हरतालिका तीज की तारीख को लेकर भ्रम में न रहें : वेबदुनिया ज्योतिषी के अनुसार जानिए कब मनाएं पर्व
क्या है हरतालिका तीज की सही तारीख, कब मनाएं पर्व, बता रहे हैं वेबदुनिया ज्योतिषी
कब मनाएं हरतालिका तीज-
हमारे सनातन धर्म व्रत व त्योहारों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। श्रद्धालुगण अपनी-अपनी श्रद्धानुसार व्रत रखते हैं लेकिन कभी-कभी व्रत की तिथियों को लेकर उनके मन में संशय उत्पन्न हो जाता है। इसका मुख्य कारण है पंचांग भेद अर्थात विभिन्न पंचांगों में तिथियों व व्रतों का अलग-अलग तारीखों में दिया होना।
पंचांग भेद होने पर पण्डितगण अलग-अलग शास्त्रों के मतों का उल्लेख करते हुए तिथियों व व्रतों का निर्णय करने का प्रयास करते हैं किन्तु अधिकतर वे श्रद्धालुओं को किसी निर्णय पर पहुंचाने की अपेक्षा और अधिक उलझा देते हैं। हमारे मतानुसार शास्त्रों को यदि ठीक प्रकार से ना समझा जाए जो तो वे लाभ के स्थान पर भ्रम व संशय उत्पन्न कर देते हैं। ठीक ऐसा ही भ्रम इस बार हरतालिका तीज के व्रत को लेकर हुआ है जिसे लेकर विद्वानों के अलग-अलग मत है क्योंकि किसी पंचांग में हरतालिका व्रत 1 सितंबर को दिया गया है वहीं किसी पंचांग में यह व्रत 2 सितंबर को दिया गया है।
2 सितंबर को हरतालिका व्रत के मान्य करने हेतु तर्क-
जो विद्वान 2 सितंबर को हरतालिका व्रत को मान्यता दे रहे हैं वे शास्त्रों का आधार लेते हुए बता रहे हैं कि शास्त्र में चतुर्थी तिथि से संयुक्त तृतीया तिथि को ग्रहण करने का निर्देश है, द्वितीया से संयुक्त तिथि को नहीं। लेकिन यह बात अर्द्धसत्य है इसी वजह से यह भ्रम व संशय उपस्थित हुआ है। 2 सितंबर को हरतालिका व्रत को मान्यता देने वाले विद्वानों ने शास्त्र के क्षय तिथि के संदर्भ में दिए गए निर्देश की उपेक्षा कर दी।
विदित हो कि 2 सितंबर को तृतीया तिथि क्षय तिथि की संज्ञा में है और शास्त्रानुसार समस्त शुभ कार्यों में क्षय तिथि वर्जित व त्याज्य होती है। इसी सिद्धांत के अनुसार कुछ पंचांग हरतालिका व्रत 1 सितंबर को बता रहे हैं जो पूर्णरूपेण सही व शास्त्रसम्मत है। क्योंकि इस बार तृतीया तिथि चतुर्थी से संयुक्त ना होकर क्षय तिथि के रूप में है।
क्या है क्षय व वृद्धि तिथि-
हमारे मुहूर्त्त निर्धारित करने वाले शास्त्रों में क्षय व वृद्धि तिथि के संबंध में स्पष्ट उल्लेख है कि जो तिथि एक सूर्योदय के पश्चात प्रारंभ होती है व अगले सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो जाती है उसे क्षय तिथि कहते हैं एवं जो तिथि दो सूर्योदय समय तक रहती है उसे वृद्धि तिथि कहते हैं। पंचांग में वृद्धि तिथि को 2 बार लिखा जाता है जबकि क्षय तिथि शून्य (0) के साथ क्षय लिखकर दर्शाया जाता है। शास्त्रानुसार समस्त शुभ कार्यों में क्षय व वृद्धि तिथियां त्याज्य होती हैं।
इसी सिद्धांत के अनुसार प्रामाणिक पंचांगों में दिनांक 2 सितंबर जो कि क्षय तिथि है उसे त्यागकर हरतालिका व्रत 1 सितंबर को मान्य किया गया है।