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Written By WD Feature Desk
Last Updated : बुधवार, 13 नवंबर 2024 (12:34 IST)

Vaikuntha chaturdashi date 2024: वैकुण्ठ चतुर्दशी का महत्व, क्यों गए थे श्री विष्णु जी वाराणसी?

shiv and vishnu
Vaikuntha Chaturdashi 2024:  कार्तिक मास की चतुर्दशी के दिन वैकुण्ठ चतुर्दशी मनाने का महत्व है। यह कार्तिक पूर्णिमा यानी देव दिवाली के एक दिन पहले आती है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु के साथ ही शिवजी की पूजा होती है। शिवपुराण के अनुसार कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के शुभ अवसर पर भगवान श्री विष्णु जी वाराणसी गए थे और उन्होंने वहां पर भगवान शिव का पूजन किया था। 14 नवंबर 2024 को यह पर्व मनाया जाएगा।ALSO READ: Dev Diwali 2024: देव दिवाली पर कब, कहां और कितने दीपक जलाएं?
 
वैकुण्ठ चतुर्दशी की पहली कथा : कथा के अनुसार शिवजी द्वारा त्रिपुरासुर के वध के बाद सभी देवताओं ने मिलकर गंगा के तट पर दीप जलाकर खुशियां मनाई थी। इसलिए इस दिन को देव दिवाली कहते हैं। इसके एक दिन पूर्व श्रीहरि विष्णु ने शिवजी का पूजन किया था। दरअसल, भगवान विष्णु ने एक सहस्र कमल पुष्पों द्वारा भगवान शिव का पूजन करने का संकल्प लिया था। भगवान शिव को कमल पुष्प अर्पित करते समय भगवान विष्णु को ज्ञात हुआ कि अन्तिम पुष्प वहां नहीं है तो उन्होंने अपने नेत्र निकालकर अंतिम पुष्प के स्थान पर उसे अर्पित कर दिया था, क्योंकि विष्णुजी के नेत्र कमल के समान हैं। भगवान विष्णु की यह भक्ति देखकर भगवान शिव अत्यंत ही प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान विष्णु को उनका नेत्र वापस करके उन्हें सुदर्शन चक्र भी भेंट किया।ALSO READ: Dev Diwali 2024: देव दिवाली कब है, जानिए पूजा के शुभ मुहूर्त और विधि
 
वैकुण्ठ चतुर्दशी की दूसरी कथा : इस संबंध में मान्यता है कि भगवान विष्णु 4 माह के लिए शयन काल में चले जाते हैं। इस दौरान कोई शुभ कार्य नहीं होते। तब भगवान शिव ही सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं। जब श्रीहरि विष्णु देव उठनी एकादशी के दिन योगनिद्रा से उठते हैं तब उनका तुलसी जी के साथ विवाह होता है और इसके बाद वे चतुर्दशी के दिन वाराणसी जाकर भगवान शिव से कार्यभार पुन: प्राप्त कर लेते हैं। इसी दिन को बैकुंठ चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन हरि और हर अर्थात भगवान शिव और विष्णु का मिलन होता है। इसलिए इसे हरिहर मिलन कहा जाता है। 
 
पूजा का सही समय: 
वैकुण्ठ चतुर्दशी पर, भगवान विष्णु की पूजा निशीथकाल में की जाती है, जो हिन्दु दिन गणना के अनुसार मध्यरात्रि का समय है। वैकुण्ठ चतुर्दशी निशीथ काल समय रात्रि 11:39  से प्रारंभ होकर 12:32 तक रहेगा। 
 
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ- 14 नवम्बर 2024 को सुबह 09:43 बजे से।
चतुर्दशी तिथि समाप्त- 15 नवम्बर 2024 को सुबह  06:19 बजे तक।
वैकुंठ चतुर्दश का महत्व : इस दिन पवित्र नदी में स्नान करना अति पुण्यदायी माना गया है। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन शिव, विष्णु का पूजन तथा पितृ तर्पण का दिन माना गया है। माना जाता है कि इस दिन शुभ महूर्त में किया गया पूजन बैकुंठ लोक की प्राप्ति कराने में सहायक है। चतुर्दशी के दिन पूर्वमुखी बैठकर भगवान श्रीहरि विष्णु व शिव जी का पूजन करने का महत्व है। इस दिन पूजन में विशेष तौर पर जल, कमल के पुष्‍प, दूध, शकर, दही तथा केसर, इत्र से पूजन अभिषेक करके गाय के घी में केसर मिलाकर दीप प्रज्ज्वलित करना चाहिए तथा चंदन की अगरबत्ती से पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही मखाने की खीर का भोग लगाना चाहिए। फिर विष्णु मंत्रों की 1 माला का जाप करके खीर गाय को खिलाना चाहिए। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन निशिथ काल में पूजन करना बहुत शुभ फलदायी रहता है। इस दिन विष्णु का नाम स्मरण करना चाहिए तथा सप्त ऋषियों का आवाहन उनके नामों से करना चाहिए, ऐसा मादा जाता है। चतुर्दशी के दिन इस तरह पूजन करने से जीवन के सभी कष्‍टों से मुक्ति होकर उन्हें सुख-समृद्धि, आरोग्य तथा सभी सुखों की प्राप्ति होकर अतं में बैंकुंठ की प्राप्ति होती है।ALSO READ: Dev diwali 2024: कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली रहती है या कि देव उठनी एकादशी पर?