लखनऊ। उत्तरप्रदेश में होने वाले नगर निकाय के चुनाव को लेकर जहां एक तरफ समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी व कांग्रेस नगर निकाय चुनाव में जीत दर्ज कराने के लिए रात-दिन एक किए हुए हैं तो वही उत्तरप्रदेश में सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी के लिए ये चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं हैं।
नगर निकाय का चुनाव ऐसा होना लाजमी भी है, क्योंकि एक तरफ जहां केंद्र में भी भाजपा की सरकार है तो दूसरी तरफ प्रदेश में भी भाजपा की सरकार है और कई ऐसे अहम मुद्दे हैं जिसको लेकर विपक्षी पार्टियां भाजपा को नगर निकाय के चुनाव में घेरने का काम करेंगी।
लेकिन इन सबसे तो भारतीय जनता पार्टी शायद बच जाए लेकिन अगर सूत्रों की मानें तो पार्टी के अंदर टिकट वितरण के बाद से जो संघर्ष चालू हुआ है उससे बीजेपी कैसे निपटेगी? यह एक बहुत बड़ा सवाल है।
जहां कल तक जो नेता भाजपा के निष्ठावान व शांत स्वभाव के कहलाते थे वही कार्यकर्ता टिकट कटने के बाद एक नए रूप में खुलकर सामने आ गए हैं। चाहे लखनऊ हो या फिर कानपुर या फिर अन्य जिले, हर जगह भाजपा के कार्यकर्ता खुलकर पार्टी के ही विरोध में आ गए हैं।
और ऐसा होना स्वाभाविक भी है, क्योंकि एक तरफ जहां भाजपा जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को टिकट देने की बात कर रही थी तो वहीं दूसरी तरफ इसके विपरीत नजारा टिकट वितरण में देखने को मिला। इसका जीता-जागता उदाहरण कानपुर के बिठूर से भाजपा विधायक अभिजीत सांगा की माताजी निर्मला सिंह हैं जिन्हें भाजपा ने बिठूर नगर पंचायत से प्रत्याशी बनाया है तो वहीं दूसरी तरफ भाजपा ने बस्ती जिले के रुधौली नगर पंचायत से वहां के विधायक संजय जायसवाल की पत्नी संगीता जायसवाल को प्रत्याशी बनाया है जबकि स्पष्ट रूप से कह दिया गया था सिर्फ जमीनी कार्यकर्ता को ही टिकट दी जाएगी न कि किसी विधायक व सांसद के रिश्तेदारों को।
लेकिन पार्टी अपने ही कथन को भूलकर कई सीटों पर परिवारवाद को बढ़ावा देती नजर आई है। ऐसे में भाजपा के कई कार्यकर्ताओं का माननीय बनने का सपना चकनाचूर हो गया है और कहीं न कहीं कल तक पार्टी के लिए 'जिंदाबाद' के नारे लगाने वाले आज पार्टी के खिलाफ बोलते नजर आ रहे हैं। यह तो कुछ भी नहीं है।
भारतीय जनता पार्टी के कई वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने नाम न छापने की बात कहते हुए कहा कि लाठियां व जेल जाने के लिए हम बने हैं और टिकटरूपी सम्मान देने के लिए विधायक व सांसदजी के रिश्तेदार व उनके लोग बने हैं? अब आप ही बताइए, क्यों पार्टी के लिए रात-दिन एक करें? कई-कई दिन तक अपने परिवार और बच्चों से दूर रहने के बाद अगर हमें फलस्वरूप सिर्फ निराशा व आश्वासन ही मिलना है तो हम क्यों पार्टी के लिए रात-दिन मेहनत करें? कौन-सा हमने बहुत बड़ा पद मांगा था? सिर्फ एक वार्ड की टिकट ही तो मांगी थी जिस वार्ड के लिए रात-दिन काम करता आया हूं।
लेकिन पार्टी से कहां गलती हुई, इसकी जानकारी पार्टी को हो जाएगी, क्योंकि जिन्हें पार्टी ने प्रत्याशी बनाकर उतारा है उन्हें हम हराकर और निर्दलीय रूप से जीतकर दिखाएंगे और पार्टी को एहसास करा देंगे कि जमीनी कार्यकर्ता की क्या ताकत होती है। वे यही नहीं रुके। उन्होंने कहा कि दूसरी पार्टियों पर परिवारवाद का आरोप लगाना भाजपा छोड़ दे, क्योंकि खुद भाजपा भी परिवारवाद को ही बढ़ावा देती है, उन्हें कोई मतलब नहीं है। जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं से ऐसा होना स्वाभाविक है, क्योंकि हमारे पास बड़ी-बड़ी कारें व पैसे नहीं हैं और न ही किसी सांसद व विधायक का हाथ है...!
अब ऐसे में एक बात तो स्पष्ट हो रही है कि पहले निकाय चुनाव में भाजपा को अपनों से ही निपटना पड़ेगा और फिर कहीं जाकर विपक्षियों के सवालों के जवाब देने होंगे, क्योंकि अगर उत्तरप्रदेश सरकार के 6 महीनों के कामों की बात की जाए तो विपक्षी पार्टियां भारतीय जनता पार्टी को इन 6 महीनों के कार्यों को लेकर नगर निकाय चुनाव में घेरने का काम करेंगी और कई ऐसे और मुद्दे हैं, चाहे वह महंगाई का हो या फिर जीएसटी का जिनको विपक्षी पार्टी के नेता जनता तक पहुंचाने का काम करेंगे।
हो सकता है कि विपक्षी पार्टी का जवाब देने में भारतीय जनता पार्टी कामयाब हो जाए लेकिन वह कार्यकर्ता जो कल तक भारतीय जनता पार्टी के 'जिंदाबाद' के नारे लगा रहे थे आज वही उनके खिलाफ हैं। उनसे कैसे भारतीय जनता पार्टी निपटेगी? यह सवाल किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है।