प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक वर्ष के कार्यकाल के दौरान उनके नाम एक और खास बात जुड़ जाएगी। प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के करीब एक वर्ष में विदेशी मेहमान बनने के मामले में वे हाल के दौर के दूसरे प्रधानमंत्रियों से आगे निकल गए हैं। विदेशी मामलों पर वार्ता, समझौता करने में जितनी सक्रियता मोदी ने दिखाई है, शायद इतनी सक्रियता किसी और प्रधानमंत्री ने दिखाई हो। विपक्ष ने मोदी पर इस बात को लेकर भी निशाना साधा कि उन्होंने भारत में कम और विदेश में ज्यादा समय बिताया।
मोदी ने 26 मई 2014 को प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद संख्या के लिहाज से स्वतंत्र भारत के इतिहास में किसी दूसरे प्रधानमंत्री के मुकाबले अब तक सबसे ज्यादा बहुपक्षीय और द्विपक्षीय विदेशी दौरे किए हैं। उन्होंने अपने विदेशी दौरों की शुरुआत भूटान से की और वे 15-16 जून, 2014 को थिम्पू और 3-4 अगस्त को नेपाल यात्रा की। इस बीच वे 1 जुलाई को ब्राजीलिया, ब्राजील के दौरे पर भी गए।
बाद में वे संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने 26 से 30 सितंबर तक अमेरिका गए और वहां भी पांच द्विपक्षीय दौरे पर रहे। इस दौरान उन्होंने न केवल अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से बातचीत की वरन वहां भारतीय मूल के लोगों को न्यूयॉर्क के मेडिसन स्क्वेयर एरिना में संबोधित भी किया।
मोदी म्यांमार की यात्रा पर गए जहां वह पूर्व एशिया सम्मेलन के लिए 11-13 नवंबर, 2014 तक देश से बाहर रहे। इसके बाद वे 14-18 नवंबर 2014 को जी-20 सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन पहुंचे। प्रधानमंत्री ने 17 नवंबर को सिडनी ओलिम्पिक पार्क में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित किया। इस दौरे के दौरान उन्होंने ऑस्ट्रेलिया से भारत को यूरेनियम की सप्लाई करने के समझौते पर मोहर लगाई। 18 नवंबर 2014 को उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री जॉन एबट के राजधानी, कैनबरा में द्विपक्षीय वार्ता की। यहां से वे 19 नवंबर को वे फिजी के दौरे पर रवाना हो गए।
प्रधानमंत्री 11 से 19, नवंबर 2014 के बीच म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया और फिजी के 9 दिनों के दौरे पर रहे, वहीं महीने के अंत में वे दक्षेस सम्मेलन में शिरकत करने के लिए दो दिन नेपाल में रहे। प्रधानमंत्री के तौर पर यह उनकी दूसरी नेपाल यात्रा थी। विदेश दौरे को लेकर विदेश मंत्रालय की सार्वजनिक सूचना में बताया गया कि वे नंवबर माह में कम से कम 11 दिन प्रधानमंत्री देश से बाहर रहे। उनकी फिजी यात्रा इस मामले में ऐतिहासिक थी कि तीन दशकों के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने उस देश की यात्रा की थी जबकि फिजी में बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग रहते हैं।
मोदी की विदेश यात्राओं से भारतीय अर्थव्यवस्था को खासी उम्मीद रही है और उन्होंने इन देशों में देश के भारोबारी हितों और निवेश को बढ़ाने के लिए बहुत कुछ कहा। जापान यात्रा का कारोबारी ही नहीं वरन सामरिक और कूटनीतिक महत्व भी था।
मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के अलावा भूटान और दूसरे दक्षिण एशियाई देशों के सरकार प्रमुखों को न्योता दिया था। जानकारों का कहना है कि वे एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने और चीन से प्रतिस्पर्धा करने के उद्देश्य से जापान और भारत को एकसाथ लाना चाहते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना था कि उनकी पहली विदेश यात्रा के लिए भूटान 'अद्वितीय और अद्भुत संबंधों' की वजह से एक 'स्वाभाविक पसंद' है तथा उनकी यात्रा दोनों देशों के सहयोग को और भी अधिक प्रभावी बनाने पर केंद्रित होगी। पड़ोसी देशों से सबंध सुधारने के क्रम में मोदी इसी वर्ष 13-14 मार्च को श्रीलंका पहुंचे जहां से वे मॉरीशस और सेशेल्स भी गए। श्रीलंका में जहां पड़ोसी देश के साथ संबंधों को सामान्य बनाने पर जोर था तो मॉरीशस की यात्रा उन भारतीय प्रवासियों से दिलों के तार जोड़ने का उपक्रम थी जो कि सदियों पहले बिहार और उत्तरप्रदेश से वहां गन्ने के खेतों में मजदूरी करने के लिए गए थे। मोदी की श्रीलंका, मॉरीशस और सेशेल्स की पांच दिवसीय यात्रा से उम्मीद की जा सकती है कि इससे देश के हिन्द महासागर क्षेत्र के देशों से रिश्ते और मजबूत हुए होंगे।
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भारत-मॉरीशस का तीन शताब्दियों का साथ : प्रधानमंत्री मोदी अपने तीन देशों की यात्रा के दूसरे पड़ाव मॉरीशस पहुंचे और उनकी इस यात्रा से दोनों देशों के संबंध और प्रगाढ़ होने की उम्मीद है। लेकिन भारत-मॉरीशस के संबंध आज के नहीं हैं, बल्कि तीन शताब्दी पुराने हैं। इस द्वीप देश को सजाने और संवारने में शुरू से ही भारतीयों का अहम योगदान रहा है। यही वजह है कि यह आज पूरी दुनिया में छोटे भारत के रूप में मशहूर है।
भारत की समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने की रणनीति में सेशेल्स एक अहम क्षत्रप की भूमिका में होगा। प्रधानमंत्री ने राजधानी विक्टोरिया में उम्मीद जताई कि यह द्विपीय देश जल्द ही भारत, मालदीव और श्रीलंका के बीच नौवहन सुरक्षा सहयोग के क्षेत्र में पूर्ण भागीदार होगा।
इसी के साथ प्रधानमंत्री ने सेशेल्स के लोगों को निःशुल्क वीजा की सौगात दी। प्रधानमंत्री ने अपने एक दिन के संक्षिप्त दौरे के दौरान भारत द्वारा सेशेल्स में स्थापित पहले तटीय निगरानी रडार (सीएनआर) का उद्घाटन किया। भारत की योजना सेशेल्स में आठ सीएनआर स्थापित करने की है ताकि इस क्षेत्र से गुजरने वाले जहाजों पर कड़ी नजर रखी जा सके। इसी के साथ उन्होंने एक बार फिर भरोसा दिलाया कि भारत सेशेल्स की सुरक्षा, विकास और सहयोग में हर तरह की मदद करेगा।
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जापान यात्रा की अहमियत : प्रधानमंत्री मोदी की पहली जापान यात्रा से दोनों देशों के रिश्तों में एक नया अध्याय जुड़ा। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी की उपमहाद्वीप के बाहर भी यह पहली विदेश यात्रा थी। इस पांच दिवसीय यात्रा के दौरान जब जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे और नरेंद्र मोदी वार्ता की मेज पर बैठे तो पूरी दुनिया खासकर चीन और अमेरिका ने इस बात का खास नोटिस लिया।
जापान की इस यात्रा की काफी अहमियत है। इससे दोनों देशों के बीच सैन्य, रणनीतिक और व्यापारिक संबंधों को आगे ले जाने में मदद मिली। भारत को जहां अपनी रक्षा, ढांचागत और व्यापारिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जापान की जरूरत है, वहीं जापान को भी दक्षिण चीन सागर में चीन के प्रभाव को कम करने के लिए भारत का साथ चाहिए।
जापान में ढांचागत संरचना का बड़ा उद्योग है और भारत अपने खस्ताहाल सड़कों और जर्जर इमारतों की वजह से उसका बड़ा बाजार बन सकता है। लेकिन जानकारों का कहना है कि भारत और जापान सिर्फ आर्थिक वजहों से एक साथ नहीं हैं। उन्हें जोड़ने वाला चीन है। दोनों ही देशों का चीन के साथ सीमाई विवाद है। चीन लगातार अपनी सैनिक क्षमता बढ़ा रहा है, जिससे भारत और जापान दोनों चिंतित हैं। पूर्वी चीनी सागर में कई द्वीपों के मालिकाना हक को लेकर भी जापान का चीन के साथ विवाद चल रहा है। जबकि भारत और चीन के बीच 1962 में युद्ध हुआ, जिसके बाद से दोनों के बीच सरहदी विवाद जारी है।
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अमेरिका से रिश्ता सुधरा : भारत के विदेश मंत्रालय ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि सितंबर में मोदी संयुक्त राष्ट्र के सालाना अधिवेशन में जाएंगे और इस दौरान उनकी मुलाकात अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से होगी। जहां तक अमेरिका का सवाल है, वह जापान का अच्छा सामरिक साथी है। अमेरिका भी चीन के बढ़ती आर्थिक और सैनिक ताकत से चिंतित है और जापान और भारत की नजदीकी उसे इस कारण से पसंद आती है।
हालांकि खुद अमेरिका का मोदी के साथ अच्छा रिश्ता नहीं था। गुजरात के 2002 के दंगों की वजह से अमेरिका ने मोदी को 2005 से वीजा नहीं दिया। दंगों के वक्त मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उन पर आरोप हैं कि उन्होंने इसे नियंत्रण करने में पूरी शक्ति नहीं लगाई। हालांकि किसी अदालत ने उन्हें कभी दोषी करार नहीं दिया है। लेकिन अंतत: अमेरिका को मोदी के प्रभाव का लोहा मानना ही पड़ा। अमेरिका में मोदी का भव्य स्वागत हुआ और भारतीय प्रवासियों ने उनके भाषण को ऐतिहासिक बना दिया।
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ऑस्ट्रेलिया में भी मोदी की धूम
अमेरिका की ही तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर विदेशों में बसे भारतीयों से खुल कर मिलने की तैयारी कर की और अब बारी ऑस्ट्रेलिया की थी। उन्होंने सिडनी में भारतीय प्रवासियों के बीच अपनी बात रखी और यहां भी न्यू यॉर्क की तरह से उन्होंने 17 नवंबर को सिडनी में सिडनी ओलिम्पिक पार्क में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित किया और 18 नवंबर को ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री के साथ कैनबरा में द्विपक्षीय वार्ता की। धानमंत्री 19 नवंबर, 2014 को फिजी के दौरे पर रहे। फिजी में 33 वर्ष बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री वहां पहुंचा।
प्रधानमंत्री ने फ्रांस में राफेल हवाई जहाज के 20 बिलियन डॉलर के सौदे को पक्का किया। जैतपुर परमाणु संयंत्र के सौदे में भी ज्यादा कठिनाई नहीं होनी चाहिए। सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिलाने पर भी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद कोई आश्वासन नहीं दिया।
यूरोपीय संघ से व्यापार में भारत का पलड़ा डेढ़ बिलियन यूरो से भारी है। यदि यूरोपीय संघ के देश भारत में अपना विनियोग दुगुना कर दें तो यह यात्रा सफल मानी जाएगी। यदि दोनों पक्षों के बीच मुक्त व्यापार शुरू हो जाए तो सोने पर सुहागा हो सकता है। यदि यह यात्रा मोदी को यह प्रेरणा दे सके कि वे यूरोपीय संघ की तरह कोई ढांचा दक्षिण एशिया में खड़ा कर सकें तो उनका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा।
'मेक इन इंडिया' के लिए निवेश आमंत्रित करने के मकसद से जर्मनी पहुंचे पीएम मोदी मोदी तीन देशों की विदेश यात्रा के दूसरे चरण में हनोवर पहुंचे थे जहां उन्होंने 'मेक इन इंडिया' अभियान में जर्मनी का सहयोग मांगा और जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल से द्विपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाने का आग्रह किया। मोदी ने विश्व प्रसिद्ध हनोवर मेला भी देखा और मेले में प्रदर्शित तकनीकों का जायजा लिया।
अगले पन्ने पर, फ्रांस में नाव पर चर्चा...
फ्रांसीसी राष्ट्रपति के साथ 'नाव पे चर्चा' : मोदी ने फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलोंद के साथ अनोखे अंदाज में वार्ता की। उन्होंने पिछले शुक्रवार को पेरिस के बीच से बहने वाली ला सिएन नदी में ओलोंद के साथ नाव की सवारी की और दोनों नेताओं के बीच 'नाव पे चर्चा' हुई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दौरे के अंतिम चरण में कनाडा पहुंचे, जहां दोनों देशों के बीच परमाणु मुद्दे सहित ऊर्जा सहयोग और भारत के विकास के लिए व्यापार और तकनीकी सहयोग पर बातचीत हुई। कनाडा में यूरेनियम तथा अन्य खनिजों का भण्डार है। मोदी ने कनाडा से यूरेनियम हासिल करने का समझौता किया है और कनाडा भारत के उर्जा क्षेत्र को विकसित करने में भी मदद करेगा।