सुप्रीम कोर्ट के 53वें CJI बनेंगे जस्टिस सूर्यकांत, इन 80 प्रकरणों में दिए फैसले
आज सुप्रीम कोर्ट को नया मुखिया मिलने जा रहा है। जस्टिस सूर्यकांत सोमवार को भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे। जस्टिस सूर्यकांत का कार्यकाल लगभग 14 महीनों का होगा। वे 9 फरवरी 2027 को CJI पद से रिटायर होंगे। वह जस्टिस बी. आर. गवई की जगह लेंगे। जस्टिस सूर्यकांत को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू शपथ दिलाएंगी। यह समारोह आज राष्ट्रपति भवन में आयोजित होगा।
जस्टिस सूर्यकांत के पास जज के रूप में काम करने का दो दशक से अधिक लंबा अनुभव है। वो हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में आए। उन्होंने जिन फैसलों को लिखा, उनमें अनुच्छेद-370, अभिव्यक्ति की आजादी, लोकतंत्र, भ्रष्टाचार, पर्यावरण और लैंगिक समानता से जुड़े ऐतिहासिक फैसले शामिल हैं।
कौन हैं जस्टिस सूर्यकांत : जस्टिस सूर्यकांत का जन्म हरियाणा के हिसार जिले के पेटवार गांव में 10 फरवरी 1962 को एक शिक्षक परिवार में हुआ था। बचपन में वो शहरी चकाचौंध से बहुत दूर रहे। उन्होंने पहली बार किसी शहर को तब देखा जब वे कक्षा 10वीं की बोर्ड परीक्षा देने के लिए हिसार के हांसी कस्बे में गए थे। उनकी आठवीं तक की पढ़ाई गांव के स्कूल में ही हुई। उस स्कूल में बेंच तक नहीं थीं।
उन्होंने 1981 में हिसार के गवर्नमेंट पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज से ग्रेजुएशन और 1984 में रोहतक के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की। उसी साल उन्होंने वकालत की शुरूआत हिसार की जिला अदालत से की। लेकिन 1985 में वो पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने के लिए चंडीगढ़ आ गए। जुलाई 2000 में उन्हें एडवोकेट जनरल बना दिया गया। वो हरियाणा के सबसे युवा एडवोकेट जनरल थे। उन्हें मार्च 2001 में सीनियर एडवोकेट बनाया गया। इसके बाद जनवरी 2004 में उन्हें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का स्थायी जज बनाया गया। उन्होंने पांच अक्टूबर 2018 को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ ली थी। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट से उन्हें 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया।
जस्टिस सूर्यकांत के प्रमुख फैसले : सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में जस्टिस सूर्यकांत ने करीब 80 फैसले लिखे। इसमें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) से जुड़े 1967 के फैसले को खारिज कर दिया था, जिससे संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे पर पुनर्विचार का रास्ता खुल गया था। इनके अलाव नागरिकता अधिनियम की धारा-6ए को चुनौती देने वाली याचिका, दिल्ली की आबकारी नीति मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत देने जैसे मामले शामिल हैं। वो 'पेगासस स्पाइवेयर' से जुड़े मामले की सुनवाई करने वाले पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने अवैध निगरानी के आरोपों की जांच के लिए साइबर विशेषज्ञों के एक पैनल का गठन किया था। अदालत ने कहा था कि राज्य को राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में मुफ्त पास नहीं मिल सकता है।
Edited By: Navin Rangiyal