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Written By हिमा अग्रवाल
Last Updated : शनिवार, 5 फ़रवरी 2022 (18:47 IST)

Ground Report : मेरठ कैंट सीट पर क्या फिर फहरेगा भगवा

Ground Report : मेरठ कैंट सीट पर क्या फिर फहरेगा भगवा - UP election : Meerut cant seat ground report
मेरठ। उत्तर प्रदेश में चुनाव की तारीखों का शंखनाद हो गया है, यहां सात चरणों में चुनाव सम्पन्न होंगे। वेस्ट यूपी का सबसे बड़ा शहर है मेरठ। मेरठ की सात विधानसभा सीटों पर चुनाव प्रथम चरण यानी 10 फरवरी को होगा। सभी राजनीतिक पार्टियों ने जीत के लिए अपने चुनावी समीकरण पहले ही बैठाने शुरू कर दिए हैं। पार्टियां सम्मेलन, बैठक, और यात्राओं के जरिए जनता की लुभाने में कोई कोर कसर नही छोड़ रही है। लेकिन जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा, यह तो मतदाता ही के हाथ में है।

मेरठ की कैंट विधानसभा सीट (Meerut Cantt Assembly) के इतिहास, समस्याओं और मुद्दों पर चर्चा होगी।मेरठ जिले की कैंट विधानसभा सीट का राजनीतिक सफर भी गजब है, यहां जो पार्टी जीतती है, वह जीतती ही चली जाती है। कैंट विधानसभा का अधिकतर क्षेत्र छावनी से जुड़ा है, यहां 1857 की क्रांति का उद्गम स्थल बाबा औघड़नाथ का मंदिर भी छावनी क्षेत्र में स्थित है।
 
कहा जाता है की छावनी क्षेत्र स्थित बिल्वेश्वर नाथ के मंदिर में रावण को पाने के लिए मंदोदरी ने तप किया था। पिछले तीन दशकों से कैंट सीट पर भारतीय जनता पार्टी का भगवा लहरा रहा है। जबकि शुरुआत में कांग्रेस ने सात चुनावों में झंड़ा गाड़ा था। वर्तमान में 4 बार से बीजेपी के सत्य प्रकाश अग्रवाल विधायक बनते आ रहे हैं।
 
मेरठ जिले की सात विधानसभा सीटों में मेरठ कैंट शामिल है। यह सीट 1889 में पहली बार बीजेपी की झोली में आई और भाजपा प्रत्याशी परमात्मा शरण मित्तल ने तत्कालीन कांग्रेस विधायक अजीत सिंह सेठी को बड़े अंतर से हरा कर विधायक बने थे। लेकिन परमात्मा शरण के आकस्मिक निधन के बाद, इस सीट पर उनकी पत्नी खाली शशि मित्तल भाजपा के टिकट पर लड़ी। शशि एक दम घरेलू महिला रानीतिक से दूर थी, लेकिन पति की निधन के बाद मतदाताओं ने उन्हें जीताकर विधायक बनाया।
 
1993 में सीट से कैंट सीट पर भाजपा ने अमित अग्रवाल पर दाव खेला और वह जीत हासिल करते हुए विधायक बने, अमित अग्रवाल ने 1996 में भी जीत दर्ज की थी। जिसके बाद 2002 से सत्यप्रकाश अग्रवाल लगातार इस सीट से विधायक है।
 
मेरठ कैंट के वर्तमान विधायक का चुनावी जीत का सफर 2002 से शुरू हुआ है। सत्य प्रकाश ने अपनी उम्र को मात देते हुए चौंथी बार जब जीत हासिल की तो, सूबे के मुखिया ने उन्हें युवा विधायक बताते हुए पीठ थपथपाई थी।
 
2017 के विधानसभा चुनाव में सत्य प्रकाश ने बसपा प्रत्याशी सतेंद्र सोलंकी को मात दी थी। जबकि 2012 चुनाव में उन्होंने बसपा प्रत्याशी सुनील वाधवा को हराया था। 2002 के चुनाव में सत्य प्रकाश का अपने नजदीकी प्रत्याशी से बहुत कम मार्जन पर जीत मिली थी, लेकिन 2017 में उनकी जीत का अंतर 77 हजार को छू गया।
 
सत्य प्रकाश अग्रवाल 81 वर्ष में खुद को थका हुआ नही मानते हैं, उम्र के इस पडाव में भी फिर से चुनाव लड़ने की इच्छा रखते हैं, उनका कहना है पार्टी टिकट देगी तो वह चुनाव जरूर लड़ेंगे।
 
इस सीट को वर्तमान में भाजपा का गढ़ माना जाता है और कहा जाता है कि इस सीट पर भाजपा का....खड़ा हो जायें तो वह भी जीत जायेगा। साल 1989 से सीट भाजपा ने कैंट सीट पर विजय यात्रा शुरू की है जो आज तक कायम है, जीत का भगवा चार बार सत्य प्रकाश अग्रवाल फहरा चुके हैं।
 
1985 तक कांग्रेस पार्टी ने यहां पर कब्जा था, लेकिन धीरे-धीरे परिस्थिति बदली और कांग्रेस हाशिये पर आती चली गई, जिसके चले वह इस सीट पर वापसी नही कर पाई है। भाजपा की इस क्षेत्र पर पकड़ का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 2007 में भाजपा से अमित अग्रवाल को टिकट नही मिला और वह बागी होकर सपा की साइकिल पर सवार है गए। सपा से वह कैंट सीट पर लड़े और भाजपा के प्रत्याशी सत्यप्रकाश अग्रवाल से पराजित होकर तीसरे नम्बर पर रहे।
 
कैंट विधानसभा पर हमेशा राष्ट्रीय पार्टियों ने अपना परचम फहराया है। 1956 में कैंट सीट अस्तित्व में आयी और पहला चुनाव 1957 में हुआ था। तब इस सीट पर कांग्रेस की प्रकाशवती सूद ने सीपीआई के शांति स्वरूप को हराकर पहले ही चुनाव में सीट कांग्रेस को दी थी। इसके बाद दूसरी बार भी प्रकाशवती सूद विधायक चुनी गई।
 
1967 में इस यह सीट पर कांग्रेस के हाथ से निकलकर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के के वी त्यागी के हाथ में चली गई। केवी त्यागी ने कांग्रेस के कैलाश प्रकाश हराते हुए विधायक की कुर्सी पायी थी। 1969 के चुनाव में कांग्रेस के उमादत्त शर्मा ने कैंट सीट पर फिर से जीत दर्ज करायी थी। 
 
कांग्रेस ने 1974 में पंजाबी बिरादरी के अजीत सिंह सेठी को चुनावी मैदान में उतारा और वह विधायक चुने गये। अजित सिंह ने विधायक बनने के बाद जनता के दिलों पर राज किया और वह कैंट सीट पर 1989 तक लगातार चार बार विधायक रहे।
 
आजादी के बाद से 1985 के चुनाव तक कांग्रेस ने कैंट सीट पर जीत दर्ज की। वहीं 1989 के चुनाव में कांग्रेस को पराजय मिली और भाजपा इस पर काबिज हो गई। आज भी इस सीट पर भाजपा ही के सत्य प्रकाश अग्रवाल विराजमान है।
 
मेरठ कैंट सीट मतदाताओं के हिसाब से बेहद समृद्ध है, यहां पर 4 लाख 25 हजार से अधिक वोटर है। मतदाताओं के लिहाज से मेरठ कैंट क्षेत्र अब दूसरे नंबर पर आ गया है।मेरठ कैंट में 2 लाख 26 हजार 401 पुरुष वोटर और एक लाख 93 हजार 968 महिला वोटर हैं। करीब 70 हजार वैश्य, 50 हजार पंजाबी, दलित 40 हजार, मुस्लिम 25 हजार, जाट 15 हजार व थर्ड जेंडर शामिल है। पंजाबी,दलित और वैश्य वोट बैंक बाहुल्य इस सीट पर पिछले 4 टर्न से व्यापारी सत्यप्रकाश भाजपा के विधायक हैं।
 
मेरठ कैंट देश की बड़ी छावनियों में से एक है। कैंट के वोटर के पूर्वज किसी जमाने में अंग्रेजों के गुलाम हुआ करते थे। अंग्रेज अफसर इन्हें अपने छोटे-मोटे कामों के लिए इन लोगों को छावनी के आसपास बसाया था। आज भी यहां पर बड़ी पुश्तैनी इमारत मौजूद है, नबाव साहब की हवेली जैसी। मेरठ का दिल कहे जाने वाला आबूलेन बाजार भी कैंट विधानसभा क्षेत्र में आता है। यहां की समस्याएं सुरक्षा एवं अपराध, बिजली, पानी, अवैध डेरी हटाना, रोजगार, साफ-सफाई और व्यापारी हित इत्यादि है।
 
मेरठ कैंट से अंग्रेज तो चले गए और समय के साथ-साथ यहां जनसंख्या बढ़ती गई, आज यहां पर आबादी 7 लाख के साथ आसपास है। इस बार पूर्व विधायक अमित अग्रवाल, सांसद प्रतिनिधि हर्ष गोयल और भाजपा महानगर अध्यक्ष मुकेश सिंघल का नाम टिकट के लिए चर्चाओं में है। हालांकि बीजेपी ने अभी प्रत्याशी के नाम की घोषणा नही की है। वही गठबंधन में यह सीट रालोद के खाते में जाने की उम्मीद है।