शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024
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आखि‍र ‘संसद’ को क्‍यों गि‍राना चाहते हैं ‘मुनव्‍वर राणा’?

आखि‍र ‘संसद’ को क्‍यों गि‍राना चाहते हैं ‘मुनव्‍वर राणा’? - munvvar rana
मशहूर शायर मुनव्वर राना के ट्‍वीट से बवाल मच गया है। राना ने ट्वीट में चंद पंक्तियों से संसद को गिराकर खेत बनाने की बात कही थी। हालांकि विवाद बढ़ता देख उन्होंने ट्वीट को डिलीट कर दिया। बाद में उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि वे संसद की पुरानी इमारत को गिराकर खेत बनाने की बात कह रहे थे। मुनव्वर राना देश के काफी मशहूर शायर हैं और उनकी कई शायरियां दुनियाभर में सुनी जाती हैं, लेकिन पिछले काफी समय से वे अपने विवादित बयानों से चर्चा में रहे हैं।



वेबदुनिया ने इस मुद्दे पर देश के कुछ ख्‍यात शायरों से चर्चा की जानना चाही उनकी प्रतिक्रि‍या।


ऐसी प्रतिक्रियाओं से उन्‍हें बचना चाहिए
ख्‍यात कवि और पत्रकार प्रताप सोमवंशी संसद लोकतंत्र का मंदिर होता है, देश का मंदिर होता है। किसी भी जिम्‍मेदार व्‍यक्‍ति को इस तरह से बयान नहीं देना चाहिए। हालांकि उन्‍होंने अगर ट्वीट डि‍लिट कर दिया है तो उन्‍हें इस बात का अहसास हो ही गया होगा कि वो बात गलत थी। उनसे हमारे बेहद घनिष्‍ठ संबंध रहे हैं, उनका सम्‍मान करते हैं, लेकिन इस तरह की प्रतिक्रियाओं से उन्‍हें बचना चाहिए।


अप्रोच गलत, इरादा गलत नहीं
नागपुर के ख्‍यात शायर डॉक्‍टर समीर कबीर मुनव्‍वर राणा एक ख्‍यात शायर है। वे कई मामलों में टि‍प्‍पणी करते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि हाल ही में किसान मामले में उन्‍होंने जो ट्वीट किया है, उसमें संभवत: उनकी अप्रोच गलत हो सकती है, लेकिन उनका इरादा गलत नहीं है।

हालांकि हम किसानों को अहमियत देते है, किसानों की बदौलत ही हमारा चुल्‍हा जलता है, लेकिन यह भी सच है कि संसद से हमारा देश चलता है। जहां तक मेरा ख्‍याल है राणा साहब संसद के खि‍लाफ नहीं, उसमें जो लोग बैठे हैं उन हुक्‍मरानों के खि‍लाफ उनकी नाराजगी है।

मैं इसकी निंदा करता हूं
समकालीन आलोचक (हिन्दी साहित्य) के डॉ प्रमोद शर्मा का कहना है कि  लोकतंत्र में गिरादो और जलादो जैसे रक्तरंजित शब्दों के लिए कोई जगह नहीं हैं। मैं इसकी निंदा करता हूं।

युवा कलाकार और शायर बाबर शरीफ का कहना है, कभी इक़बाल ने कहा था--
जिस खेत से देहकां को मयस्सर न हो रोटी।
उस खेत के हर गोश-ए-गंदुम को जला दो।।


गुस्से को जाएज़ समझता हूं...
ज़ाहिर है कि ये इक़बाल का आक्रोश था सिस्टम के खिलाफ... मुझे यकीन है कि इक़बाल जैसा सूझ बूझ वाला शख्स किसी भी बद-तरीन सूरत-ए-हाल में भी खेत को जलाना नही चाहेगा... अब रही मुनव्वर साहेब की बात...मैं उन के गुस्से को जाएज़ समझता हूं... हां, ये मुमकिन हैं कि उनकी अप्रोच सही न हो शायरी में बहुत सारी बातें प्रतीकों से सजी होती हैं। ब-ज़ाहिर लफ़्ज़ों के रख रखाव से ज़्यादा एहम ये होता है कि शायर between the line क्या कहना चाहता है... वैसे मुनव्वर राना जितने बेहतरीन शायर हैं उतने ही खराब वक्‍ता हैं।

बता दें कि मुनव्‍वर राणा देश के ख्‍यात शायर हैं, हालांकि पिछले दिनों कुछ विषयों पर आए उनके ट्वीट से काफी विवाद भी हुए। हाल ही में उन्‍होंने जो ट्वीट किया था वो किसान आंदोलन के संदर्भ में था। ट्वीट के बाद सोशल मीडि‍या पर इसे लेकर जब विवाद गहराने लगा तो बाद में उन्‍होंने उस ट्वीट को डि‍लीट कर दिया।