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विवाह पंचमी पर पढ़ें श्री राम-जानकी स्तुति, मिलेगा मनचाहा जीवनसाथी और जागेगा सौभाग्य

विवाह पंचमी पर पढ़ें श्री राम-जानकी स्तुति, मिलेगा मनचाहा जीवनसाथी और जागेगा सौभाग्य - ram janki stuti on vivahpanchmi
प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी का दिन विवाह पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन माता सीता और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का विवाह हुआ था। इस दिन भगवान श्रीराम-माता सीता का व्रत-पूजन, उपवास रखकर पूरे मन से, सच्ची श्रद्धा और लगन के साथ माता सीता और प्रभु श्रीराम की उपासना करने से व्रतधारी की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। 
 
इस दिन विवाह योग्य जातक यदि सच्ची श्रद्धा के साथ पूजन करते हैं तो निश्चित ही उन्हें योग जीवनसाथी प्राप्त होता है। इतना ही विवाहितों के सौभाग्य में वृद्धि होने के साथ-साथ अच्छा जीवनसाथी भी मिलता है। विवाह पंचमी के दिन माता सीता और प्रभु श्रीराम की निम्न स्तुति अवश्य ही करना चाहिए।
 
यहां पढ़ें प्रभु श्रीराम और माता जानकी की पावन स्तुति- 
 
 
श्रीराम स्तुति Shri Ram Stuti 
 
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।
 
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।
 
कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरज सुन्दरम्।
 
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।
 
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
 
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।
 
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
 
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।
 
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
 
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।
 
छंद :
 
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
 
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।
 
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
 
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।
 
।।सोरठा।।
 
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
 
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।। 



श्री जानकी स्तुति Shri Janki  Stuti 
 
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम्।
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम्।।1।।
 
दारिद्र्यरणसंहर्त्रीं भक्तानाभिष्टदायिनीम्।
विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम्।।2।।
 
भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम्।
पौलस्त्यैश्वर्यसंहत्रीं भक्ताभीष्टां सरस्वतीम्।।3।।
 
पतिव्रताधुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम्।
अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम्।।4।।
 
आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहम्।
प्रसादाभिमुखीं लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभाम्।।5।।
 
नमामि चन्द्रभगिनीं सीतां सर्वाङ्गसुन्दरीम्।
नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरम्।।6।।
 
पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्ष:स्थलालयाम्।
नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननाम्।।7।।
 
आह्लादरूपिणीं सिद्धिं शिवां शिवकरीं सतीम्।
नमामि विश्वजननीं रामचन्द्रेष्टवल्लभाम्।
सीतां सर्वानवद्याङ्गीं भजामि सततं हृदा।।8।।
 
।।सियावर रामचंद्र की जय।।