हिलेरी की हार का सीधा-साधा मतलब है कि राजनीतिक, आर्थिक व सामरिक मोर्चे पर अमेरिका बदलने जा रहा है। दुनिया के सबसे ताकतवर पद पर ट्रंप का आना अमेरिकी समाज व देश के लिए कैसा रहेगा? मुसलमानों, महिलाओं और अश्वेतों के प्रति ट्रंप का रवैया लोगों के लिए बहुत चिंताजनक व कथित तौर पर अस्वीकार्य कहा जा रहा था लेकिन उनकी जीत शायद इसे गलत साबित करती है। हम अगर कहें कि इसके बाद इतिहास ट्रंप से पहले व ट्रंप के बाद के काल के रूप में याद रखेगा तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
ट्रंप की जीत दुनिया विशेषकर अमेरिकी मीडिया के लिए बड़ा झटका साबित होगी। कथित उदार व प्रगतिशील सोच वाला मीडिया शुरू से ही ट्रंप के पीछे हाथ धोकर पड़ा था। वह चाहे वॉशिंगटन पोस्ट हो, अटलांटिक, न्यूयॉर्क टाइम्स या हफिंगटन पोस्ट... सभी खुलकर ट्रंप का विरोध कर रहे थे। इतिहास में पहली बार शायद ही ऐसा हुआ।
कहां होगी भारत को मुश्किल?
विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप की जीत के बाद भारत और अमेरिका के डिफेंस और व्यापारिक समझौते बेहतर हो सकते हैं, साथ ही चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के लिए दिक्कत हो सकती है। ट्रंप ने अक्सर अपने चुनावी भाषणों में अमेरिका के हितों की रक्षा की बात प्रमुखता से रखी थी।
उन्होंने कहा है कि ओबामा के सभी विदेशी व्यापारिक समझौतों की समीक्षा की जाएगी। इससे स्पष्ट है कि भारत भी इन व्यापारिक समझौतों की समीक्षा से अछूता नहीं रहेगा। ट्रंप ने H1B वीसा प्रोग्राम का विरोध किया है। इसमें भारत की आईटी कंपनियां विशेषकर इंफोसिस एवं टीसीएस प्रभावित होंगी।
भारत के पक्ष में क्या?
यद्यपि ट्रंप ने इमिग्रेशन नियमों को कड़ा करने की बात कही है लेकिन उन्होंने स्पष्ट कहा है कि वे भारत के अधिक नए उद्योगपतियों एवं छात्रों को अमेरिका में देखना चाहते हैं, जो अमेरिका के विकास में सहायक होंगे। अपने पूरे चुनावी अभियान में ट्रंप ने चीन ने की कठोर शब्दों में निंदा की है और उसे अमेरिका की सबसे बड़ी रुकावट करार दिया है।
ट्रंप ने कहा कि चीन मुद्रा का सबसे बड़ा मेनुपुलेटर है और अगर चीन पुन: अपने व्यापार समझौतों को अमेरिका के हितों के अनुकूल नहीं करेगा तो उसके सामान पर कठोर कर लगाए जाएंगे। यह भारत के लिए राहत की बात है। पाकिस्तान को ट्रंप ने 'आतंकवाद का स्वर्ग' कहा है। उन्होंने कहा कि हम इस्लामिक आतंकवाद का डटकर मुकाबला करेंगें। उन्होंने भारत की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का पुरजोर समर्थन किया है। ये सारे तथ्य ट्रंप को भारत के पक्ष में खड़ा करते हैं और अमेरिका की एशिया नीति में भारत उसका नेचुरल अलाई बनकर उभर सकता है।
एक और जहां भारत ट्रंप की जीत को आशावादी दृष्टिकोण से देख रहा है वहीं अमेरिका में इस समय बड़ी ऊहापोह है। अमेरिका के सभी व्यापारिक हिस्सेदार देशों के उद्योगपतियों के मन में ट्रंप को लेकर कई प्रश्न हैं। उनको डर है कि ट्रंप की जीत व्यापारिक समझौतों के लिए खतरे की घंटी है।
अमेरिका के कई राजनीतिक विश्लेषकों को डर है कि हिलेरी की हार से अमेरिका में महिलाओं एवं अल्पसंख्यकों के अधिकारों में असमानता का व्यवहार बढ़ सकता है। अमेरिका में रहने वाले मुस्लिम, मेक्सिकन एवं अवैध रहवासियों के लिए ट्रंप की जीत कहर बन सकती है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का इलाज सिर्फ भारत कर सकता है और इसके लिए वह (अमेरिका) भारत की हरसंभव सहायता करेगा।
अमेरिका के राजनीतिक वैश्लेषिक मानते हैं कि ट्रंप की जीत अमेरिका में रूस के लिए प्रवेश का एक सुनहरा अवसर है, जो कि अमेरिका की सुरक्षा के लिए खतरा है। अपने चुनावी अभियान में रिपब्लिकंस ने तो ट्रंप को अमेरिका को 'मोस्ट रेकलेस प्रेजीडेंट' पहले ही घोषित कर दिया था।
लेकिन इन सबसे दरकिनार ट्रंप ने सभी विश्लेषकों को 'फेल्ड वॉशिंगटन एलीट' कहकर 'अमेरिका फर्स्ट' का नारा देकर चुनाव जीत लिया।