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क़तआत : रूपायन इन्दौरी
कुछ करम में कुछ सितम में बाँट दीकुछ सवाल-ए-बेश-ओ-कम में बाँट दीज़िन्दगी जो आप ही थी क़िब्लागाह हम ने वो देर-ओ-हरम में बाँट दीशाम का वक़्त है शिवाले मेंदीप जलते हैं आरती के लिएउसी मन्दिर में एक नन्हा दियाटिमटिमाता है रोशनी के लिए जो क़दम है वो हस्बे-हाल रहे और फिर उसपे तेज़ चाल रहे देश की ख़ैर चाहने वालों आग जंगल की है ख़्याल रहे पहले ये ख़ौफ़ था मेरे दिल में तुमने ठुकरा दिया तो क्या होगाअब में इस फ़िक्र में परेशाँ हूँतुमने अपना लिया तो क्या होगाहादिसों से गुज़र चुके थे हम मुश्किलों से उभर चुके थे हम अपना होने का जब हुआ एहसास ज़िन्दगी ख़त्म कर चुके थे हम