'अरे भई, हैरान सी क्यों हो, कुछ खो गया क्या?'
'अरे हां, वो देखो न कहीं ...'
'वो क्या ..? तुम्हारी तो आदत है, हड़बड़ी में कहीं भी रख देती हो और फिर सारा घर उथल-पुथल करती रहती हो'
'हां, तुम तो मुझे ही कहो. एक जान, सौ काम, हज़ार उलझनें..'
'अच्छा बाबा, क्या खोया है, यह तो बताओ..'
'हमारा प्रेम ...'
'यह क्या नया सूझा है, सुबह-सुबह, फालतू'
'तुम्हें तो फालतू ही लगेगा. मैं ही थी, जिसने इतने जतन से संभाला हुआ था'
'अच्छा, तो जरा हुलिया बताना जनाब का.... गुमशुदगी की रिपोर्ट डलवा दूं?
'तुम्हारी परवाह-सा नर्म था, हमारे बेटू जैसा निश्चल और मेरे भरोसे की तरह मजबूत...'
'तुमने कल जो मैथी की भाजी बनाई थी, उसकी छौंक में तो नहीं डाल दिया. बाय गॉड, क्या शानदार बनी थी...'
'तुमको तो हर वक्त बस खाने की ही सूझती है....'
'तो ऐसा करो, बेटू की किताबों में देख लो, बेटू से ज्यादा सिर खपाती हो तुम उनमें, वहीं छोड़ दिया होगा या मेरे गर्म कपड़ो में? कल धोकर तह किए थे.... चलो अच्छा याद आया, उन्हें ट्रंक में रख दूं... ट्रंक भारी है, तुमसे उठेगा नहीं'
'तुमने जो शाल लाया था, शिमला से, वह भी रख दो. मुझे बहुत पसंद है. खराब हो जाएगा....'
'अम्मा के दवाईयों के बॉक्स में तो नहीं रह गया? लाना जरा ..'
'लाती हूं, तुम्हारे पैर में आयोडेक्स मल दूं .. .. कल की मोच का असर है अब तक'
'एक-एक कप चाय हो जाए, कितने दिन हो गए, हमने आंगन में झूले पर बैठ कर चाय नहीं पी.... पुराने एल्बम ले आता हूं, शायद उनमें छुपा बैठा हो...'
'तुम्हें देर नहीं हो रही है आज ?'
'अरे हां ! देखो तो...तुम्हारे प्रेम-वेम के चक्कर में जो पड़ गया.... चलो, मेरा टिफ़िन दे दो जल्दी से और अम्मा को बोल देना शाम को उनको डॉक्टर के पास चलना है.'
'हां, हां मुझे भी बैंक होते हुए जाना है.. .. हो सके तो प्लम्बर को भेज देना, सिंक का नल खराब है'
'नाश्ता करके निकलना.....फिर रात को कहोगी कि चक्कर आ रहे है....
'तो तुम्हें भी न बताऊं क्या? और तुम गाड़ी जरा आराम से चलाना.... अब उम्र है क्या हीरोगिरी की?”
'अरे, हम तो हैं ही हीरो..'
'अच्छा-अच्छा.....चलो अब, बाय..!'
'बाय..! और सुनो..मैंने कहीं पढ़ा था, बहुत पास की चीज वातावरण का अंग बन जाती है, इतनी घुल-मिल जाती है कि नजर नहीं आती.... हमारा प्रेम भी ऐसा ही है शायद...ढूढेंगे फिर किसी दिन फुरसत में......
-शैली बक्षी खडकोतकर