भारतीय प्रदेश मध्यप्रदेश के मध्य स्थित इंदौर जिले से लगभ 75 कीलोमीटर दूर देवास जिले के अंतर्गत बागली तहसील के उदयपुरा गांव के पास सीता वाटिका से लगभग 10 किमी उत्तर में वनप्रदेश के रास्ते पोटलागांव से 1 किमी की दूरी पर कावड़िया पहाड़ है। इस रहस्यमयी पहाड़ मौजूद है जिसे देखने के लिए कई लोग आते रहते हैं।
इसे कावडिया पहाड़ी कहते हैं। इस पहाड़ी के बनने के बारे में भिन्न-भिन्न मान्यता हैं। यह संपूर्ण क्षेत्र मालवा के अंतर्गत आता है। इस पहाड़ को देखने के बाद आप इसे पहाड़ करने के बजाया कहेंगे कि यह तो तराशे गए पत्थरों के पील्लरों का ढेर है। इसे कुछ लोग वंडर ऑफ नेचर कहते हैं तो कुछ लोगों के अनुसार ये पील्लर भीम ने लाकर रखे थे।
नेचर ऑफ वंडर : कुछ लोगों के अनुसार यह प्राकृतिक रूप से बना पहाड़ है। ये चट्टानें या छड़ें दूर से लोहे की बनी दिखाई देती हैं लेकिन ये पत्थरों, मिट्टी और खनिजों से मिलकर बनी हैं। यहां जमीन से 50-60 फीट ऊंची पत्थरों की लंबी-लंबी चट्टानें खड़ी हैं जो किसी बड़ी छड़ों के भूमि के गढ़े होने का आभास देती हैं। ये लगभग एक जैसी शेप और साइज में हैं। ऐसा लगता है जैसे इन्हें किसी फैक्टरी में बनाकर यहां लगा दिया गया हो या किसी वास्तुकार ने तराशा हो।
अजीब आवाज करती हैं ये चट्टानें : इन चट्टानों को किसी छोटे पत्थर या धातु से बजाने पर इनमें से लोहे की रॉड से निकलने वाली जैसी आवाज सुनाई देती है। कहीं कहीं इनमें से घंटी के स्वर भी जैसी आवाज भी निकलती है।
पांडवों ने बनाया : जनश्रुति है कि महाभारतकाल में इस वन प्रदेश में पांडवों ने अज्ञातवास हेतु भ्रमण किया था और भीम ने 3 फुट व्यास के 10 से 30 फुट लंबी कॉलम-बीम आकार के लौह-मिश्रित पत्थर इकट्ठे किए थे, जो सात स्थानों पर सात पहाड़ियों के रूप में हैं। इन पहाड़ियों की ऊंचाई 40-45 फुट की है। भीम का उद्देश्य इन पत्थरों से सात महल बनाने का रहा होगा, ऐसा माना जाता है।
प्रसिद्ध पुरातत्वविद प्रो. वाकणकर ने भी पहाड़ियों के इन पत्थरों का अनुसंधान किया था। नर्मदा परिक्रमा करने वाले धावड़ीकुंड से चलकर इन पौराणिक और दर्शनीय स्थानों का भ्रमण करते हुए तरानीया, रामपुरा, बखतगढ़ होते हुए चौबीस अवतार जाते हैं। पुरातत्व, पर्यावरण, वनभ्रमण की दृष्टि से कावड़िया पहाड़, कनेरी माता, सीताखोह और धावड़ी देखने योग्या स्थान है।
धार्मिक स्थल :
धावड़ी कुंड : इस क्षेत्र में ही हिन्दुओं का तीर्थ धाराजी भी आता है, जो अब डूब में चला गया है। यह बहुत ही प्रचीन स्थल है। यहां धावड़ी कुंड महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहां संपूर्ण नर्मदा 50 फुट से गिरती है, जिसके फलस्वरूप पत्थरों में 10-15 फुट व्यास के गोल (ओखल के आकार के) गड्ढे हो गए हैं। बहकर आए पत्थर इन गड्ढों में गिरकर पानी के सहारे गोल-गोल घूमते हैं, जिससे घिस-घिसकर ये पत्थर शिवलिंग का रूप ले लेते हैं। इन पत्थरों को बाण या नर्मदेश्वर महादेव का नाम दे दिया जाता है।
सीता वाटिका : नर्मदाजी का यह सबसे बड़ा जलप्रपात है। जलप्रपात से उत्तर में लगभग 10 किमी. पर सीता वाटिका, जिसे सीता वन भी कहते हैं, में सीता मंदिर भी स्थित है। कहा जाता है कि यहा महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था और सीताजी ने यहां निवास किया था। यहां पर 64 योगिनियों और 52 भैरवों की विशाल मूर्तियां भी हैं। समीप ही सीताकुंड, रामकुंड और लक्ष्मणकुंड हैं। सीतावाटिका से 6 कि.मी. की दूरी पर सीता खोह भी है।
कनेरी माता : सीताकुंड में हमेशा पेयजल उपलब्ध रहता है। सीता वाटिका से 16 किमी. पूर्व में कनेरी माता (जयंती माता) का मंदिर है, जिसकी तलहटी में कनेरी नदी बहती है, जिसमें विभिन्न रंगों की कनेर की झाड़ियां हैं। यह स्थान पूर्णतः घने जंगल में से होकर यहां हिंसक पशुओं का वास भी है।