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Written By अनिरुद्ध जोशी

International yoga day 2020 | फेफड़ों को मजबूत बनाती है योग की ये 5 अचूक टिप्स, 7 नियम

Yoga for lungs and breathing | फेफड़ों को मजबूत बनाती है योग की ये 5 अचूक टिप्स, 7 नियम
कोविड-19 कोरानावायरस के दौर में फेफड़ों को मजबूत रखना बहुत जरूरी है। योग के प्राणायाम और आसनों के माध्यम से फेफड़ों को मजबूत किया जा सकता है। इन प्राणायामों से जहां हमारे फेफड़े मजबूत होते हैं वहीं शरीर के अन्य अंग भी निरोगी रहते हैं। आओ जानते हैं फेफड़ों को शुद्ध और मजबूत करने की 4 टिप्स।  

 
1. भस्त्रिका प्राणायाम : भस्त्रिका का शब्दिक अर्थ है धौंकनी अर्थात एक ऐसा प्राणायाम जिसमें लोहार की धौंकनी की तरह आवाज करते हुए वेगपूर्वक शुद्ध प्राणवायु को अन्दर ले जाते हैं और अशुद्ध वायु को बाहर फेंकते हैं। सिद्धासन या सुखासन में बैठकर कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर और मन को स्थिर रखें। आंखें बंद कर दें। फिर तेज गति से श्वास लें और तेज गति से ही श्वास बाहर निकालें। श्वास लेते समय पेट फूलना चाहिए और श्वास छोड़ते समय पेट पिचकना चाहिए। इससे नाभि स्थल पर दबाव पड़ता है। इस प्राणायाम को अच्छे से सिखकर मात्र 30 सेकंड किया जा सकता है।
 
सावधानी : भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले नाक बिल्कुल साफ कर लें। भ्रस्त्रिका प्राणायाम प्रात: खुली और साफ हवा में करना चाहिए। क्षमता से ज्यादा इस प्राणायाम को नहीं करना चाहिए। दिन में सिर्फ एक बार ही यह प्राणायाम करें। किसी को कोई रोग हो तो यह प्राणायम योग शिक्षक से पूछकर ही करें।
 
2. वज्रोली मुद्रा : पूर्ण रेचन करके श्वास रोक दें। जितनी देर सहजता से श्वास रुके बार-बार वज्रनाड़ी (जननेंद्रिय) का संकोचन विमोचन करें। ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र (मूलाधार से चार अंगुल ऊपर रीढ़ में, जननेंद्रिय के ठीक पीछे) पर केंद्रित रहे। 
 
3. वायु भक्षण : हवा को जानबूझकर कंठ से अन्न नली में निगलना। यह वायु तत्काल डकार के रूप में वापस आएगी। वायु निगलते वक्त कंठ पर जोर पड़ता है तथा अन्न नलिका से होकर वायु पेट तक जाकर पुन: लौट आती है।
 
4. पूर्ण भुजा शक्ति विकासक क्रिया : सबसे पहले सावधान मुद्रा में खड़े हो जाएं। अब दोनों पैरों के पंजों को आपस में मिला लें। फिर भुजाओं को सीधा, कंधों को पीछे खींचकर और सीने को तानकर रखें।
 
इसके बाद दाएं हाथ का अंगूठा भीतर और अंगुलियां बाहर रखते हुए मुट्ठी बांध लें। फिर बाएं हाथ के तलवे को जंघा से सटाकर रखें। श्वास भरते हुए दाईं भुजा को कंधों के सामने लाएं। उसके बाद श्वास भरते हुए भुजा को सिर के ऊपर लाएं। अब श्वास छोड़ें और दाईं हथेली को कंधों के पीछे से नीचे लेकर आएं। इस तरह एक चक्र पूरा होगा। अब दाएं हाथ से लगातार 10 बार इसी तरह गोलाकार चलाएं। उसके बाद बाएं हाथ से भी मुट्ठी बनाकर 10 बार गोलाकार चलाएं।
 
अंत में धीरे-धीरे श्वास को सामान्य कर लें। श्वास के सामान्य होने के बाद दोनों हाथों की मुट्ठी बनाकर 10 बार गोलाकार चलाएं। सामने से पीछे की ओर ले जाएं। इस दौरान श्वास की एकाग्रता और संतुलन बनाए रखें। जिस तरह हाथों को एक दिशा में गोलाकार घुमाते हैं, उसी तरह हाथों को उल्टी दिशा में भी गोलाकार घुमाना चाहिए। इससे विपरीत योग संचालन भी हो जाता है, जो कि जरूरी है।
 
चारों का लाभ :
1. वज्रोली क्रिया प्रजनन संस्थान को सबल बनाती है और यौन रोग में भी यह लाभदायक है।
2. वायु भक्षण क्रिया अन्न नलिका को शुद्ध व मजबूत करती है। इससे फेफड़े भी शुद्ध और मजबूत बनते हैं। 
3. भस्त्रिका प्राणायाम से शरीर को प्राणवायु अधिक मात्रा में मिलती है जिसके कारण यह शरीर के सभी अंगों से दूषित पदार्थों को दूर कर फेफड़ों को मजबूत बनाता है। इसके कई लाभ हैं।
4. पूर्ण भुजा शक्ति विकासक क्रिया से फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है। इसके चलते प्राणशक्ति का स्तर बढ़ जाता है और व्यक्ति दिनभर चुस्त-दुरुस्त बना रहता है। इसके नियमित अभ्यास से भुजाओं की मांसपेशियां मजबूत होती हैं और कंधों की जकड़न दूर होती है। इसके नियमित अभ्यास से शरीर के सभी अंगों में प्राणशक्ति का संचार होने लगता है।
 
अन्य नियम : 
1.जहां भी प्रदूषण भरा माहौल हो वहां केवली प्राणायाम करने लगें और उस प्रदूषण भरे माहौल से बच निकलने का प्रयास करें। यदि रूमाल साथ रखते हैं तो केवली की आवश्यकता नहीं। उचित, साफ, स्वच्छ और भरपूर हवा का सेवन सभी तरह के रोग और मानसिक तनाव को दूर कर उम्र को बढ़ाता है।
 
2.बदबू से बचें, यह उसी तरह है जिस तरह की हम खराब भोजन करने से बचते हैं। बेहतर इत्र या स्प्रे का इस्तेमाल करें। श्वासों की बदबू के लिए आयुर्वेदिक इलाज का सहारा ले सकते हैं।
 
3.क्रोध, राग, द्वैष या अन्य नकारात्मक भाव के दौरान नाक के दोनों छिद्रों से श्वास को पूरी ताकत से बाहर निकाल कर धीरे-धीरे पेट तक गहरी श्वास लें। ऐसा पांच बार करें।
 
4.अपनी श्वासों पर विशेष ध्यान दें कि कहीं वह उखड़ी-उखड़ी, असंतुलित या अनियंत्रित तो नहीं है। उसे सामान्य बनाने के लिए अनुलोम-विलोम कर लें।
 
5.पांच सेकंट तक गहरी श्वास अंदर लेकर उसे फेंफड़ों में भर लें और उसे 10 सेकंट तक रोककर रखें। 10 सेकंट के बाद उसे तब तक बाहर छोड़ते रहें जब तक की पेट पीठ की तरफ ना खिंचाने लगे।
 
6.नाक के छिद्रों का हमेशा साफ-सुधरा रखें। चाहें तो जलनेती या सूतनेती का सहारा ले सकते हैं।
 
7.सुगंध भी प्राकृतिक भोजन है। समय-समय पर सभी तरह की सुगंध का इस्तेमाल करते रहने से मन और शरीर में भरपूर उर्जा का संचार किया जा सकता है।
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