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सहारनपुर। सहारनपुर में हिंसा भड़काने का सिलसिला जारी है। हिंसा भड़काने का आरोप जिस संगठन भीम आर्मी पर लग रहा है उसको लेकर उत्तर प्रदेश की इंटेलिजेंस पुलिस ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंपी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी लगातार भीम आर्मी की मदद करती रही है।
रिपोर्ट में सामने आया है कि मायावती के भाई आनंद कुमार भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर के लगातार संपर्क में रहे हैं। बताया जा रहा है कि सहारनपुर में हुए बवाल के बाद भी मायावती के भाई आनंद कुमार चंद्रशेखर के संपर्क में थे और किसी तीसरे आदमी के जरिए दोनों में बात होती रही। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बीएसपी नहीं चाहती थी कि भीम आर्मी उसके लिए चुनौती बने साथ ही बीएसपी भीम आर्मी को अकेला भी नहीं छोड़ना चाहती थी।
चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण सहारनपुर की हिंसा के आरोप में पुलिस की फाइलों में नामजद आरोपी है। सरकारी कागजों में इसे 9 मई से फरार बताया जा रहा है, लेकिन ये न सिर्फ मीडिया से बात कर रहा है बल्कि रविवार को दिल्ली के जंतर मंतर पर हुए दलितों के प्रदर्शन में भी शामिल था।
उत्तर प्रदेश पुलिस मानती है कि सहारनपुर में 9 मई को पुलिस और दलितों के बीच हुए बवाल में भीम आर्मी ने चंद्रशेखर की अगुवाई में जमकर हिंसा की थी। चंद्रशेखर और उसके समर्थकों ने रामनगर में एक पुलिस चौकी, कई मोटर साईकल और कारें जला दी थीं। पुलिस पर पथराव और हमला किया था।
उल्लेखनीय है कि सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में 5 मई को उस वक्त झड़पें शुरू हो गई थीं जब गांव के कुछ के कुछ दलितों ने राजपूत समाज की ओर से महाराणा प्रताप की जयंती पर एक जुलूस निकालने में अड़ंगा डालने की कोशिश की। सहारनपुर में दलितों की अगुवाई भीम आर्मी नाम का संगठन कर रहा था।
केशव प्रसाद मौर्य का बयान : झांसी में आयोजित यति सम्मेलन में हिस्सा लेने आए उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य ने कहा कि सपा और बसपा जातिवाद को बढ़ावा दे रही हैं, जिसके कारण दंगे भड़क रहे हैं। सहारनपुर में हालात बिगड़े हैं, वहीं बसपा नेता मायावती भी वहां गई उनके वापस जाने के बाद फिर समाज में अस्थिरता पैदा हो गई। उन्होंने बसपा मुखिया का नाम लिए बगैर कहा कि दंगे भड़काने वाले कितने भी बड़े क्यों न हो बख्शे नहीं जाएंगे। सहारनपुर में हुए दंगे की जांच चल रही है। दोषियों को तो पकड़ कर सख्त कार्रवाई की ही जाएगी, वहीं जिनके कारण दंगे भड़क रहे हैं, जांच में वह दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें भी नहीं छोड़ा जाएगा।
नफरत फैलाकर राजनीति करने का प्रचलन : समाज में नफरत फैलाकर राजनीति करने का प्रचलन सदियों से रहा है। क्या इसी क्रम में मायावती और उनके भाई आनंदकुमार ने उत्तर प्रदेश में चुनाव हारने के बाद फिर से दलितों को भड़काना शुरू कर दिया है? हिन्दू से बौद्ध बनीं मायावती और उनकी ब्रिगेड हिन्दू दलितों को भड़काकर उन्हें बौद्ध बनाने की साजिश में शामिल हो यह जरूरी नहीं, लेकिन वे यह जरूर चाहते होंगे कि दलितों को उनका वोट मिले।
वक्त के साथ बदलती रहीं मायावती : मायावती पर कांशीराम का दलित आंदोलन पीछे छोड़ देने का इल्जाम लगता है और यही वजह है कि कुछ लोग पुराने आंदोलन के स्वरूप को फिर से जिंदा करना चाहते हैं। पुराने आंदोलन में नारा होता था तिलक, तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार। हालांकि मायावती ने वक्त के साथ अपनी राजनीति बदली और सवर्णों को साथ लेकर चलने की नीति के तहत कई जगह ब्राह्मण सम्मेलन भी करवाए थे। एक बार फिर उन्होंने राजनीति बदली और नारा दिया दलित मुस्लिम भाई- भाई। लेकिन यह नारा जब पिछले चुनाव में सफल नहीं हुआ तो अब वे फिर से दलितों की राजनीति पर उतारू हो चली हैं।
गैर जिम्मेदार मीडिया और राजनेता : देश में हर जाति, वर्ग, समाज और धर्म का व्यक्ति किसी न किसी प्रकार से पीड़ित होता रहा है, लेकिन मीडिया में उन खबरों को तवज्जों ज्यादा दी जाती है जिससे की समाज का ध्रुवीकरण हो। निष्पक्षता का ढोंग करने वाली मीडिया और राजनेताओं को यह समझना जरूर चाहिए कि इस देश में कई जगह पर व्यक्तिगत लड़ाई को जातीय और सांप्रदायिक लड़ाई में बदलते रहने के दुष्परिणाम से देश में अलगाववाद और देशद्रोह की भावना को बल मिलेगा जिसके चलते लोकतंत्र तो खतरे में पड़ेगा ही साथ ही हर वर्ग के लोगों का जीवन एक अराजक और अंधकारपूर्ण माहौल में पहुंच जाएगा।
वर्तमान से ही भविष्य निकलता है। भविष्य में लोग अपने आसपास सिर्फ हिंसा होते हुए ही देखेंगे जो कि सीरिया, इराक, अफगानिस्तान और भारतीय राज्य कश्मीर के बच्चों के वर्तमान जैसा होगा। वर्तमान में सोशल मीडिया भी इस अंधकारपूर्ण भविष्य के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। 5 मई की घटना और उसके बाद 9 मई को बवाल के बाद भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद ने यूट्यूब पर एक वीडियो अपलोड किया जिसमें हजारों की संख्या में 21 मई को जंतर मंतर पहुंचने की अपील की गयी थी।
यूपी पुलिस सहारनपुर की घटनानाओं को दूसरी मामूली घटनाओं की तरह लिया, लेकिन जब उसे पता चला कि भीम आर्मी ने 50 हजार लोगों के साथ प्रदर्शन की अनुमति मांगी है तो उसके कान खड़े हो गए। फिर दिल्ली और यूपी पुलिस में कई दौर की बातचीत हुई और आखिरकार अनुमति न देने का फैसला हुआ।
जिग्नेश मेवाणी और चंद्रशेखर दोनों पेशे से वकील हैं। जिग्नेश गुजरात में दलित आंदोलन के उभरते चेहरे के तौर पर स्थापित हो चुके हैं, जबकि चंद्रशेखर यूपी में उभर रहे हैं। चंद्रशेखर के खिलाफ भी यूपी पुलिस ने केस दर्ज कर रखा था जिसके चलते वो भूमिगत हो गए थे और सीधे जंतर मंतर पर दिखाई दिए। चंद्रशेखर के मुताबिक भीम आर्मी कोई राजनीतिक संगठन नहीं बल्कि सामाजिक आंदोलन है, लेकिन सच इसके उलट है। हिन्दू समाज के दलितों को बौद्ध बनाए जाने के पीछे के सच की पड़ताल करना जरूरी है।