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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Modified: सोमवार, 6 नवंबर 2017 (12:36 IST)

लोकतंत्र की अवधारणा ऋग्वेद की देन

लोकतंत्र की अवधारणा ऋग्वेद की देन | democracy
लोकतंत्र की अवधारणा वेदों की देन है। चारों वेदों में इस संबंध में कई सूत्र मिलते हैं और वैदिक समाज का अध्ययन करने के बाद यह और भी सत्य सिद्ध होता है। ऋग्वेद में सभा और समिति का जिक्र मिलता है जिसमें राजा, मंत्री और विद्वानों से विचार-विमर्श करने के बाद ही कोई फैसला लेता था। वैदिक काल में इंद्र का चयन भी इसी आधार पर होता था। इंद्र नाम का एक पद होता था जिसे राजाओं का राजा कहा जाता था। हालांकि भारत में वैदिक काल के पतन के बाद राजतंत्रों का उदय हुआ और वे ही लंबे समय तक शासक रहे। यह संभवत: दशराज्ञा के युद्ध के बाद हुआ था।

इंद्र नाम का एक पद होता था जिसे राजाओं का राजा कहा जाता था। हालांकि भारत में वैदिक काल के पतन के बाद राजतंत्रों का उदय हुआ वे ही लंबे समय तक शासक रहे थे। यह संभवत: इसके बाद तब हुआ जब दशराज्ञा का युद्ध हुआ था।
 
भारत में गणतंत्र का विचार वैदिक काल से चला आ रहा है। गणतंत्र शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में चालीस बार, अथर्व वेद में 9 बार और ब्राह्माण ग्रंथों में अनेक बार किया गया है। वैदिक साहित्य में, विभिन्न स्थानों पर किए गए उल्लेखों से यह जानकारी मिलती है कि उस काल में अधिकांश स्थानों पर हमारे यहां गणतंत्रीय व्यवस्था ही थी। महाभारत में भी लोकतंत्र के इसके सूत्र मिलते हैं।
 
महाभारत के बाद बौद्धकाल में (450 ई.पू. से 350 ई.) में भी चर्चित गणराज्य थे। जैसे पिप्पली वन के मौर्य, कुशीनगर और काशी के मल्ल, कपिलवस्तु के शाक्य, मिथिला के विदेह और वैशाली के लिच्छवी का नाम प्रमुख रूप से लिया जा सकता है। इसके बाद अटल, अराट, मालव और मिसोई नामक गणराज्यों का भी जिक्र किया जाता है। बौद्ध काल में वज्जी, लिच्छवी, वैशाली, बृजक, मल्लक, मदक, सोमबस्ती और कम्बोज जैसे गंणतंत्र संघ लोकतांत्रिक व्यवस्था के उदाहरण हैं। वैशाली के पहले राजा विशाल को चुनाव द्वारा चुना गया था।
 
कौटिल्य अपने अर्थशास्त्र में लिखते हैं कि गणराज्य दो तरह के होते हैं, पहला अयुध्य गणराज्य अर्थात ऐसा गणराज्य जिसमें केवल राजा ही फैसले लेते हैं, दूसरा है श्रेणी गणराज्य जिसमें हर कोई भाग ले सकता है। कौटिल्य के पहले पाणिनी ने कुछ गणराज्यों का वर्णन अपने व्याकरण में किया है। पाणिनी की अष्ठाध्यायी में जनपद शब्द का उल्लेख अनेक स्थानों पर किया गया है, जिनकी शासनव्यवस्था जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथों में रहती थी।
 
अत: यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यूनान के गणतंत्रों से पहले ही भारत में गणराज्यों का जाल बिछा हुआ था। यूनान ने भारत को देखकर ही गणराज्यों की स्थापना की थी। यूनान के राजदूत मेगास्थनीज ने भी अपनी पुस्तक में क्षुद्रक, मालव और शिवि आदि गणराज्यों का वर्णन किया है।
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