Holi : कान्हा नगरी मथुरा के गांव में धधकते अंगारों के बीच निकलते हैं मोनू पंडा
मथुरा। उत्तर प्रदेश में कान्हा नगरी मथुरा के फालैन गांव की होली भगवान विष्णु के प्रति प्रहलाद की अटूट भक्ति का हर साल गवाह बनती है जब धधकती होलिका के बीच पंडा निकलता है।मथुरा से लगभग 55 और कोसी से लगभग 10 किमी दूर इस गांव की होली ब्रज की होलियों में निराली इसलिए होती है कि यहां पर धधकती होली के बीच से होली पर पंडा निकलता है लेकिन भगवत भक्ति के कारण उस पर आग का कोई असर नही पड़ता है।
गोपाल जी महाराज मंदिर के महंत बालकदास ने बताया कि इस बार यहां की होली से 25 वर्षीय मोनू पंडा 9 मार्च की रात निकलेगा। पिछले वर्ष यहां की होली से बाबूलाल पंडा निकला था। मोनू पंडा वर्तमान में गांव के प्रहलाद मंदिर में भजन-पूजन कर रहा है।
उन्होंने बताया कि इस गांव की होली बनाने का मुहूर्त माघ पूर्णिमा को निर्धारित किया जाता है। इस होली को होलिका दहन के चंद दिन पूर्व से बढ़ाया जाता है तथा इसका व्यास 30 फुट तथा ऊंचाई लगभग 15 फुट तक हो जाती है।
पिछले वर्ष होली से निकलने वाले 50 वर्षीय बाबूलाल पंडे ने बताया कि होली के एक माह पहले से ही मंदिर में प्रहलाद जी की शरण में यहां का पंडा आ जाता है। उसका कहना था कि होली से निकलने का मुहूर्त स्वयं प्रहलाद जी निकालते हैं तथा वही प्रेरणा देते हैं और कहते हैं कि हवन कुंड के पास जलते दीपक की लौ की ऊष्णता से महूर्त का अंदाजा लगाओ।
बाबूलाल ने बताया कि होली के दिन रात को हवन के दौरान पास में जलते दीपक पर हथेली रखकर होली जलाने के मुहूर्त का अंदाजा लगाया जाता है। होली जलने के कुछ समय पहले जब इस दीपक पर पंडा हाथ रखता है तो उसे न केवल दीपक की लौ बर्फ की तरह शीतल लगने लगती है बल्कि उसे भी जबर्दस्त ठंडक महसूस होने लगती है।
महंत बालकदास के अनुसार फालैन गांव में पंडों के 16 परिवार हैं तथा इन्हीं परिवारों से कोई व्यक्ति होली से निकलता है। होलिका दहन के एक माह पूर्व पूरा गांव मंदिर के सामने एकत्र होता है। पिछले साल होली से निकलने वाले पंडे से इस बार भी होली से निकलने के बारे में पूछा जाता है। उसके मना करने पर इस परिवार से कोई भी व्यक्ति अपनी सहमति देता है उसके बाद पूरा वातावरण प्रहलाद जी की जयकार से गूंज उठता है।
अगले दिन से होली से निकलने वाला पंडा गांव के प्रहलाद मंदिर में आ जाता है। मोनू पंडा भी वर्तमान में प्रहलाद मंदिर में तप कर रहा है। वह पिछले एक पखवारे से केवल दूध और फल पर ही रह रहा है तथा अन्न ग्रहण नही कर रहा है। बालक दास ने बताया कि इस गांव की होली का मुहूर्त पंडा स्वयं होली जलने से पहले बताता है। जब उसे दीपक की लौ ठंडी महसूस होने लगती है तो वह होली में आग लगाने को कहता है और खुद पास के प्रहलाद कुंड में स्नान करने को जाता है।
पंडे की बहन कुंड से होली तक करूए से पानी छिड़ककर पंडे के मार्ग को पवित्र बनाती है तथा पंडा पलक झपकते ही होली से निकल जाता है। होली से निकलने के बाद लोग पंडे को न छुएं इसलिए गांव के लोग पंडे के होली से निकलने के पहले ही लाठियों के साथ होली को घेर लेते हैं तथा पंडे के होली से निकलने के बाद ही हटते हैं। होली के दिन फालैन गांव में मेला सा लगता है तथा रात में गाना-बजाना चलता रहता है।
समय के बदलने के साथ इस व्यवस्था में भी ग्रहण लगने लगा है तथा मथुरा जिले के जटवारी गांव की होली से पंडा निकलने की परंपरा पिछले साल से बंद हो गई है जबकि जटवारी गांव की होली से पंडा निकलने की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है। इस गांव का सुक्खी पंडा तो होली की लपटों से 29 बार निकल चुका है। देखना यह है कि बदलते समय में फालैन गांव की परंपरा कितने दिन तक चलती है।