गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Game of situation: ‘पॉलिटि‍क्‍स इज अ गेम ऑफ सि‍चुएशन’, सचि‍न पायलट इस बार इसी पॉलि‍टि‍कल सि‍चुएशन में फंस गए हैं

Game of situation: ‘पॉलिटि‍क्‍स इज अ गेम ऑफ सि‍चुएशन’, सचि‍न पायलट इस बार इसी पॉलि‍टि‍कल सि‍चुएशन में फंस गए हैं - sachin piolet
जब ज्‍योति‍रादि‍त्‍य सिंधि‍या ने कांग्रेस छोड़ी थी तो उनके पास न तो प्रदेश की कमान थी और न ही वे उप-मुख्‍यमंत्री थे। यहां तक कि वे सांसद भी नहीं थे। जब उन्‍होंने राज्‍यसभा जाने की इच्‍छा जताई तो उसके लि‍ए भी उनकी राह में रोड़े अटका दि‍ए गए, मतलब कांग्रेस में उनके हाथ पूरी तरह से खाली थे, इसके अलावा मध्‍यप्रदेश के दूसरे बड़े नेताओं की छाया में उनका उपजना एक बड़ा संघर्ष था, ऐसे में भाजपा में आने में ही उनको फायदा था और बहुत हद तक उन्‍हें वो राजनीति‍क फायदा मि‍ला भी है।

सचि‍न पायलट का मामला इसके ठीक उल्‍टा है। वे प्रदेश अध्‍यक्ष भी हैं, राजस्‍थान के डि‍प्‍टी सीएम भी हैं। राजस्‍थान में एक नेता के तौर पर उनका जनाधार भी है। (एक पार्टी के तौर पर कांग्रेस की हालत खराब है, यह एक दूसरी बात है) ऐसे में उन्‍होंने अपनी पार्टी को धमकी देकर या प्रेशर बनाकर एक तरह से जोखिम मोल ले लि‍या है।

इसके कई कारण हो सकते हैं। ज्‍योति‍रादि‍त्‍य के पास उस समय 20 वि‍धायक थे जो अपने महाराज के एक इशारे पर इधर उधर आने को तैयार थे। कई दि‍नों के पॉलि‍टि‍कल ड्रामे के बाद भी उनका स्‍टेटस चैंज नहीं हुआ, अंतत: वे सिंधि‍या के साथ ही आए। सचिन जिन 30 वि‍धायकों के अपने साथ होने की बात कह रहे हैं, उनका स्‍टेटस अभी बि‍ल्‍कुल भी साफ या तय नहीं है। अगर वे पार्टी छोड़ते हैं तो प्रदेश अध्‍यक्ष का पद जाएगा और वे डि‍प्‍टी सीएम भी नहीं रहेंगे। उनके पास सिंधि‍या की तरह खुद को भाजपा से जोड़ने का कोई तर्क भी नहीं है। सिंधि‍या ने भाजपा में शामि‍ल होते वक्‍त कहा था कि‍ उनके पुरखों की आत्‍मा भाजपा में बसती है। सही भी है, राजमाता सिंधिया भाजपा में थीं और खुद ज्‍योति‍रादित्‍य के पि‍ता माधवराव सिंधिया की राजनीति‍ की शुरुआत जनसंघ से हुई थी। सचिन के पास सि‍र्फ एक ही तर्क है कि वे राजस्‍थान में नंबर एक की पायदान पर होना चाहते हैं। हालांकि वे नंबर एक को डि‍जर्व भी करते हैं, लेकिन ‘पॉलिटि‍क्‍स इज गेम ऑफ सि‍चुएशन’। यहां सबकुछ सभी के हिसाब से नहीं होता। ज्‍यादातर सि‍चुएशन में त्‍यागना ही होता है।

वहीं सचिन के गि‍वअप करने से अशोक गेहलोत को ही फायदा होगा, उनके सामने वि‍रोध या बागी के रूप में सचि‍न पायलट नाम की जो तस्‍वीर है वो हमेशा के लि‍ए धुंधली हो जाएगी।

दूसरी तरफ भाजपा में अब उतना ‘पॉलि‍टि‍कल स्‍पेस’ नहीं रहा कि वो सचि‍न को या उनके साथ आने वाले वि‍धायकों को एडजस्‍ट कर सके। क्‍योंकि भाजपा को अपनी खुद की पार्टी का ‘वैक्‍यूम’ भी देखना है। अगर वो बाहर की पार्टी से आए नेताओं को ही ‘प्र‍िवि‍लेज्‍ड’ देती रहेगी तो उसकी अपनी पार्टी के भीतर असंतोष पनपेगा, ऐसे में चाहते हुए भी वो सचि‍न को मैनेज नहीं करना चाहेगी। इन सारे तथ्‍यों से ऊपर उठकर अगर अमित शाह के पास कोई और राजनीति‍क अवधारणा हो तो अलग बात है।

ऐसे में सचिन राजस्‍थान में तीसरे मोर्चे के रूप में आ सकते हैं, लेकिन इस स्‍थिति‍ में भी उन्‍हें वो सबकुछ खोना पड़ेगा जो अभी उनके पास है और उन्‍हें कखग से शुरुआत करना होगी। हालांकि‍ तीसरे घटक के रूप में उनके पास भाजपा के कंधे का सहारा लेकर मुख्‍यमंत्री बनने की उम्‍मीद है। लेकि‍न यह इतना आसान भी नहीं।

ऐसे में सचि‍न को यू-टर्न की लेने की जरुरत पड़ेगी, लेकिन उसके लि‍ए उन्‍हें कोई सम्‍मानजनक स्‍थिति‍ पैदा करना होगी। कुल मि‍लाकर सचि‍न पायलट के रूप में खुद उन्‍हें और कांग्रेस पार्टी को नुकसान ही नुकसान है। क्‍योंकि अंतत: यह पार्टी का ही ‘कलेक्‍टि‍व डैमेज’ है।

क्‍योंकि राहुल गांधी और सोनि‍या गांधी की तरफ से भी सचि‍न को रि‍कवर करने कोई कोशि‍श नजर नहीं आ रही है। ठीक ऐसा ही ज्‍योति‍रादि‍त्‍य के समय किया गया था। कांग्रेस में ऐसी स्‍थि‍ति‍यों को क्‍यों हैंडल नहीं किया जाता यह समझ से परे हैं।

कहा जा रहा है कि सचिन को मनाने के लिए राहुल गांधी के ऑफि‍स की तरफ से मि‍लिंद देवड़ा को कॉल कि‍या गया था, लेकिन मि‍लिंद ने कॉल लेने से मना कर दि‍या। उन्‍होंने कहा कि‍ राहुल ही हैंडल करें। सवाल यह है कि सचि‍न उतने छोटे नेता भी नहीं कि खुद राहुल गांधी उनसे बात नहीं कर सकें। अब सचि‍न को मैनेज करने के लिए प्र‍ि‍यंका गांधी को कहा गया है, प्रि‍यंका इस ‘पॉ‍लि‍टि‍कल क्राइसिस’ का क्‍या नि‍ष्‍कर्ष नि‍कालेगी, इसकी प्रतीक्षा है।
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