नई दिल्ली। देश में 12 साल से कम आयु की बच्चियों से बलात्कार के अपराध में मृत्युदंड तक की सजा देने तथा 16 साल से कम आयु की किशोरियों से दुष्कर्म के अपराध में दोषियों को कठोर सजा के प्रावधान वाले एक विधेयक को सोमवार को संसद की मंजूरी मिल गई।
राज्यसभा ने सोमवार को इन प्रावधानों वाले दंड विधि संशोधन विधेयक 2018 को ध्वनिमत से पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। इस विधेयक के जरिए भारतीय दंड संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1972, दंड प्रक्रिया संहिता 1973 और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 के संशोधन का प्रावधान है। यह विधेयक कानून बनने पर इस संबंध में 21 अप्रैल को लागू दंड विधि संशोधन अध्यादेश 2018 की जगह लेगा।
विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि पिछले कुछ समय में बलात्कार की अनेक घटनाएं सामने आई हैं जिसने देश के मानस को झकझोर दिया है, ऐसे में इस प्रकार के जघन्य अपराध के खिलाफ कठोर प्रावधानों वाला यह विधेयक लाया गया है। इसमें 12 वर्ष से कम आयु की बालिकाओं के खिलाफ ऐसे अपराध और 16 वर्ष से कम आयु की बालिकाओं के खिलाफ ऐसे अपराध के सिलसिले में कड़े दंड का प्रावधान किया गया है।
मंत्री ने कहा कि अध्यादेश लाना इसलिए जरूरी समझा गया, क्योंकि जब देशभर में छोटी बच्चियों के साथ जघन्य दुष्कर्म की वारदातें सामने आ रही थीं तो सरकार चुप नहीं रह सकती थी। उस समय संसद सत्र भी नहीं चल रहा था इसलिए अध्यादेश लाया गया।
रिजिजू ने कहा कि हमारी सरकार इस विधेयक के सख्त प्रावधानों को लागू करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी। सरकार की प्राथमिकता होगी कि हर मामले में न्याय हो। विधेयक में 12 वर्ष से कम उम्र की बालिकाओं के साथ बलात्कार के अपराध के लिए दंड को 7 वर्ष के न्यूनतम कारावास से बढ़ाकर 10 वर्ष करने का प्रावधान किया गया है और इसके दोषियों को मृत्युदंड तक की सजा दी जा सकेगी।
12 वर्ष से कम आयु की किशोरी से बलात्कार के अपराध में सजा 20 वर्ष से कम नहीं होगी और इसे बढ़ाकर आजीवन कारावास किया जा सकेगा। इसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष जीवनकाल के लिए कारावास से होगा और जुर्माना भी देना होगा। 12 वर्ष से कम आयु की किशोरी से सामूहिक बलात्कार के अपराध के लिए दंड आजीवन कारावास होगा जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष जीवनकाल के लिए कारावास होगा और जुर्माना देना होगा। 12 वर्ष से कम आयु की लड़की से सामूहिक बलात्कार के अपराध के लिए दंड आजीवन कारावास होगा जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष जीवनकाल के लिए कारावास होगा और जुर्माना देना होगा अथवा मृत्युदंड होगा।
इसमें कहा गया है कि बलात्कार के सभी मामलों के संबंध में जांच थाने में जानकारी देने से 2 माह की अवधि में पूरी की जाएगी। ऐसे मामलों की जांच अधिकारी भी महिला होगी और जहां भी संभव हो सकेगा, ऐसे मामलों की सुनवाई महिला न्यायाधीश द्वारा ही की जाएगी।
रिजिजू ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी सरकारी कर्मचारी पर बलात्कार का आरोप लगने पर उसके खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। बलात्कार के अपराध के मामलों में दोषसिद्धि या दोषमुक्ति के विरुद्ध अपील का उसे फाइल किए जाने की तिथि से 6 माह की अवधि में निपटारा करना होगा।
रिजिजू ने यह भी कहा कि जांच और अभियोजन में लापरवाही बरतने वाले पुलिस अधिकारियों को दंडित करने के भी विस्तृत प्रावधान किए गए हैं तथा वे मानते हैं कि केवल कानून बनाने से काम नहीं चलेगा। सख्त प्रावधान जरूरी हैं लेकिन उनका क्रियान्वयन भी जरूरी है। एजेंसियों और बुनियादी ढांचे को मजबूत करना जरूरी है।
उन्होंने कहा कि अब संशोधन के बाद प्रावधान बनाया गया है कि 16 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ जघन्य अपराध के आरोपियों को अग्रिम जमानत नहीं मिल सकेगी तथा अभियोजन तंत्र को मजबूत करने के लिए भी राज्यों से कहा जा रहा है। सभी थानों में विशेष फोरेंसिक किट रखने का भी प्रस्ताव है। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले 4 साल में लगातार समीक्षाओं के दौरान महिला सुरक्षा को पहली प्राथमिकता में रखा है। इसके लिए अलग से महिला सुरक्षा विभाग भी बनाया गया है।
रिजिजू ने कहा कि पीड़िताओं को जांच के दौरान होने वाली परेशानियों को देखते हुए प्रावधान किया गया है कि कोई वकील पीड़ित के चरित्र को लेकर सवाल-जवाब नहीं करेगा। प्रयास किया जाएगा कि मामले की सुनवाई कोई महिला जज करें। ऐसे मामलों में बंद कमरे में (इन कैमरा) सुनवाई होने से भी पीड़िताओं को बल मिलेगा।
इससे पहले विधेयक पर हुई चर्चा में भाग लेते हुए अधिकतर सदस्यों ने बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए कड़े कानूनी प्रावधानों का समर्थन किया। कुछ सदस्यों ने यह भी कहा कि केवल कानून बनाने से नहीं बल्कि इन कानूनी प्रावधानों को प्रभावी ढंग से जमीनी स्तर पर क्रियान्वित करने से ही अपराधों की रोकथाम हो सकेगी। कुछ सदस्यों ने इसे एक बेहद महत्वपूर्ण विधेयक बताते हुए इसे प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग की ताकि इसके प्रावधानों पर विस्तार से चर्चा कर उन्हें अधिक प्रभावी बनाया जा सके।
चर्चा में सपा के रविप्रकाश वर्मा, कांग्रेस से राजीव गौड़ा, हुसैन दलवई एवं अमी याग्निक, भाजपा की रूपा गांगुली, अन्नाद्रमुक के नवनीत कृष्णन, तृणमूल कांग्रेस के सुखेन्दु शेखर राय, माकपा की झरना दास वैद्य, राजद के मनोज कुमार झा, मनोनीत केटीएस तुलसी, बसपा के वीर सिंह, जदयू की कहकशां परवीन, राकांपा की वंदना चव्हाण, द्रमुक के तिरुचि शिवा तथा भाकपा के विनय विश्वम ने भी हिस्सा लिया। (भाषा)