Mithur sankranti : मिथुन संक्रांति की पूजा विधि और कथा
Mithur sankranti : सूर्य के मिथुन राशि में प्रवेश को मिथुन संक्रांति कहते हैं। इस बार सूर्यदेव 15 जून 2024 को मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे। इस बार मिथुन संक्रांति के दौरान पुष्य और अष्लेषा नक्षत्र रहेंगे। ओड़िसा में मिथुन संक्रांति का महत्व माना जाता है। इस दिन भगवान सूर्य से अच्छी फसल के लिए बारिश की मनोकामना करते हैं। मिथुन संक्रांति को रज पर्व भी कहा जाता है। इस दिन से सभी नक्षत्रों में राशियों की दिशा भी बदल जाएगी। इस बदलाव को बड़ा माना जाता है। मिथुन संक्रांति के बाद से ही वर्षा ऋतु की विधिवत रूप से शुरुआत हो जाती है।
मिथुन संक्रान्ति पुण्य काल- प्रात: 05:23 से दोपहर 12:22 तक रहेगा।
मिथुन संक्रान्ति महापुण्य काल प्रात: 05:23 से प्रात: 07:43 तक रहेगा।
मिथुन संक्रांति की पूजा विधि:-
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मिथुन संक्रांति के दिन सिलबट्टे को भूदेवी के रूप में पूजा जाता है। सिलबट्टे को इस दिन दूध और पानी से स्नान कराया जाता है।
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इसके बाद सिलबट्टे पर चंदन, सिंदूर, फूल व हल्दी चढ़ाते हैं।
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मिथुन संक्रांति के दिन पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
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मिथुन संक्रांति के दिन गुड़, नारियल, आटे व घी से बनी मिठाई पोड़ा-पीठा बनाया जाता है।
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इस दिन किसी भी रूप में चावल ग्रहण नहीं किए जाते हैं।ALSO READ: वर्ष 2024 की सभी 12 संक्रांतियों की तारीखों की लिस्ट
मिथुन संक्रांति की कथा:-
प्रकृति ने महिलाओं को मासिक धर्म का वरदान दिया है, इसी वरदान से मातृत्व का सुख मिलता है। मिथुन संक्रांति कथा के अनुसार जिस तरह महिलाओं को मासिक धर्म होता है वैसे ही भूदेवी या धरती मां को शुरुआत के तीन दिनों तक मासिक धर्म हुआ था जिसको धरती के विकास का प्रतीक माना जाता है। तीन दिनों तक भूदेवी मासिक धर्म में रहती हैं वहीं चौथे दिन में भूदेवी जिसे सिलबट्टा भी कहते हैं उन्हें स्नान कराया जाता है। इस दिन धरती माता की पूजा की जाती है। उडीसा के जगन्नाथ मंदिर में आज भी भगवान विष्णु की पत्नी भूदेवी की चांदी की प्रतिमा विराजमान है।