वह जालीम है इनायत क्या करेंगे भलाई की हिमायत क्या करेंगेजो सूरज से हसद रखते हो दिल में चिरागों की हिफाजत क्या करेंगेअमीरे शहर से मनसब जो पाएँ वह मुफलिस की हिमायत क्या करेंगे अबस ताबीर में उलझे हुए हैं वह ख्वाबों को हकीकत क्या करेंगेरिया के मुक्तदी जब हो गए हमरजा सच की ईमामत क्या करेंगे। ---------------------------
ना मस्जिद बनाता हूँ ना मैं मस्जिद बनाता हूँ न मैं मंदिर बनाता हूँ तकद्दुस को समझता हूँ मुकद्दस घर बनाता हूँ समझता हूँ जमाने की निगाहों के तग़य्युर को मुसव्विर हूँ मैं अपने वक्त का मंजर बनाता हूँ। ----------------------
सर होता है हो जाए सर होता है हो जाए हवा कुछ नहीं कहते हम अपनी हकीकत के सिवा कुछ नहीं कहते जब राह में बछती हो बबुलें तो तड़प करऊफ मेरे खुदा और सिवा कुछ नहीं कहतेबातील की खुशामद के लिए जश्न शब व रोज हक डूब मरा है के तिरा कुछ नहीं कहते कीमत तुम्हें इक रोज चुकानी है के तुम भी जालीम को समझते हो बुरा कुछ नहीं कहते पत्थर पे लुटाते हो अकीदत के गुलिस्ताँ है धूल में अलमास पड़ा कुछ नहीं कहते मौसम की तरह तुम भी बदल जाते हो अक्सर कहती है हवा हम तो रजा कुछ नहीं कहते। -----------------------