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Written By Naidunia
Last Modified: देवास , शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011 (20:17 IST)

विरह व्यथा प्रसंग में व्याकुल हुए श्रोता

कैलादेवी मंदिर
जमुना किनारे श्रीकृष्ण के विरह में आँसू बहाती गोपियों की कल्पना मन में विरह का भाव पैदा कर रही थी। कभी कृष्ण की अठखेलियाँ, तो कभी गोपियों की नाराजगी भक्तों को द्वापर युग में ले जा रही थी। बाँसुरी के शांत और सुुमधुर स्वर वातावरण में भक्ति की बयार बहा रहे थे। इस बीच शबरी के आश्रम पर भगवान राम का आगमन होता है और झूूठे बेर खाकर परमात्मा संसार को प्रेम का संदेश दे जाते हैं। कभी द्वापर युग, तो कभी सतयुग से होता हुआ कथा का सफर कलियुग में आकर स्थिर हो जाता है और श्रद्धालुओं को प्रेम, विश्वास तथा निःस्वार्थ रहने की शिक्षा देता है।


सत्संग की अमृतवर्षा का यह भक्तिमय नजारा था मिश्रीलाल नगर स्थित कैलादेवी मंदिर का। गुरुवार से यहाँ संतश्री नारायण साँईं के प्रवचन शुरू हुए। कथा का रसपान करने के लिए हजारों की संख्या में लोग पहुँचे। निर्धारित समय से पहले ही श्रद्धालुओं ने पांडाल में अपना स्थान सुरक्षित कर लिया था। आँखें मूँदकर भक्तगण गुरुवर के माध्यम से परमात्मा की भक्ति में लीन थे। इधर भक्तों की बढ़ती संख्या को देखकर आयोजकों ने पांडाल का विस्तार करना पड़ा। दोपहर करीब दो बजे सत्संग वर्षा की शुरुआत हुई। इसके पूर्व प्रमुख मार्गों से भव्य शोभायात्रा निकाली गई। इसमें कलशधारी महिलाओं ने संतश्री की आत्मीय अगवानी की।


दुखिया अँखियाँ नहीं मानत...

श्रीकृष्ण और गोपियों के प्रेम का वर्णन करते हुए संतश्री ने कहा कि श्रीकृष्ण का जीवन प्रेम के प्रति समर्पित रहा है। प्रेम भी ऐसा, जिसमें काम का कोई स्पर्श तक नहीं था। जब भगवान श्रीकृष्ण गोपियों से दूर होकर द्वारका में जा बसते हैं तो गोपियाँ दिन-रात उनके विरह में व्याकुल रहती हैं। वे आँखें मूँदकर श्रीकृष्ण से आग्रह करती हैं कि दुखिया अँखियाँ नहीं मानत...। अर्थात श्रीकृष्ण के वियोग में उनकी दुःखी आँखें मान ही नहीं रही हैं और दिन-रात आँसू बहाकर प्रार्थना करती हैं कि कब उनको नंदलाल के दर्शन होंगे। तभी प्रेम की पुकार सुनकर मधुसूदन दौड़े चले आते हैं और गोपियाँ उनके गले से लिपटकर रोने लगती हैं। गोपियों के मुख से आवाज आती है कि आए हो तो रम जाओ रमण...। गोपियों का प्रेम देखकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि हमारा शरीर भले ही अलग हो, किंतु आत्मा एक है। एक-दूसरे के प्रेम में हम इस तरह बँधे हैं कि विरह असंभव है। श्रीकृष्ण और गोपियों के विरह और मिलन के सुंदर वर्णन में श्रद्धालु भावविभोर हो गए।


भगवान से प्रेम करो

भक्तों को संबोधित करते हुए संतश्री ने कहा कि सांसारिक सुखों की कामना में मनुष्य आध्यात्मिक सुख को भूल जाता है। स्त्री-पुरुष एक-दूसरे के प्रेम में पागल हो जाते हैं, लेकिन आखिर में उनको सिवाय धोखे के कुछ नहीं मिलता। यदि प्रेम ही करना है तो भगवान से करो, क्योंकि जो भगवान से प्रेम करता है, उसे जीवन में कभी धोखा नहीं मिलता। वह निरंतर अंतर्यात्रा में लीन होते हुए सभी सुखों का स्वामी बन जाता है। भक्तों को संदेश देते हुए संतश्री ने यह भी कहा कि प्रेम और निःस्वार्थता ही वे माध्यम हैं, जिनके सहारे आत्मा को परमात्मा से मिलाया जा सकता है। परमात्मा भौतिक विलासिता से नहीं, बल्कि भावपूर्ण भक्ति के भूखे हैं। -निप्र।