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कविता : अबकी बादल यूं ही बरसते रहे...

Prem Geet
अबकी बादल यूं ही बरसते रहे
हम प्यार की एक बूंद को तरसते रहे


 
यूं तो ‍दरियों पानी बहुत ज्यादा था
लेकिन हम तो गंगाजल की एक बूंद को तरसते रहे
 
बात मुद्दत से जो दिल में छिपा रखी थी
लबों पर वो रुक-रुककर आने लगी
बात दिल में कब तक छुपाए रखें
आंखें खुद ही कहानी बताने लगी
 
रातभर चांद आज है रोया बहुत
सुबह धरती यह कहानी बताने लगी
चांदनी कब से उससे दूर थी
इस हकीकत की बयानी बताने लगी
 
कोई दरिया से पूछे
कितना लंबा सफर वो तय कर जाती है
पत्थरों-कंकड़ों से लड़ और झगड़ जाती है
आके समुंदर के गले मिल जाती है
 
इस कहानी को यूं ही हम पढ़ते रहे
अपनी हसरत को आंखों से कहते रहे
अबकी बादल यूं ही बरसते रहे
हम प्यार की एक बूंद को तरसते रहे।