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प्रेम काव्य : जुदाई...
तुमने बहार बन के,
मेरी नींद क्यों उड़ाई।
बर्दाश्त नहीं होती,
जालिम तेरी जुदाई।
तन्हाइयों में जीना,
दुश्वार हो रहा है।
बाहों में आके ले लो,
मौसम भी कह रहा है।
जब जाना था दूर मुझसे,
फिर प्रीति क्यों लगाई।
बर्दाश्त नहीं होती,
जालिम तेरी जुदाई।
केवल तुम्हारे सपने,
हमको दिखाई देते।
गालों का मेरे चुम्बन,
हिचकियों के संग लेते।
जब करना नहीं था प्यार,
तो बात क्यों बढ़ाई।
बर्दाश्त नहीं होती,
जालिम तेरी जुदाई।