आखिर कौन हैं रामानुजाचार्य, जिनकी 216 फुट ऊंची प्रतिमा लगाएंगे प्रधानमंत्री मोदी
रामानुजाचार्य आजकल चर्चा में हैं। अपनी प्रतिमा को लेकर। हाल ही में खबर आई है कि अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) की 50 वीं वर्षगांठ के समारोह पर पीएम मोदी हैदराबाद में 216 फुट ऊंची 'स्टैचू ऑफ इक्वैलिटी' का अनावरण करेंगे। ये प्रतिमा रामानुजाचार्य की है।
पीएमओ की तरफ से जारी जानकारी में कहा गया कि "216 फुट ऊंची स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी 11वीं सदी के भक्ति संत श्री रामानुजाचार्य की याद में बनाई गई है।
क्या खासियत है प्रतिमा की?
आपको बता दें कि यह मूर्ति 'पंचलोहा' से बनी है। पांच धातुओं में सोना, चांदी, तांबा, पीतल और जस्ता का संयोजन है।" प्रतिमा का उद्घाटन 12-दिवसीय श्री रामानुज सहस्रब्दी समारोह का एक हिस्सा है। इस मौके पर यह जानना दिलचस्प होगा कि आखिर रामानुजाचार्य कौन थे और क्या है उनका महत्व।
कौन थे रामानुजाचार्य?
1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में जन्मे रामानुजाचार्य एक वैदिक दार्शनिक और समाज सुधारक के तौर पर प्रसिद्ध हैं। उन्होंने समानता और सामाजिक न्याय की वकालत करते हुए पूरे भारत की यात्रा की। रामानुज ने भक्ति आंदोलन को पुनर्जीवित किया।
उन्होंने अपने उपदेशों से अन्य भक्ति विचारधाराओं को प्रेरित किया। उन्हें अन्नामाचार्य, भक्त रामदास, त्यागराज, कबीर और मीराबाई जैसे कवियों के लिए प्रेरणा माना जाता है।
जब से वे एक युवा नवोदित दार्शनिक थे, रामानुज ने प्रकृति और उसके संसाधनों जैसे हवा, पानी और मिट्टी के संरक्षण की अपील की। उन्होंने नवरत्नों के नाम से जाने जाने वाले नौ शास्त्रों को लिखा और वैदिक शास्त्रों पर कई टिप्पणियों की रचना की। रामानुज को पूरे भारत में मंदिरों में किए जाने वाले अनुष्ठानों के लिए सही प्रक्रियाओं को स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है, जिनमें सबसे प्रसिद्ध तिरुमाला और श्रीरंगम हैं।