Last Modified: नई दिल्ली ,
रविवार, 23 जून 2013 (15:41 IST)
केदारनाथ मंदिर में शिवलिंग तक मलबा
नई दिल्ली। उत्तराखंड में बारिश, अचानक आई बाढ़ के कारण त्रासदी का मंजर ऐसा भयावह और प्रलयंकारी है कि केदारनाथ मंदिर में गर्भगृह और भगवान शिव के ‘स्वयंभू लिंग’ तक मलबा जमा हो गया है, साथ ही आसपास के कई गांव बह गए हैं।
PTI
केदारनाथ मंदिर के मुख्य तीर्थ पुरोहित दिनेश बगवाड़ी ने बताया कि मंदिर परिसर में मलबा काफी मात्रा में भरा हुआ है। मंदिर के ‘गर्भगृह’ तक मलबे का अंबार लगा है। ‘भगवान शिव के स्वयंभू ज्योतिर्लिंग’ तक मलबा आ गया है। शिवलिंग का सिर्फ कुछ भाग ही दिखाई दे रहा है।
उन्होंने कहा कि मंदिर परिसर में मलबे के नीचे काफी संख्या में लोगों के शव हैं। भयानक दृश्य है, मैं इसे बता नहीं सकता। मेरे अपने परिवार के 5 लोगों की इस आपदा में मौत हो गई। बगवाड़ी उस शिष्टमंडल में शामिल थे जिन्होंने शनिवार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से भेंट की और इस आपदा के बारे में उनसे चर्चा की।
यह पूछे जाने पर कि क्या अस्थाई तौर पर पूजा का स्थान बदलने पर विचार किया जा रहा है? उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा नियुक्त मुख्य पुजारी (जिन्हें रावल कहा जाता है), के हवाले से इस पर विचार करने की बात सामने आई है लेकिन यह इतना आसान नहीं है।
इस बारे में अभी स्पष्ट रूप से कोई जानकारी नहीं है, क्योंकि मंदिर परिसर तक पहुंचना और उसे बहाल करना पहली चुनौती और बड़ा काम है।
मुख्य तीर्थ पुरोहित ने कहा कि आसपास के कई गांव जल की तेज धारा में बह गए हैं। कुछ लोगों के घर जो बचे हैं उनमें 3 फुट से अधिक तक मलबा भर गया है। कुछ नहीं बचा है, सब कुछ तबाह हो गया है।
बगवाड़ी ने कहा कि पूजा की प्रक्रिया और स्थान परिवर्तन जैसे विषयों पर बद्री-केदारनाथ समिति निर्णय करती है लेकिन अभी चुनौती मंदिर परिसर में मलबे को साफ करना और वहां दबी लाशों को निकालना है।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में अभी भी कई हजार लोग फंसे हुए हैं। बड़ी संख्या में लोग कुदरत के कहर में अपनी जान गंवा चुके हैं। कुछ खुशकिस्मत अपनी जान बचाकर लौटे तो हैं लेकिन कई ऐसे भी हैं जिन्होंने आंखों के सामने अपनों को मरते देखा।
केदारनाथ मंदिर के मुख्य तीर्थ पुरोहित ने कहा कि आपदा के बाद स्थिति ऐसी थी कि किसी ने लाशों के साथ रातें बिताईं तो किसी का हाथ छूटते ही उनके अपने पानी की तेज धारा में बह गए।
उन्होंने कहा कि 16 जून को शाम करीब 8 बजे के बाद अचानक मंदिर के ऊपर वाले पहाड़ी भाग से पानी का तेज बहाव आता दिखा। इसके बाद तीर्थयात्रियों ने मंदिर में शरण ली। रातभर लोग एक-दूसरे को ढांढस बंधाते दिखे। अगले दिन सुबह फिर पानी की तेज धारा आई और इसमें सब कुछ तबाह हो गया। (भाषा)