• Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. गणतंत्र दिवस
  4. Republic Day of India
Written By

गणतंत्र दिवस : एक बार फिर जरूरी है राष्ट्रीयता पर विचार

गणतंत्र दिवस : एक बार फिर जरूरी है राष्ट्रीयता पर विचार - Republic Day of India
डॉ. पुरुषोत्तम दुबे
 
भारतीयता स्वर्ग से उतरा कोई स्वांग नहीं है अपितु भारतीयता संकल्पपूर्वक धारण किया हुआ धर्म है। भारतीयता कह देने से कोई एक जाति अथवा कोई एक वर्ग का अर्थ चरितार्थ नहीं होता है। समष्टि रूप में भारतीयता भारत में वासित समस्त जातियों, समस्त समुदायों एवं समस्त वर्गों द्वारा स्वीकार्य ऐसा सर्वोपरि भाव है, जिसमें भारत में वासित समस्त जातियां , समस्त समुदाय एवं समस्त वर्ग की पहचान विलीन हो गई है। कहने का तात्पर्य भारतीयता जाति, समुदाय और वर्ग के ऊपर की बात है। 
भारतीयता के अगले क्रम में भारतीय राष्ट्रीयता आती है। वैसे तो भारत के संदर्भ में राष्ट्रीयता का अभिप्राय ही भारतीय है। भारतीय होना ही भारतीय राष्ट्रीयता से बंधना है। हम भारतीय हैं यानी हम राष्ट्रीय हैं। भारतीय होना और राष्ट्रीय होना, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। विश्व में हमारी पहचान भारतीय होने से है और भारतीय होने की हमारी 'गारंटी' भारतीय राष्ट्रीयता से कटिबद्ध होने पर है। आज हमारे सामने भारतीय समाज की तीन पीढ़ियां अवस्थित हैं- एक साठ वर्ष से ऊपर की, एक चालीस वर्ष से नीचे की और एक नितांत युवा पीढ़ी लगभग अट्ठारह वर्ष के आसपास की। ये तीन पीढ़ियां महज पीढ़ियां नहीं अपितु भारतीय राष्ट्रीयता के सौंदर्य को भास्वरित बनाने वाली चमक भी है। 
 
साठ साल और साठ के ऊपर की पीढ़ी ने परतंत्र भारत के साथ-साथ भारत को स्वतंत्र होते हुए भी देखा है। जबकि चालीस वर्ष के नीचे की पीढ़ी ने स्वतंत्र भारत में तो जन्म लिया है मगर फिर भी इस पीढ़ी ने अपने अग्रजों से जाना है कि किन कठिनाइयों से भारत ने स्वतंत्रता अर्जित की है। जबकि अठारह वर्ष के आसपास की नितांत युवा पीढ़ी स्वतंत्र भारत में रहते हुए भी स्वतंत्रता के वास्तविक अर्थों से न केवल अनभिज्ञ है अपितु सघन भौतिकवाद, बाजारवाद और वैश्वीकरण की तीव्र प्रक्रिया में उलझकर भारतीय राष्ट्रीयता के बहुमूल्य संदर्भों से भी अपरिचित बनी हुई है। 
 
अतएव वर्तमान में आवश्यकता इस बात की है कि उक्त तीनों पीढ़ियों को कैसे एक जाजम पर बैठाया जाए, ताकि भारतीय राष्ट्रीयता के तारतम्य में उक्त पीढ़ियों के बीच पारस्परिक संवाद पैदा हो सके। भारतीय राष्ट्रीयता की अस्मिता का भान कराने वाला एक बड़ा कारक हमारी स्वतंत्रता का तो है ही इसके उपरांत सदियों पुरानी हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति, परदुःखकातरता से लिप्त हमारी संवेदनाएं, युद्धों को टालने वाली और मानव मात्र के संदर्भ में हमारी अहिंसक विचारधाराएं , अतीत में प्रकाशित हमारे संधि प्रस्तावों के अभिलेख इत्यादि भी भारतीय राष्ट्रीयता की अस्मिता को मुस्तैदी देने वाले बड़े कारक हैं।
ये भी पढ़ें
बादल परिवार को सत्ता से बेदखल करने आया हूं : सिद्धू