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Written By हिमा अग्रवाल
Last Updated : गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020 (20:37 IST)

निर्भया की वकील सीमा कुशवाहा को भी हाथरस जाने से रोका, लड़ना चाहती हैं केस

निर्भया की वकील सीमा कुशवाहा को भी हाथरस जाने से रोका, लड़ना चाहती हैं केस - nirbhaya case lawyer seema kushwaha was also prevented from going to hathras
हाथरस। निर्भया (Nirbhaya) को न्याय दिलवाने वाली महिला एडवोकेट सीमा कुशवाहा (Seema Kushwaha) आज हाथरस पहुंचीं। सीमा हाथरस (Hathras) गैंगरेप पीड़िता का केस नि:शुल्क लड़ पीड़ित परिवार को न्याय दिलाना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि 21वीं सदीं में महिला सुरक्षित नहीं है। हाथरस पहुंचने से पहले उन्होंने दुष्कर्म की बलि चढ़ी युवती के भाई से बातचीत की थी। पीड़ित परिवार ने भी इस महिला एडवोकेट से बात करने की इच्छा प्रकट की है। 
आज जब एडवोकेट कुशवाहा हाथरस की सीमा में पहुंचीं तो उन्हें पीड़िता के गांव बूलागढ़ी गांव में जाने से रोक दिया गया। गांव में प्रवेश करने को लेकर उनकी एडीएम से कहासुनी भी हुई। उन्होंने कहा कि देश में लॉ एंड ऑडर सरकार की वजह से बिगड़ रहा है, कानून-व्यवस्था बेटी को न्याय नहीं दे पाती और उसकी मौत हो जाती है। अगर देश की कोई बेटी न्याय के लिए आवाज उठाती है तो उसे बोलने से रोका जाता है। 
 
सीमा ने कहा कि मैंने केस की स्टडी के लिए हाथरस के स्थानीय क्षेत्राधिकारी और एसओ से बातचीत की थी। मिली जानकारी के मुताबिक हैवानियत का शिकार बनी बेटी अपना बयान दर्ज नही करा पाई, जिसके चलते 376 धारा नहीं लगी। यदि पीड़िता बोलने और लिखकर बयान नहीं दे पा रही थी, वेंटिलेटर पर थी तो उसका मेडिकल कराया जाना चाहिए था, जिसमें सब क्लियर हो जाता।
 हाथरस में इस महिला एडवोकेट ने कहा कि पुलिस सत्य जानने के लिए फॉरेंसिक रिपोर्ट की बात कर रही है, मैं उनसे पूछना चाहती हूं कि देश में कितनी फॉरेंसिक लैब हैं? फॉरेंसिक टेस्ट रिपोर्ट आने में 2 से 3 महीने का समय लग जाता है, तब तक इस देश की बेटियां ऐसे ही मरती रहेंगी? 
 
बेटियों के प्रति जिम्मेदार पद पर बैठा कोई भी अधिकारी संवेदनशील नहीं है। इस बात का इससे पता चलता है कि देश के अंदर आज तक कोई ऐसा कानून नहीं बना है, जो पीड़िता को तुरंत न्याय दे सके।
 
मैं इस समाज से पूछना चाहती हूं कि कोई भी महिला चाहे वह डॉक्टर, इंजीनियर, पत्रकार या वकील हो वह खुद को 21वीं सदी में सुरक्षित महसूस करती है? कोई सिर उठाकर कह सकती है कि हम सड़क, स्कूल-कॉलेज या घर पर सुरक्षित हैं? (फोटो : हिमा अग्रवाल)
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