धरती पर ही सात पातालों का वर्णन पुराणों में मिलता है। ये सात पाताल है- अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल। इनमें से प्रत्येक की लंबाई चौड़ाई दस-दस हजार योजन की बताई गई है। ये भूमि के बिल भी एक प्रकार के स्वर्ग ही हैं।
इनमें स्वर्ग से भी अधिक विषयभोग, ऐश्वर्य, आनंद, सन्तान सुख और धन संपत्ति है। यहां वैभवपूर्ण भवन, उद्यान और क्रीड़ा स्थलों में दैत्य, दानव और नाग तरह-तरह की मायामयी क्रीड़ाएं करते हुए निवास करते हैं। वे सब गृहस्थधर्म का पालन करने वाले हैं।
उनके स्त्री, पुत्र, बंधु और बांधव सेववकलोक उनसे बड़ा प्रेम रखते हैं और सदा प्रसन्नचित्त रहते हैं। उनके भोगों में बाधा डालने की इंद्रादि में भी सामर्थ्य नहीं है। वहां बुढ़ापा नहीं होता। वे सदा जवान और सुंदर बने रहते हैं।
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