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Shri Krishna 27 August Episode 117 : संभरासुर के गुरुदेव जब कुंभकेतु से कहते हैं कि बालक प्रद्युम्न को नष्ट कर दो

Shri Krishna 27 August Episode 117 : संभरासुर के गुरुदेव जब कुंभकेतु से कहते हैं कि बालक प्रद्युम्न को नष्ट कर दो - Shri Krishna on DD National Episode 117
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 27 अगस्त के 117वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 117 ) में संभरासुर के गुरुदेव उनके यहां पधारते हैं तो उन्हें राजमहल के उपर काली छाया नजर आती है जिसे देखकर गुरुदेव अपनी शक्ति से भगवान शंकर का नाम लेकर उस काली छाया से प्रकट होने का कहता है और पूछते हैं बताओ की तुम कौन हो तो वह काली छाया प्रकट होकर कहती है कि मैं काल हूं और संभरासुर का भक्षण करूंगा। यह सुनकर गुरुदेव कहते हैं- परंतु संभरासुर तो अजेय और अमर हैं। यह सुनकर काल कहता है कि केवल में ही अजर और अमर हूं और कोई नहीं। ये उसकी भूल है मैं संभरासुर का काल हूं। यह सुनकर गुरुदेव कुंभकेतु से कहते हैं- चलो राजकुमार।...फिर वे दोनों भीतर चले जाते हैं।
 
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
 
यह देखकर रति कहती हैं देवर्षि गुरुदेव को तो सब पता चल गया अब क्या होगा? यह सुनकर नारदजी कहते हैं- चिंता मत करो देवी आगे देखो क्या होता है। राजमहल में गुरुदेव जब संभुरासुर से मिलने जाते हैं तभी रास्ते में उन्हें बालक प्रद्युम्न के रोने की आवाज सुनाई देती है। यह सुनकर वह रुक जाते हैं। वह ध्यान से सुनते हैं तो उन्हें बालक के रोने की आवाज में काल के हंसने की आवाज भी सुनाई देती है। तब कुंभकेतु कहते हैं- चलिये गुरुदेव विलंब हो रहा है। तब गुरुदेव कहते हैं- हां लगता है कि विलंब कुछ अधिक ही हो गया है, चलो।
 
फिर संभरासुर और उनकी पत्नी मायावती अपने गुरुदेव का स्वागत करते हैं। फिर संभरासुर कहता है- गुरुदेव त्रिलोक्य पर अधिराज स्थापित करने की मेरी महत्वकांक्षा है। मैं शीघ्र ही मृत्युलोक पर विजय प्राप्त करने के लिए आक्रमण करूंगा। इसके लिए आपका आशीर्वाद चाहिए। तब गुरुदेव कहते हैं- मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है संभरासुर। मुझे विश्वास भी है कि तुम मृत्युलोक पर विजय प्राप्त करके ही रहोगे, परंतु... यह सुनकर संभरासुर कहता है- परंतु क्या गुरुदेव?
 
गुरुदेव कुछ कहने लगते हैं तभी उन्हें उस बालक के रोने की आवाज सुनाई देती है और रोने की उस आवाज में काल के हंसने की आवाज भी सुनाई देती है। यह सुनकर वे उठ खड़े हो जाते हैं और उस आवाज की की दिशा में देखने लगते हैं। तब गुरुदेव कहते हैं कि मेरा आशीर्वाद लेने से पहले ये बताइये कि ये कौन बालक रो रहा है? तब रानी मायावती कहती है- प्रद्युम्न रो रहा है गुरुदेव। यह सुनकर गुरुदेव कहते हैं- प्रद्युम्न? इस पर मायावती कहती है- हां गुरुदेव हमारी दासी भानामति का पुत्र। यह सुनकर गुरुदेव कहते हैं- दासी का पुत्र? तब संभरासुर कहता है- हां गुरुदेव कृष्ण के पुत्र का वध करने के बाद मैंने ही भानामति के पुत्र का नामकरण किया है प्रद्युम्न। ऐसा कहकर संभरासुर जोर-जोर से हंसने लगता है। 
 
यह सुनकर गुरुदेव कहते हैं कि संभरासुर शास्त्र कहता है कि जब अपने ही राज्य में राजा बलवान हो जाता है और उसका मार्ग निष्कंटक हो जाता है तभी उसे दूसरे राज्य पर आक्रमण करना चाहिए। मैं तुम्हें मृत्युलोक पर आक्रमण करने की आज्ञा तो दूंगा परंतु इससे पहले तुम्हें अपना मार्ग निष्कंटक करने का भी कहूंगा।
 
यह सुनकर संभरासुर का पुत्र कुंभकेतु कहता है कि इसका अर्थ ये हुआ गुरुदेव की हमारे पिताश्री परामप्रतामी संभरासुर का मार्ग निष्कंटक नहीं है? तब गुरुदेव कहते हैं- हां कुंभकेतु।... और महाराज संभरासुर मैं तुम्हें एक चेतावनी देता हूं।... यह सुनकर संभरासुर चौंककर कहता है- चेतावनी? फिर मायावती कहती है आप कृपया स्पष्ट शब्दों में कहिये गुरुदेव। तब गुरुदेव कहते हैं- रानी मयावती यदि स्पष्ट शब्दों में सुनना चाहती हो तो सुनो! मृत्युलोक पर संभरासुर के आक्रमण का अर्थ केवल मृत्यु को निमंत्रण देने के बराबर होगा। हां मायावती तुमने पिछले युद्ध में अपना एक पुत्र खोया था अब दूसरे पुत्र तथा उसके पिता को भी खोने की आशंका है। यह सुनकर मायावती चीखती हैं- नहीं।
 
तब संभरासुर कहता है- मैं नहीं मानता इस बात को गुरुदेव, ये सत्य नहीं है, मैं अमर हूं। फिर उसका पुत्र कुंभकेतु कहता है- क्षमा करें गुरुदेव, आपकी ये भविष्यवाणी गलत भी हो सकती है। तब गुरुदेव कहते हैं कदापि गलत नहीं हो सकती। यह सुनकर मायावती कहती है- तो आप इसे गलत कर दिखाएं गुरुदेव। मैं अपने सुहाग और पुत्र को खोना नहीं चाहती। तब संभरासुर कहता है कि गुरुदेव मायावती के मन की शांति के लिए कोई उपाय अवश्य बताइये परंतु ये भी तो बताइये की इस आशंका का कारण क्या है? 
 
तभी गुरुदेव को फिर से उस बालक के रोने के आवाज में काल के हंसने की आवाज सुनाई देती है। तब वह कहता है कि ये बच्चे का रोना सुन रहे हैं.. ये रोना नहीं है मृत्यु का हास्य है। यह सुनकर कुंभकेतु, संभरासुर और मायावती चौंक जाते हैं। फिर गुरुदेव कहते हैं कि ये कोई साधारण बालक नहीं मृत्यु ने ही इस बालक के रूप में जन्म लिया है। यदि ये बालक जीवित रहा तो समझो सर्वनाश हो जाएगा।...यह सुनकर कुंभकेतु, संभरासुर और मायावती चौंक जाते हैं।
 
तब गुरुदेव कहते हैं- दैत्यराज इस बालक का वध तुम्हारी सुरक्षा का आश्वासन है। इसलिए यदि तुम मेरा आशीर्वाद चाहते हो तो इस बालक के वध के बाद ही मिलेगा। इससे पहले मैं केवल यही आशीर्वाद दे सकता हूं कि तुम प्रद्युम्न का वध करने में समर्थ रहो। अब मुझे आज्ञा दीजिये।
 
गुरुदेव के जाने के बाद रानी मायावती कहती है- गुरुदेव ये क्या कह गए। इस राजमहल में मृत्यु वास कर रही है। प्रद्युम्न पर आपको विजय प्राप्त करनी होगी महाराज। यह सुनकर संभरासुर जोर-जोर से हंसने लगता है और फिर कहता है- मायावती एक बालक जिसे सदा सर्वदा माता की ममता के आधार की आवश्यकता होती है, जो बोल नहीं सकता है लेकिन रो-रोकर अपनी माता का ध्यान आकर्षित कर लेता है उस बालक पर गुरुदेव मुझे विजय प्राप्त करने के लिए कह रहे हैं। 
 
उधर, महल से कुंभकेतु के साथ बाहर जाते वक्त गुरुदेव को पुन: उस बालक के रोने की आवाज आती है तो वे रुक जाते हैं। फिर वे कुंभकेतु से कहते हैं- आओ मेरे साथ। फिर वे रसोईघर में चले जाते हैं जहां पर भानामति अपने पुत्र प्रद्युम्न को रोने से चुप करा रही होती है और भाणासुर भी उसी के पास खड़ा होता है। वे दोनों गुरुदेव और कुंभकेतु को देखकर प्रणाम करते हैं। फिर गुरुदेव उस बालक को देखकर कहते हैं- किसका है ये बालक?
 
यह सुनकर भाणासुर कहता है- ये मेरा पुत्र है गुरुदेव, प्रद्युम्न। इसे आशीर्वाद दीजिये ये धन्य हो जाएगा। भानामति भी कहती है- हां गुरुदेव इसे आशीर्वाद दीजिये। ऐसा कहते हुए भानामति उस बालक को गुरुदेव के चरणों में रख देती है। गुरुदेव उस बालक को गौर से देखते हैं तो उसके भीतर वही काल हंसता हुआ दिखाई देता है। यह देखकर वे चौंक जाते हैं। फिर वे कहते हैं कि मैं इसे आशीर्वाद नहीं दे सकता वत्स। तब भानामति पूछती है- क्यों गुरुदेव? तब वे कहते हैं- क्योंकि ये बालक अशुभ है।
 
यह सुनकर भानामति कहती है- ये आप क्या कह रहे हैं गुरुदेव! एक निष्पाप बालक अशुभ कैसे हो सकता है? फिर भाणासुर कहता है- गुरुदेव क्या ये बालक सचमुच में अशुभ है? तब गुरुदेव कहते हैं- मेरा विश्वास करो वत्स! ये बालक असुरेश्वर संभरासुर के लिए अशुभ है। यह कहकर गुरुदेव देखते हैं कि उस बालक ने उनकी धौति पकड़ ली है और उस बालक के भीतर बैठा काल जोर-जोर से हंस रहा है और कहता है- गुरुदेव आपको इस बात का स्मरण होगा कि मुझे कोई मार ही नहीं सकता क्योंकि मैं काल हूं काल और इस संसार में केवल मृत्यु की ही मृत्यु नहीं है...मैं अमर हूं अमर हूं मैं...हा हा हा।  
 
तब गुरुदेव कहते हैं कि इस बालक के कारण ना केवल संभरासुर का नाश होगा बल्कि संभरासुर के साम्राज्य का भी विनाश होगा। इस बालक की मृत्यु संभरासुर के लिए अमृत्व का वरदान है। भानामति यदि तुम संभरासुर और उसके राज्य का भला चाहती हो तो तुम शीघ्र ही इसे नष्ट कर दो।...यह सुनकर भानामति कहती हैं- नहीं गुरुदेव...ऐसा कहकर वह बालक को उठाकर अपने सीने से लगा लेती है। कुंभकेतु यह सब देख और सुनकर उसके चेहरे पर क्रोध हो जाता है। तब भानामति कहती है कि मैं इसे नष्ट नहीं करने दूंगी ये बच्चा मेरा है।.. फिर गुरुदेव वहां से चले जाते हैं। 
 
बाहर वे कुंभकेतु से कहते हैं कि इस बालक से मुझे अशुभ संकेत मिल रहे हैं। यदि ये बालक जीवित रहा तो ना केवल महाराज संभरासुर के लिए बल्कि उनके परिवार और समस्त साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध होगा। इसलिए तुम सात दिनों के अंदर इस बालक का वध कर दो। 
 
 
फिर उधर, विलाप कर रही सत्यभामा को रुक्मिणी और श्रीकृष्‍ण समझाते हैं और कहते हैं कि सत्य यही है सत्यभामा की प्रद्युम्न का हरण हो गया है। इस समय धर्म क्या है इसका विवेचन करना ये भी मेरे लिए एक धर्मसंकट है सत्यभामा। प्रद्युम्न का पिता होने के नाते उसकी सुरक्षा करना, उसे लाड़-प्यार देना ये मेरा धर्म है। प्रद्युम्न का हरण होने के बाद उसे ढूंढ निकालना और सुरक्षित रखना ये भी मेरा एक धर्म है। मैं अपना धर्म नहीं निभा पाया ये ही कहना चाहती हो ना आप? तब सत्यभामा क्षमा मांगती है।
 
फिर वे कहते हैं कि पुत्र वियोग में व्याकुल होने के कारण तुम ऐसा कह रही तो परंतु जिस तरह मैं प्रद्युम्न का पिता हूं उसी तरह सत्य और धर्म की रक्षा करना भी मेरा कर्तव्य है। अधर्मियों का नाश करना ये भी तो मेरा एक धर्म है सत्यभामा। पिता का धर्म और धर्म पक्ष के प्रतिनिधि का धर्म ये दोनों धर्म जब एक-दूसरे से टकराते हैं तब धर्म पक्ष के प्रतिनिधि का पलड़ा हमेशा भारी होता है। यह सुनकर सत्यभामा कहती है- अर्थात? तब वे कहते हैं कि अर्थात ये कि मेरे पुत्र प्रद्युम्न से त्रिलोक का कल्याण महत्वपूर्ण है। यदि मैं भी पुत्र मोह के कारण विचलित हो गया तो त्रिलोक में हाहाकर मच जाएगी देवी। समय के अनुसार व्यक्ति को किस धर्म का पालन करना चाहिए यह समझना अनिवार्य है। तब सत्यभामा कहती है कि इसका अर्थ ये हुआ वासुदेव की प्रद्युम्न का हरण होना समय की मांग थी? तब रुक्मिणी कहती है कि तुम्हें सत्यभामा यही समझाने के लिए ही तो द्वारिकाधीश यहां आए हैं। हमारा प्रद्युम्न सुरक्षित है।
 
उधर, भानामति अपने पति भाणासुर से कहती है कि अब हमारा प्रद्युम्न यहां सुरक्षित नहीं है तो हमें शीघ्र ही इस राजमहल को और इस देश को छोड़ना पड़ेगा। तब उसका पति क्रोधित होकर कहता है- भानामति तुम्हें इस बच्चे की सुरक्षा की पड़ी है और मैं महाराज संभरासुर की सुरक्षा के बारे में सोच रहा हूं। संभरासुर हमारे स्वामी है। ये बालक तुम्हारे पेट से नहीं जन्मा है। ये तुम किस मोह-माया में पड़ गई हो। पुत्र मोह को भूल जाओ और स्वामी भक्ति को याद रखो। महाराज संभरासुर हमारे स्वामी हैं और ये बालक हमारा कौन है? तब भानामति रोते हुए कहती है कि ये बालक हमारा पुत्र है और मैं किसी भी ‍कीमत पर इसे छोड़ नहीं सकती। इस बालक को मैंने दूध पिलाया है मैं इसका खून बहते नहीं देख सकती। 
 
फिर वह उस बालक को अपनी पत्नी से छीनने का प्रयास करता है। परंतु वह उसे नहीं देती है तभी द्वार पर कुंभकेतु की आवाज सुनकर वह अपनी पत्नी से कहता है कि अब क्या करोगी तुम? यह सुनकर उसकी पत्नी उसे धक्का देकर अपने पुत्र को लेकर दूसरे कक्ष में भागकर कक्ष के द्वार के पास छिप जाती है।
 
कुंभकेतु तलवार हाथ में लेकर उसके घर में प्रवेश करता है और कहता है भाणासुर कहां है बालक। भाणासुर दूसरे कक्ष में इशारा कर देता है। वे दोनों उस कक्ष में प्रवेश करते हैं वहां द्वार के पीछे छुपी भानामति धीरे से द्वार से निकलकर बाहर जाने लगती है तभी कुंभकेतु देख लेता है और तलवार दिखाकर कहता है तो तुम हमारे प्राणों के शत्रु को लेकर हमसे दूर भाग रही थी, क्यों? तब भानामति कहती है कि राजकुमार ये बच्चा बड़ी प्रार्थना के बाद मिला है। ये बच्चा मेरा इकलौता पुत्र है, आप इसे छोड़ दीजिये, इसे मत मारिये। तब कुंभकेतु कहता है कि भानामति इस पुत्र को चुपचाप मेरे हवाले कर दो। तब वह कहती है कि नहीं मैं इसे महराज के पास ले जाऊंगी वहीं निर्णय करेगे। ऐसा कहकर वह कुंभकेतु को धक्का देकर राजमहल की ओर भागती है।
 
राजमहल में वह महाराज रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये। ऐसा कहते हुए वह दौड़ती हुई संभरासुर के कक्ष में जाने लगती है तो पीछे से कुंभकेतु भी उसके पीछे दौड़ता हुआ आता दिखाया जाता है। भानामति संभरासुर के पास जाकर उनके चरणों में बैठकर रोते हुए कहती है हमारी रक्षा कीजिये महाराज, रक्षा कीजिये महाराज। तभी वहां पर कुंभकेतु भी आ जाता है। यह देखकर संभरासुर और मायावती चौंक जाते हैं तब कुंभकेतु को देखकर भानामति अपने पुत्र को संभरासुर के चरणों में रख देती हैं।
 
यह देखकर संभारासुर और मायावती कहते हैं- ये क्या हो रहा है कुंभकेतु? तब कुंभकेतु कहता है कि माताश्री मैं तो गुरुदेव के आदेश का पालन कर रहा हूं। गुरुदेव ने आज्ञा दी है कि इस बालक को नष्ट कर दिया जाए।.. यह सुनकर भानामति रोते हुए कहती है- नहीं महराज नहीं। महाराज मेरा बच्चा तो एक नन्हा-सा बालक है। उसने कोई अपराध नहीं किया है महाराज। महाराज आप ही बताइये कि क्या ये बालक अशुभ हो सकता है। महारानी आप ही बताइये कि क्या बालक अशुभ हो सकता है? महराज आप इसकी रक्षा कीजिये। आप ही न्याय कीजिये महाराज। बरसों बाद मुझे पुत्र लाभ हुआ है महाराज, पुत्र बिना मेरा जीवन उजड़ जाएगा महाराज। आप ही ने तो इसे महावीर होने का आशीर्वाद दिया है महाराज। क्या आप स्वयं अपने आशीर्वाद को विफल कर देंगे? यह सुनकर संभरासुर और मायावती को दया आ जाती है और वे दोनों कुंभकेतु को ऐसा कृत्य करने से रोक देते हैं। तब भानामति महाराज के चरणों में गिरकर उनका धन्यवाद करती हैं। 
 
यह देखकर नारदमुनि देवी रति से कहते हैं- देख लिया आपने संभरासुर ने साक्षात अपनी मृत्यु को अभयदान दिया है। यही तो प्रभु की लीला है। फिर उधर भानामति खुश होकर अपने घर पहुंच जाती है तो उसका पति तलवार लेकर खड़ा रहता है। यह देखकर वह भयभित हो जाती है।
 
वह कहता है कि असुरेश्वर दयावान है उन्होंने इस भ्रम में कि यह तुम्हारा पुत्र है इसे अभयदान दिया होगा और यदि यह मेरा पुत्र होता भी तो महाराज की सुरक्षा के लिए मैं इसे नष्ट कर देता। यही स्वामी भक्ति की मांग है। गुरुदेव ने साफ शब्दों में कहा है कि इस बालक के कारण महाराज संभरासुर और उस बालक का साम्राज्य नष्ट हो जाएगा और यदि साम्राज्य नष्ट हुआ तो हम भी नष्‍ट हो जाएंगे। तुम इसे नीचे रख दो मैं इसी समय इसके टूकड़े-टूकड़े कर दूंगा। इस पर उसकी पत्नी कहती है कि अब इसे कोई नहीं मार सकता क्योंकि महाराज संभरासुर ने इसे अभयदान दिया है। यदि तुम इसे मारोगे तो उनके क्रोध का शिकार हो जाओगे। यह सुनकर उसका पति कहता है अच्छा ठीक है यदि मैं इसे नहीं मार सकता तो यह सचाई तो बता ही सकता हूं कि यह हमारा पुत्र नहीं है ये मछली के पेट से हमें मिला था। जय श्रीकृष्‍णा। 
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
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