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Written By WD

सावन बरसता है रिमझिम

सावन बरसता है रिमझिम -
शायर : मजरूह सुल्तानपुर

कई दिन से सावन बरसता है रिमझिम
हवा झूमती है घटा गा रही है

अब ऐसे में तुम भी न आओ तो देखो
नज़र रूठने की क़सम खा रही है

हंसा कौन ये बिजलियों की अदा से
बरसने लगे किस के आंसू घटा से

उधर तू है और मैं इधर हूँ तो क्या है
कहीं फूल से उसकी खुश्बू जुदा है

ये माना कि ऐसी नहीं कोई दूरी
पर इतनी भी दूरी सितम ढा रही है

हवा झूमती है घटा गा रही है