प्रकार की असुविधा न हो। साथ ही विदेशी छात्रों को भारत की संस्कृति, दर्शन और अध्यात्म की शिक्षा देने की भी मांग सामने आई।
'देश-विदेश में प्रकाशन' सत्र के संयोजक प्रभात कुमार ने बताया कि सत्र में प्रामाणिक शब्दकोश विकसित करने, भाषा का मानकीकरण करने, ई-पुस्तकालय स्थापित करने और समुद्री डाक से विदेश में किताबे भेजने का सुझाव प्रमुखता से उठा। (वार्ता)