विश्व हिन्दी सम्मेलन से बापू की समाधि पर
- न्यूज़ीलैंड से रोहित कुमार 'हैप्पी'
विश्व हिन्दी सम्मेलन में सम्मिलित होने आई फीजी के समाचार पत्र शांति-दूत की संपादिका, 'नीलम कुमार' से जब मैंने उनके भारत के अनुभव के बारे में पूछा तो वे कहने लगीं कि भारत आना उनके लिए हर बार सुखद अनुभव होता है।
नीलम कुमार को 10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में शांति दूत के फीजी में 80 वर्ष के सफल प्रकाशन के लिए 'विश्व हिन्दी सम्मान' से सम्मानित किया गया है। वे अन्य प्रतिनिधियों के साथ 'इंडिया गेट' भी गईं थी व बापू की समाधि पर भी।
बापू की समाधि का अपना अनुभव सुनाते हुए वे बड़ी भावुक हो गईं, "मैं बापू की समाधि छूना चाहती थी लेकिन वहाँ इसकी अनुमति नहीं थी। मैंने वहाँ खड़े एक कर्मचारी को कहा कि बस केवल एक बार मैं बापू की समाधि को छूना चाहती हूँ। पहले तो उसने साफ मना कर दिया पर मेरे यह बताने पर कि मैं बड़ी दूर से आई हूँ और मैं केवल एक क्षण के लिए बापू की समाधि को छूना भर चाहती हूँ।" कहते-कहते नीलम कुमार अपने आँसुओं को रोक नहीं पाईं।
"फिर?" मेरे साथ बैठा एक साथी मुझसे भी अधिक उत्सुक हो चला था।
"फिर....!" नीलम कुमार ने कुछ सहज होते हुए कहा, "फिर..उसने मुझे अनुमति दे दी। मैंने जब बापू की समाधि को छूआ तो मेरी आँखों से बरबस आँसू बहने लगे।"
अपने दोनों हाथों को दिखाते हुए वे बोलीं, "इन्हीं हाथों से मैंने बापू की समाधि को छूआ। मैं धन्य हो गई!"
महात्मा गांधी के प्रति उनकी अगाद्ध श्रद्धा देख के आसपास बैठे अन्य लोग भी अभिभूत हो गए।