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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : मंगलवार, 25 अगस्त 2020 (10:53 IST)

Shri Krishna 24 August Episode 114 : जब संभरासुर सत्यभामा बन हरण कर लेता है प्रद्युम्न का

Shri Krishna 24 August Episode 114 : जब संभरासुर सत्यभामा बन हरण कर लेता है प्रद्युम्न का - Shri Krishna on DD National Episode 114
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 24 अगस्त के 114वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 114 ) में बलरामजी प्रलयासुर को कहते हैं कि मैं तुझे आखिरी चेतावनी देता हूं कि मेरा बच्चा मुझे वापस दे दे। तब वह राक्षस कहता है कि बच्चा तो मैं तुझे नहीं दूंगा। यदि तुझमे साहस है तो आकर मुझसे छीन ले। यह सुनकर बलरामजी कहते हैं कि तू ऐसे नहीं मानेगा। तुझे मजा चखाना ही होगा। यह सुनकर वह राक्षस कहता है कि अरे तू क्या मुझे मजा चखाएगा मैं तुझे ही चखा देता हूं। ऐसा कहकर वह राक्षस, पेड़ और गुंबद उखाड़-उखाड़ कर बलरामजी पर फेंकता है परंतु बलरामजी अपनी गदा से उन सभी को दूसरी ओर फेंक देते हैं। वहां कुछ सैनिक भी आकर ये दृश्य देखते हैं। वह दानव अपने एक हाथ में प्रद्युम्न को पकड़े रहता है और दूसरे हाथ से वह छोटे-छोटे गुंबद उखाड़कर बलरामजी के उपर फेंकता रहता है।
 
 
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फिर बलरामजी अपनी गदा उसकी ओर फेंकते हैं तो वह उससे बच जाता है। तब वे अपने हल को बड़ा करके उसकी गर्दन में फंसा देते हैं और उसे खींचकर नीचे गिरा देते हैं तभी प्रलयासुर के हाथ से बालक प्रद्युम्न छूट कर नीचे गिरने लगता है तो बलरामजी उसे अपने हाथों में झेल लेते हैं। यह देखकर रुक्मिणी बेहोश हो जाती है। जामवंती और सत्यभामा उन्हें होश में लाना का प्रयास करती हैं।...फिर बलरामजी द्वारपाल को बालक प्रद्युम्न को सौंप देते हैं और फिर वे अपने हल से उस राक्षस का वध कर देते हैं।  
 
उधर, संभरासुर को जब यह समाचार मिलता है तो वह भड़क जाता है और कहता है- मायावती मैं उन ग्वालों को जिंदा नहीं छोड़ूंगा। तब मायावती कहती है कि हमसे बड़ी भूल हो गई महाराज, हमने कृष्‍ण को तुच्छ समझकर अपने दो साधारण राक्षसों को दांव पर लगा दिया। यह सुनकर संभरासुर कहता है- मायावती वह साधारण राक्षस नहीं थे। वो मेरे सबसे शक्तिमान राक्षस थे। फिर मायावती कहती है कि नाथ! आप समझने की कोशिश कीजिये की आपके सबसे शक्तिशाली और विशाल राक्षस कृष्ण की बराबर नहीं कर सकता। यह सुनकर संभरासुर कहता है कि पर क्यों मायावती? तब वह कहती हैं कि इसलिए कि आपके सारे राक्षस आपके दास है और दास कभी स्वामी की बराबरी नहीं कर सकता। पुत्र वियोग के कारण आपको अनंत शक्ति प्राप्त हुई है। आप बाहर निकलिये महाराज। सांप को मारने के लिए उसके बील में हाथ डालना पड़ता है।
 
तब संभरासुर कहता है कि तुम सही कह रही हो मायावती। कृष्ण जैसे मायावी शत्रु का सामना मेरे मायावी दानव नहीं कर सकते। अब मैं स्वयं शत्रु के राजमहल में घुसकर उसके पुत्र का हरण करूंगा और तुम्हारे सामने ग्वालों के कुलदीपक को बुझा दूंगा। 
 
यह देख और सुनकर रति खुश हो जाती है और नारदजी के पूछने पर कहती है कि खुशी की ही तो बात है वो देखिये देवर्षि। देख रहे हैं ना उस संभरासुर को। बड़ा ही नादान है भगवान श्रीकृष्ण से फिर से टक्कर लेने जा रहा है। अपना पुत्र खोकर भी अकल नहीं आई। मायावी प्रलयासुर को खो देने के बाद भी उसका साहस परास्त नहीं हुआ है उसका और अब स्वयं प्रद्युम्न के हरण की मूर्खता करने जा रहा है। परंतु उसको भी द्वारिका से मुंह की खाकर उल्टे पांव लौटना पड़ेगा।
 
फिर नादरजी कहते हैं कि देवी रति आप अभी उससे भलिभांति परिचित नहीं है। सैकड़ों राक्षसों और दानवों की मृत्यु के पश्चात ऐसे भयंकर राक्षस का जन्म होता है। आप उसकी मायावी शक्तियों को कम ना समझे। असुरराज संभरासुर के पास दिव्यास्त्रों की शक्ति है जो मायावी और प्रलयासुर के पास नहीं थी। फिर नारदमुनि बताते हैं कि उसके पास मुखदर नामक भयंकर अस्त्र है जो युद्धभूमि में अपने शत्रुओं पर कालदंड की भांति प्रहार करता है।...एक बार संभरासुर ने माता पार्वती की घोर तपस्या की और अंत में अपने सिर को काटने ही वाला था कि माता पार्वती ने प्रकट होकर उसे रोककर उसकी इच्छानुसार यह मुखधर दिया जिसके प्रयोग से माता ने शुंभ और निशुंभ का वध किया था। यह मुखधर साक्षात कालदंड है। माता पार्वती ने कहा कि इस कालदंड का प्रयोग तुम जिस पर भी करोगे वह चाहे जितना भी शक्तिशाली हो वह जीवित नहीं रह सकता। तथास्तु।... यह सुनकर रति घबरा जाती है। 
 
फिर उधर, संभरासुर को आकाशमार्ग से द्वारिका की ओर जाते हुए बताया जाता है। द्वारिका पहुंचकर वह देखता है कि कड़ा पहरा है तो वह हंसकर कहता है कि शायद उसे मेरी मायावी शक्ति के बारे में मालूम नहीं है। संभरासुर को कड़े से कड़ा पहरा भी नहीं रोक सकता। फिर संभरासुर अपने विमान को भूमि पर उतारकर उससे नीचे उतरता है और अपनी माया से विमान को अदृश्‍य कर देता है तब फिर वह अपना भेष बदल लेता है और वह एक सैनिक बन जाता है।
 
उधर, रुक्मिणी, सत्यभामा और जामवंती तीनों मिलकर प्रद्युम्न को लोरी गाकर पालने में सुलाने का प्रयास करती हैं।...उधर, संभरासुर महल परिसर में प्रवेश कर जाता है। परिसर से महल में प्रवेश करके किसी राजा का भेष धारण कर लेता है।... फिर वह रुक्मिणी के कक्ष के नजदीक पहुंचकर उनकी खास दासी का भेष धारण कर लेता है।... उधर रुक्मिणी, सत्यभामा और जामवंती बालक को सुला देती हैं और फिर सत्यभामा एवं जामवंती अपने अपने कक्ष में चली जाती हैं तब रुक्मिणी भी अपने पलंग पर लेट जाती है। दासी बना संभरासुर रुक्मिणी के कक्ष की ओर कदम बड़ाता है सभी सैनिक उसे दासी समझकर देखकर भी कुछ नहीं कहते हैं। वह रुक्मिणी के कक्ष में प्रवेश कर जाता है और चुपके से देखता है कि पालने में बालक सो रहा है और रुक्मिणी लेटे-लेटे उसे झुला झुला रही है। 
 
तभी रुक्मिणी आवाज लगाती है- दासी। तो दासी बना संभरासुर कहता है- जी महारानी। तब रुक्मिणी कहती है कि जरा ये दीपदान की ज्योत कम करना। संभरासुर कहता है- जो आज्ञा महारानी। फिर संभरासुर एक दीपक को छोड़कर सारे बुझा देता है। रुक्मिणी आंखें बंद कर लेती हैं तब वह देखता है पालने में प्रद्युम्न को। 
 
उधर, बलरामजी रुक्मिणी के कक्ष के बाहर सुरक्षा का जायजा लेने पहुंचते हैं। इधर, संभुरासुर चुपचाप से बालक को पालने में से उठाकर बाहर जाने लगता है। उधर, बलरामजी सैनिक से पूछते हैं कि सब कुशल तो है। तब वह कहते हैं- जी स्वामी। यह सुनकर संभरासुर के कदम द्वार के पास ही रुक जाते हैं। फिर वह तुरंत ही बालक को पुन: पालने में लेटाकर कहीं छुप जाता है। उधर बलरामजी कहते हैं कि रक्षकों सतर्क रहो, कड़ा पहरा दो रानियों के कक्ष पर कड़ी नजर रखना। ऐसा ‍निर्देश देकर वे चले जाता हैं तब संभुरासुर अपने असली रुप में आ जाता है तभी बालक प्रद्युम्न की ओर वह देखता है तो प्रद्युम्न रोने लगता है जिससे रुक्मिणी की नींद खुल जाती है तो वह बालक के पालने को हिलाकर उसे पुन: सुलाने का का प्रयास करती है। 
 
फिर संभरासुर सत्यभामा का रूप धरकर रुक्मिणी से कहता है- दीदी। रुक्मिणी उसकी आवाज सुनकर कहती है- अरे सत्यभामा तुम। अरे अंदर आओ ना वहां क्या खड़ी हो। ये देखो तुम्हारा लाड़ला प्रद्युम्न सोने का नाम ही नहीं ले रहा। मुझे तो लगता है कि कदाचित इसे तुम्हारे पास ही सोना है। देखो इसे चुप तो करो। फिर संभरासुर रुक्मिणी के कहने पर उसे गोदी में उठाकर उसे चुप करने का प्रयास करने लगता है।
 
भगवान श्रीकृष्ण ये देखकर मुस्कुराते हैं। फिर सत्यभामा बना संभरासुर कहता है- दीदी मैं इसे अपने कक्ष में ले जा रही हूं। रुक्मिणी कहती है- हां ले जाओ और ठीक तरह से ध्यान रखना इसका। तब सत्यभामा कहती है- हां दीदी। आप चिंता मत करो, राजकुमार पर मेरा ध्यान पूरी तरह रहेगा। ऐसा कहकर संभरासुर प्रद्युम्न को कक्ष से बाहर ले जाता है और रुक्मिणी पुन: सो जाती है।
 
कक्ष के बाहर पंक्तिबद्ध खड़े सभी सैनिक उसे सत्यभामा समझकर सिर झुका लेते हैं और उसे जाने देते हैं। तभी रास्ते में बलरामजी उसे देखकर रोकते हैं- सत्यभामा! प्रद्युम्न को लेकर कहां जा रही हो? तब संभरासुर कहता है- अपने कक्ष में। यह सुनकर बलरामजी कहते हैं- तुम्हारे कक्ष में? तब बलरामजी कहते हैं कि प्रद्युम्न तुम्हारे पास चैन से नहीं सोएगा। जाओ उसे रुक्मिणी को दे दो।... तब सत्यभामा भेषधारी शंभरासुर कहता है- परंतु दाऊ भैया... तभी बलरामजी कहते हैं- बहस क्यों कर रही हो सत्याभमा? मैं कह रहा हूं ना कि प्रद्युम्न तुम्हारे पास चैन से नहीं सोएगा, तुम उसे रुक्मिणी के कक्ष में दे आओ। वैसे भी रात बहुत हो चुकी है तुम भी अपने कक्ष में जाकर आराम करो, जाओ। 
 
यह सुनकर सत्यभामा को मजबूरी में पुन: रुक्मिणी के कक्ष में जाना पड़ता है। वह उसे पुन: पालने में सुला देता है तब वह बालक रोने लगता है। उसकी आवाज सुनकर असली सत्यभामा की नींद खुल जाती है और फिर वह अपने कक्ष से बाहर आती है और उधर संभरासुर भी पालने में प्रद्युम्न को सुलाकर पुन: बाहर आने आ जाता है जहां बलरामजी खड़े उसका रास्ता देख रहे होते हैं। फिर वे नकली सत्यभामा को देखकर कहते हैं- सत्यभामा देख लिया ना मां का प्रभाव। बच्चा अपनी मां के पास जाते ही शांत हो गया ना? इस पर सत्यभामा मुस्कुरा देती हैं तब बलरामजी कहते हैं- जाओ अब तुम भी जाकर अपने कक्ष में आराम से सो जाओ। मैं महल की पूरी सुरक्षा देखने के बाद ही अपने कक्ष में जाऊंगा। यह सुनकर ससंभरासुर वहां से चला जाता है और बलरामजी भी चले जाते हैं।
 
यह घटना श्रीकृष्‍ण देखते रहते हैं। फिर संभरासुर असली सत्यभामा को अपने कक्ष से बाहर आता हुआ देखकर छुप जाता है। असली सत्यभामा रुक्मिणी के कक्ष में जाकर बालक प्रद्युम्न को पालने में देखती है कि प्रद्युम्न तो सो रहा है तो वह खुद से ही कहती है कि मैं भी कितनी पागल हूं मुझे हर समय प्रद्युम्न की ही आवाज सुनाई देती है। यह सोचकर सत्यभामा वहां से चली जाती है और पुन: अपने कक्ष में जाकर सो जाती है। 
 
उधर, बलरामजी सैनिकों से कहते हैं कि अब मैं अपने कक्ष में जा रहा हूं अगर किसी भी प्रकार का खतरा नजर आए तो तुरंत मुझे सूचना देना। यह सुन और देखकर सत्यभामा बना संभरासुर निश्‍चिंत हो जाता है और वह पुन: रुक्मिणी के कक्ष में पहुंच जाता है। फिर वह प्रद्युम्न को पालने में से उठाकर वहां से चला जाता है।...श्रीकृष्ण ये देखकर मुस्कुराते हैं। सभी सैनिकों के बीच से होता हुआ महल की छत पर चला जाता है। नारदमुनि और रति भी ये घटना देख रहे होते हैं। फिर वह वहां पहुंचकर अपने असली रूप में प्रकट हो जाता है और फिर वह अपनी माया से अपने विमान को प्रकट करके उसमें प्रद्युम्न को लेकर बैठ जाता है और उसके इशारे से विमान आकाश में उड़ जाता है। श्रीकृष्ण यह दृश्य देखते रहते हैं।
 
संभरासुर गोद में लिए उस बालक प्रद्युम्न को कहते हैं- हे बालक! अब कुछ ही पल बाद तुम्हारे पिता कृष्‍ण और माता रुक्मिणी रोएंगे। पुत्र वियोग का शोक अपनी आत्मा को कितनी गहरी ठेस पहुंचाता है इसका अहसास दोनों को होगा। आज के बाद वो दोनों तुम्हारी याद में आंसू बहाते रहेंगे। फिर वह अपनी तलवार लहराते हुए कहता है- ऐ त्रिलोक के समस्त स्वामियों मैं अब अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने जा रहा हूं। कृष्ण ने मेरे पुत्र का वध किया था और अब मैं उसके पुत्र का वध करने जा रहा हूं।
 
यह सुनकर तभी श्रीकृष्ण नारदमुनि को इशारा करते हैं तो नारदमुनि तुरंत ही संभरासुर के विमान में ही प्रकट होकर कहते हैं- असुरेश्वर ये आप क्या करने जा रहे हैं? तब संभरासुर कहता है कि मैं अपने शत्रु को नष्ट करने जा रहा हूं देवर्षि। तब नारदजी कहते हैं- शत्रु और ये बालक? नारायण नारायण। जय श्रीकृष्णा। 
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
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